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जन्मदिन मुबारक हो सुनयना ज्ञानरंजन जी / मनोहर बिल्लोरे

 सुनयना के बहाने ज्ञानरंजन जी / मनोहर बिल्लोरे 

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हुई सुंनयना 75 साल की

यह परिवार सार्थक यारी दोस्ती करने और उसे पारिवारिक तौर पर निबाहने में विश्वास रखने वाला परिवार है। इस गहन संसार में हर वय के मित्र मिलेंगे। अलग-अलग मित्र समूह हैं। गांवों कस्बों तक में दूरदराज़ फैले। हर स्तर और विस्तार के उनके मित्र उनके घर तीर्थ यात्रा के लिए आते रहते हैं। उनके प्रति सुनयना जी का उत्साह, समर्पण और आतिथ्य भाव देखते बनता है। संस्कृति के विभिन्न अनुशासनों में उनके ढेरों मुरीद मित्र मिल जायेंगे।


मैं उन्हें (सुनयना जी को) तब से जानता हूँ, जब से ज्ञान जी के अग्रवाल कालोनी वाले घर आना जाना शुरू हुआ। 85 के आसपास। राजेन्द्र चंद्रकांत राय जी की सोहबत में। जाते जाते, धीरे धीरे संकोच घटता गया और आपसी विश्वास आकार लेता गया। 


एक जवान शोध छात्रा आती है और हफ्ते-पन्द्रह दिन रहती है। घर की प्यारी सदस्या बनकर सुनयना जी की गलिबहियाँ करती प्यार से रहती है। अपना काम पूरा कर चली जाती गई।


ज्ञान जी जब 763, अग्रवाल कालोनी का किराये का मकान - जिसमें फर्नीचर आदि सब किराये का था - छोड़कर अपने निजी घर 101, रामनगर, अधारताल में आने वाले थे - 90-91 की बात होगी - उनसे पहले ही उनके घर में में सुरेन्द्र राजन (काकू), राजेन्द्र शर्मा (रज्जू) और ज्ञानरंजन के अनुज मौजूद थे। घर को कलात्मक बनाने का कार्यभार खुद ही आकर संभाल लिया था, काकू ने। परदे, तस्वीर, पोस्टर, पलंग, कुर्सी, ड्रेसिंग टेबिल और और चीज़ें। हर चीज़ की सबसे उपयुक्त जगह और स्थिति काकू ने ही निर्धारित की थी। बाकी लोग बस उनके सहायक बतौर थे। ज्ञान जी के घर में काकू घरू आदमी हैं। रात को भूख लगे तो किचिन में कुछ ढूढ़ ढांढ़ कर खाने पीने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता। ज़रूरत पड़े तो वे ज्ञान जी के बालों की कटिंग भी कर सकते हैं। काकू चीज़ों को तराशने में विश्वास करते हैं। 


विश्वमोहन वडोला का परिवार ज्ञान जी के परिवार से खूबसूरती के साथ गुथा हुआ है। वे आते हैं तो चहल-पहल बढ़ जाती है। और अनेक-अनेक उदाहरण मिल जायेंगे उनकी सघन और सान्द्र मित्रता के।

  

अब यदि सुनयना जी अपने घरेलू दायित्वों का निर्वाह इतनी कलात्मकता से न करतीं तो सम्बन्धों के समत्व की यह प्रगाढ़ता इतने उच्च स्तर की न होती, जितनी उनके साहित्यिक-सांस्कृतिक और गैर साहित्यिक-सांस्कृतिक मित्र-सम्बन्धों में हमेशा से रही है।


सुनयना जी एक जाहिर, प्रतिष्ठित, नागर, वैद्य परिवार के पिता की छह बहनों और एक भाई में तीसरी संतान हैं। उन्होंने अपने बचपन, किशोरपन और शादी से पहले युवावस्था में पिता जी के निर्देश पर घर में जरूर जड़ी बूटियां बांटी-कूटी होंगी। उनके बनाये पेयों-खाद्यों में भी वही गंध मौजूद होती है। सुनयना जी की आदत में आयुर्वेद घुल मिल गया है। मित्रता की बदौलत देश के अलग अलग शहरों से आयी खाद्य वस्तुएँ अपनी विशिष्टता के साथ उनके घर आती हैं और उनका स्वाद उनके स्थानीय मित्रों तक बड़े स्नेह और लगाव के साथ उनकी ही वजह से पहुँचता है। 


उन्हें बागवानी से शौक भर नहीं गहरा राग भी है। घर गमलों से भरा पड़ा है। बाहर चारों ओर तो हैं ही, भीतर और ऊपर भी गमले। उनके साज सम्हाल के लिए नियमित माली। पाशा (शान्तनु) और बुलबल (वत्सला) इसी सुमधुर वातावरण में उपजे, फूले फले और अपनी सार्थक जिंदगी पूरी गरिमा से जी रहे हैं। ज्ञानजी और सुनयना जी ने प्रेम विवाह किया पर उनके दोनों बच्चों के लिए बहू दामाद सुनयना जी और ज्ञानजी को ही मशक्कत कर ढूढ़ना पड़ा है।


ज्ञान जी का यदि नारा है - सर्वोत्तम, सर्वात्कृष्ट, सर्वश्रेष्ठ, सुगठित, सुविचारित, सुस्थिर है; एक कड़ा कठोर और कठिन अनुशासन, यदि ज्ञान जी का साहित्कि मानदण्डों के लिए है तो सुनयना जी उनके लिए घर में भी वह वातावरण बनाने में अपनी पूरी हिस्सेदार के साथ खड़ी होकर उनकी मित्रता की हर कड़ी को और मजबूत बनाने में सजग हिस्सेदारी लेती हैं। ज्ञान जी के सपनों को साकार करने में सुनयना जी की भूमिका किसी भी ओर-छोर उनसे कम नहीं है।


76 वें वर्ष में उनके गरिमामयी प्रवेश पर सुनयना जी को मेंरे परिवार और मित्र परिवारों की ओर से आत्मीय बधाई और सादर हार्दिक शुभ कामनाएँ।  


                                                                                 - 


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