जबलपुर पहुंचे , महर्षि संस्थान का पता था जबलपुर के गोरखपुर का । स्टेशन पर उतरते उतरते शाम गहरा रही थी । आराम से गंतव्य मिल गया । यहां एक बार फिर सुनील जी का संग साथ मिला । शुरुआती कुछदिनों तक डेरा सुनील जी घर रहा । पहले अखबार 'हितवाद 'रहा बाद में 'ज्ञानयुग प्रभात '। यहां सुनील जी ने इलाहाबाद से नार्दन इंडिया पत्रिका से आये संतोष सिंह जी से मुलाकर कराई । ये ही प्रबंधक यानी सर्वेसर्वा थे । पता चला संतोष जी खेल पत्रकार रहे हैं नार्दन इंडिया पत्रिका में । औपचारिक मुलाकात के बाद हम भी टीम में शामिल मान लिए गए । न हम कहीं पूछते कि क्या मिलेगा और न सामने वाला बताता कि क्या देगे । बस हमारे आनंद में खलल नहीं पड़ना चाहिए सो शायद ही कहीं पड़ा हो।सुनील जी रविवासरीय देखते थे । गंगा ठाकुर प्रधान और रम्मू श्रीवास्तव संपादक थे । वातावरण उत्साहवर्धक और रोमांचक था । नवजवान जांबाज खिलाड़ियों का मेला था और रोमांच इस बात का कि जबलपुर वर्सेस इलाहाबाद के बीच चलती रहती थी । हमे भी दो चार दिन तक तौला गया फिर जब मैंने यह जाहिर किया कि जबलपुर तो मेरा मायका भी है और ससुराल भी है । मैंने बताया मेरा पत्रिकारिता का डिप्लोमा यही जबलपुर से है पंडित कालिका प्रसाद दीक्षित के निर्देशन मे।...1978 का साल था चित्रकूट का रामायण मेला अपने शबाब पर था । देश भर के तमाम लेखक साहित्यकारों का आगमन होता था । मेरी रुचि इनकी आवभगत में ज्यादा होती थी । स्टेशन से इनका होल्डाल उतारने चढ़ाने , इन्हें सही जगह ठहराने , चित्रकूट घुमाने , इनकी देखरेख में ज्यादा मज़ा आता था । जबलपुर से दो बुजुर्ग आते थे कालिका प्रसाद जी और व्यौहार राजेन्द्र सिंह । पता चला कि कालका प्रसाद जी जबलपुर में पत्रिकारिता विभाग के अध्यक्ष हैं । रामायण के दौरान मैंने कालिका प्रसाद जी से पूछा की आप पत्रिकारिता में क्या पढ़ाते हैं । उन्होंने कहा कि यह हम सड़क पे नहीं बताते हैं । हमने कहा कि फिर कैसे । उन्होंने कहा , हमारा पता लीजिये और पत्र लिखिए । पत्र लिखा तो लौटती डाक से
उन्होंने एडमीशन फार्म भेजवाया , लिखा आप फार्म भर कर जल्द भेज दीजिये आपके एडमीशन की प्रक्रिया शुरू हो गई है । हम और बांदा के राजेन्द्र तिवारी इस तरह से जबलपुर के नियमित छात्र होगये । फीस आदि के बारे में पूछा तो कहा गया कि इससे आपको क्या लेना देना , अपने काम से काम रखिये । इस तरह हम पत्रिकारिता के डिप्लोमा धारक हो गए । जब इम्तिहान का समय आया तो बुलाया गया । पत्रकार भवन में ठहराए गए 12-15 दिन हम लोग जबलपुर में रहे । तब वे शैतान नाम का साप्ताहिक प्रकाशित करते थे ।स्वामी त्रिवेदी तब उनकी सेवा में रहते थे । पुर्व में वे नवभारत के सम्पादन रहे । शायद साहित्यिक पत्रिका वीणा का सम्पादन भी आपने किया । कर्वी से प्रकाशित चित्रकूटधाम समाचार के विमोचन के लिए आग्रह किया तो सहर्ष आगये । वे तो निर्धारित तिथि में आगये और मैं दो दिन बाद अखबार छपवा कर ला पाया । ऐसी स्नेहिल विभूति की आशीष के साथ जबलपुर से हमारे प्रेमिल रिश्ते बने । यह सब वृत्तान्त जान कर जबलपुर के प्रेम का ज्वार हमारे प्रति उमड़ना ही था । देखते देखते हमारा गैंग सजने लगा ।...ब्रजभूषण शकरगाय , अशोक दुबे , चैतन्य भट्ट , राकेश दीक्षित, अरविंद उप्रेती , दिनेश जुयाल , मंजूर , हरि भटनागर, राजेश नायक , राकेश श्रीवास्तव , राजेन्द्र गुप्त , अरुण पांडेय ,वीरेंद्र मिश्र कई ऐसे कि चेहरे तो याद हैं पर नाम विस्मृत हो रहे हैं । आदरणीय ज्ञानरंजन , विश्वभावन देवलिया, दिनेश खरे का साहचर्य बहुत ही पारिवारिक रहा । नर्मदा के किनारे वाला जबलपुर अभी भी अंतस में बहता है , सब ताज़ा है ।...शुरुआत में मैं सुनील जी साथ ही काम पर लग गया । बाद में जब ज्ञानयुग प्रभात के नाम से अखबार हुआ तब सम्पादकीय पेज की जिम्मेदारी मिली । अभी कुछ दिन ही हुए थे कि हमे ग्वालियर में होने वाले तानसेन संगीत समारोह में जाने को कहा गया । सब सरकार की व्यवस्था होती थी , निकल पड़े यात्रा पर । तीन चार दिन का भव्य समागम था । भीमसेन जोशी ,डागर बंधु और किशोरी अमोनकर जैसी तमाम नामवर हस्तियों के दर्शन हुए । वातावरण बहुत अनुशासित था । अर्जुन सिंह तब मध्य प्रेदेश के मुख्यमंत्री थे , वे आये थे और पूरा जलसा अशोक वाजपेयी के अनुशासन में कसा हुआ था । जो देखा समझा लिखा और संपादक रम्मू श्रीवास्तव जी को रिपोर्ट सौंप दी । रम्मू जी ने रिपोर्ट देखी और कहा अच्छी है इसे और विस्तार देकर तीन चार किस्तों में कर दो । मैंने कहा भाई साहब मैं संगीत की ज्यादा समझ नहीं रखता कैसे होगा । अरे जैसे ये हुआ वैसे ही हो जाएगा । रिपोर्ट प्रकाशित हुई और शहर मे संगीत विशारद मां लिए गए । जब भी संगीत का कुछ होता तो याद किये जाते ।यहां का मौसम बहुत ही खुशनुमा और प्रकृति हरीभरी खुशबूदार । कभी नर्मदा दर्शन और स्नान आदि सहयोग बनाता तो अच्छा लगता ।अलमस्त दिन और योगियों सी रातें , न चिंता न चिंतन मध्यम गति से शहर के साथ बहते हुए । ...यहां सुबह ध्यान योग होता था , महर्षि महेश योगी प्रणीत भावातीत ध्यान ।अपनी विश्व यात्रा की शुरूआत 1959 में अमेरिका से करने वाले महर्षि योगी के दर्शन का मूल आधार था, 'जीवन परमआनंद से भरपूर है और मनुष्य का जन्म इसका आनंद उठाने के लिए हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति में ऊर्जा, ज्ञान और सामर्थ्य का अपार भंडार है तथा इसके सदुपयोग से वह जीवन को सुखद बना सकता है।' ऐसा ही हुआ जीवन ऐसे ही आनंद से भरापूरा रहा । ...वृत्तान्त जारी ।