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आगे कुछ नहीं आता है / रवि अरोड़ा

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 कल ही प्रयागराज यानि इलाहाबाद से बाई रोड गाजियाबाद लौटा हूं । इस बार आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे से न होकर वाया कानपुर इटावा होते हुए घर वापिस आने का फैसला लिया था ।  बताया भी गया था कि स्टेट हाई वे बहुत अच्छा है और आप इससे जल्दी आगरा तक पहुंच जाओगे । मगर हुआ इसके विपरीत । गऊ माता की ऐसी कृपा हुई कि सुबह का निकला हुआ देर रात ही घर पहुंच सका । फतेहपुर से लेकर इटावा तक जहां देखो वहीं सड़क के बीचों बीच गौ वंश पसरा हुआ मिला । कानपुर से लेकर इटावा तक के  सफर में तो शायद ही कोई ऐसा पल गुजरा हो जिसमें गायों और सांडों के झुंड नज़र न आए हों । खास बात यह कि ये सभी गाय केवल हाई वे पर ही दिखीं । पता नहीं अपने खेतों को गौ वंश से बचाने के लिए किसानों ने उन्हें हाई वे पर छोड़ा था अथवा स्वयं गौ पालकों ने मगर गौ वंश का घर सा ही लगा स्टेट हाई वे । अगर मै कहूं कि जीवन में पहली बार इतनी गाय मैने अब देखीँ तो यह अतिश्योक्ति न होगी । सच कहूं तो दो सौ तीस किलोमीटर का यह सफर राम राम करते ही बीता । सोच कर भी डर लगा कि यदि गलती से भी किसी गाय को मेरी कार ने टक्कर मार दी तो गौ भक्त जनता न जाने मेरा क्या हाल करेगी । हालांकि हजारों हजार इन गायों का ट्रैफिक सेंस भी गजब का था और इंसानों से बेहतर तरीके से वे सड़क का इस्तेमाल करती दिखीं मगर फिर भी पांच घंटे के इस सफर में डर तो बना ही रहा । घर लौट कर अब हिसाब लगा रहा हूं कि न जाने क्या सोच कर इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज साहब ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की सलाह दी होगी ? 


प्रदेश की योगी सरकार की गायों को बचाने की योजना गायों पर ही भारी पड़ती नजर आ रही है । लोगबाग गाय पालने के लिए सरकार से नौ सो रुपया प्रति माह का अनुदान तो ले रहे हैं मगर चरने के लिए उन्हें खुले में ही छोड़ रहे हैं । कहना न होगा कि दो साल पहले शुरू हुई योगी सरकार की बेसहारा गौ वंश सहभागिता योजना और 109 करोड़ का शुरुआती बजट गायों को ही ले डूबा । आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में लगभग दो करोड़ पशु हैं और उनमें से बारह लाख आवारा हैं । इसके विपरीत गौ शाला केवल पांच सौ तेईस हैं । गाय की हत्या पर चूंकि प्रदेश में दस साल की सजा का अब प्रावधान है अतः हत्या तो उसकी आसानी से नही होती मगर जीते जी मारने की कोई मनाही नहीं है । गाय को प्रताड़ित करने पर तो सज़ा हो सकती है मगर किसी स्कूल में बंद भूखी मारने की पूरी छूट है । 


दुनिया में हर तरह के सर्वे होते हैं । कौन सा देश अथवा समाज सबसे अधिक सुखी है अथवा कौन से देश में शिक्षा अथवा औसत उम्र कितनी है । पता नहीं पाखंड पर कोई सर्वे क्यों नहीं होता । यकीनन ऐसा कोई सर्वे हुआ तो हमारा देश और हमारा समाज सबसे आगे खड़ा मिलेगा । स्कूली दिनों में पढ़ाया जाता था गाय हमारी माता है । बच्चे लोग इससे आगे की तुकबंदी करते हुए कहते थे आगे कुछ नहीं आता है । लगता है बचपन की पैरोडी ठीक थी।  वाकई हमें इतना तो पता है कि गाय हमारी माता है और मगर सच में आगे कुछ नही आता है ।


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