महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा और धीरूभाई अंबानी में समानता तलाशना आसान नहीं है। पर बहुत कोशिश करने पर पता चलेगा कि दोनों को अशोक होटल जोड़ता है। चे ग्वेरा यहां 30 जून, 1959 को आए थे। फिर वे यहां सात दिनों तक ठहरे । धीरूभाई अंबानी इधर 70 से 90 के दशकों में बार-बार रुका करते थे। उन्हें इधर के वे कमरे खासतौर पर पसंद थे जहां से नेहरु पार्क के नजारें देखे जा सकते हैं। वही अशोक होटल इस महीने अपनी स्थापना के 65 सालों का सफर पूरा कर रहा है। इसका 2007 से नाम हो गया है ‘दि अशोक’। लेकिन पुराना नाम नए पर भारी पड़ता है।
यहां पर अक्तूबर,1956 में यूनिस्को सम्मेलन में भाग लेने आए दुनियाभर के प्रतिनिधियों को ठहरया गया था। गुजरे साढ़े छह दशकों के दौरान अशोक होटल को दर्जनों राष्ट्राध्यक्षों और नामवर शख्सियतों की मेजबानी का मौका मिला। इसकी भव्यता के आगे सब होटल उन्नीस हैं। इसका डिजाइन मुंबई के आर्किटेक्ट ई.बी.डाक्टर ने बनाया था। वे जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में पढ़ाते थे।
उन्हें पता चला कि दिल्ली में सरकार एक लक्जरी होटल का निर्माण करने जा रही है और उसे एक आर्किटेक्ट की तलाश है। डाक्टर ने फौरन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के दफ्तर में अपने काम का ब्यौरा यह कहते हुए भेज दिया कि वे होटल का डिजाइन बनाने के लिए उत्सुक हैं। किस्मत ने उनका साथ दिया। डाक्टर को दिल्ली में प्रेजेंटेशन के लिए बुलाया गया। पंडित नेहरु ने उनसे मुलाकात की और उन्हें अशोक होटल का डिजाइन बनाने की जिम्मेदारी मिल गई। ये सब बातें 1955 की पहली तिमाही की हैं।
डाक्टर को साफ निर्देश थे कि उन्हें तेजी से काम करना है क्योंकि अशोक होटल का निर्माण अक्तूबर 1956 तक पूरा करना है। सरकार जल्दी में थी क्योंकि राजधानी में यूनिस्को सम्मेलन आयोजित होना था। आजादी के बाद संभवत: पहली बार यहां कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर का सम्मेलन हो रहा था। डाक्टर ने अशोक होटल का डिजाइन बनाना शुरू किया और इसके साथ ही अशोक होटल का भूमि पूजन हो गया। तब तक चाणक्यपुरी में सब तरफ झाड़ियां और झुग्गियां ही थीं। जयपुर पोलो ग्राउंड के आगे कुछ नहीं था। इधर तमाम एंबेसी तो साठ के दशक के आरंभ में ही बनने लगी थीं।
नए होटल को बनाने के लिए 25 एकड़ जमीन दी गई। डाक्टर ने अशोक होटल में 550 कमरों,कनवेंशन सेंटर,बगीचों वगैरह का डिजाइन और लैंड स्केपिंग की। उन्होंने इसके डिजाइन में झरोखों और जालियां देकर राजसी पुट दिया। इसका विशाल कनवेंशन सेंटर का डिजाइन तैयार करने में अपनी क्षमताओं को दिखाया। करीब डेढ़ हजार लोगों की क्षमता वाले कनवेंशन सेंटर में एक भी खंभा नहीं है। 200 पेड़ों के लिए स्पेस निकाला। ये लगभग सभी गुलमोहर के हैं। कुछ आम के हैं।
अशोक होटल में 1983 में हुए गुट निरपेक्ष सम्मेलन के समय दर्जनों देशों के राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री ठहरे थे। उनमें फिदेल कास्त्रों भी थे। तब पीएलओ के नेता यासर अराफत भी यहीं रूके हुए थे। कहते हैं कि तब सुरक्षा कारणों के चलते कास्त्रो के चेहरे से मिलते-जुलते तीन और व्यक्ति भी अशोक होटल में थे। यह सब इसलिए किया जा रहा था ताकि कास्त्रो पर हमले की किसी भी आशंका को निरस्त किया जा सके। यहां 1986 में लिट्टे के खूंखार नेता प्रभाकरण ने भी रात बिताई थी।
अशोक होटल की लॉबी अप्रतिम है। इधर विशाल झाड़-फानूस लगे हैं। उन्हें देखकर एक बार तो लगता है कि आप किसी महल में आ चुके हैं। यहां ही भगवान विष्णु की मूर्ति ऱखी हुई है। ये होटल में पहले दिन से है। आप लॉबी से निकलकर होटल के गलियारे में पहुंचिए। ये भी इसके मूल मिजाज के मुताबिक खासे बड़े हैं।
अशोक होटल से पहले राजधानी में कायदे के दो ही फाइव स्टार इंपीरियल और ओबराय मेंडिस हुआ करते थे। अशोक होटल बैंड,बाजा, बारात के लिए भी विख्यात रहा है। इसमें 1968 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने बड़े पुत्र राजीव गांधी की शादी की रिस्पेशन का आयोजन किया था। इधर हजारों शादियां हो चुकी हैं। आप इसकी सीढ़ियों के स्पेस को देखिए। लाजवाब है।
ई.बी.डाक्टर को इधर आने वाले बुजुर्ग तथा गर्भवती महिलाएं दिल में धन्यवाद देते होंगे क्योंकि इधर की सीढ़ियों पर चढ़ने में कतई कष्ट नहीं होता। डाक्टर उन डिजाइनरों में थे जिन्हें मालूम था कि किस तरह से यूजर फ्रैंडली इमारतें बनाई जाती हैं। पर हैरानी की बात है कि उन्होंने दिल्ली में अशोक होटल के बाद किसी अन्य इमारत को डिजाइन नहीं किया।
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Navbharattimes में 21 अक्तूबर को छपे लेख के अंश.