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पत्रकारिता औऱ कमलेश्वर / टिल्लन रिछारिया

जेहन में कमलेश्वर... यूं तो कमलेश्वर जी ज़ेहन में सन 70-71 के दौर से ही चढ़े हुए थे । 'सारिका 'के लघुकथा विशेषांक और दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लों का किसी कहानी पत्रिका में प्रकाशन अद्भुत था । ...उनकी कहानियां , उनके सम्पादन का अंदाज़ हमेशा लुभाता रहा ।'गंगा 'पत्रिका का तेवर , विभिन्न अखबारों में उनके लेख गज़ब का जादू जगाते थे । जिन दिनों ( 1989 ) मैं वीर अर्जुन , नई दिल्ली में था, अरुण खरे ने बताया , आज सहारा इंडिया की प्रेस कांफ्रेंस थी । कमलेश्वर जी के सम्पादकत्व में एक सांस्कृतिक किस्म के दैनिक अखबार के प्रकाशन की घोषणा की गई है ।...मेरे मुंह से सहज ही निकल गया कि घोषणा तो कर दी , निकालेगा कौन , यह सांस्कृतिक अखबार , निकालना हो हमें ही पड़ेगा । ...संयोग ये बना कि हम सहारा के अखबार में गए पर दुर्योग यह कि तब तक कमलेश्वर जी वहां से आगे बढ़ गए थे । ऐसा ही तब हुआ जब बंबई में हम 'श्री वर्षा 'पहुंचे तब श्रीमान जी दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक बन कर दिल्ली आगये । ...कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान'हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी'हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। उन्होंने मुंबई में जो टीवी पत्रकारिता की, वो बेहद मायने रखती है। 'कामगार विश्व’ नाम के कार्यक्रम में उन्होंने ग़रीबों, मज़दूरों की पीड़ा-उनकी दुनिया को अपनी आवाज़ दी ।...उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। 'आंधी', 'मौसम ', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'राम बलराम'की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। लोकप्रिय टीवी सीरियल 'चन्द्रकांता'के अलावा 'दर्पण'और 'एक कहानी'जैसे धारावाहिकों की पटकथा लिखने वाले भी कमलेश्वर ही थे। उन्होंने कई वृतचित्रों और कार्यक्रमों का निर्देशन भी किया।...1995में कमलेश्वर को 'पद्मभूषण'से सम्मानित किया गया और 2003 में उन्हें 'कितने पाकिस्तान'उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे 'सारिका'''जागरण'और 'दैनिक भास्कर'जैसे प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं के संपादक भी रहे। उन्होंने दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक जैसा महत्वपूर्ण दायित्व भी निभाया। कमलेश्वर ने अपने 75 साल के जीवन में 12उपन्यास, 17कहानी संग्रह और क़रीब 100 ( कहीं मैंने पढ़ा था कि उनकी लिखी फिल्मों का आंकड़ा 99 पर अटका था ) फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखीं। खैर कमलेश्वर जी के साथ कामकाज का एक संयोग बना 'कुबेर टाइम्स 'के लिए मीडिया पर कॉलम लिखाने के दौरान । हमारे सहयोगी कृपाशंकर और हम अक्सर उनसे मिलने उनके घर सूरज कुंड जाते ।भेंट मुलाकातें होती रहीं । उनके करिश्माई व्यक्तित्व का सान्निध्य मिलने लगा । उन दिनों शायद वे 'कितने पाकिस्तान 'लिख रहे थे । अक्सर चर्चा में पाकिस्तान आ जाता था । ..अखबार के लिए एक सलाह भी उन्होंने दी थी , पूरा एक पेज पाकिस्तान की खबरों का हो , सियासी खबरे नही ...वहां के समाज , कल्चर , रीति रिवाज़ों , नाटक , कला संस्कृति ,साहित्य की खबरे । जिंदादिल पाकिस्तान की खबरें । ... यह सब थोड़े दौर तक चला जब हमारी डोर इस अख़बार से टूटी तो बोले , अब कॉलम बंद , चलो हमारे साथ मुम्बई चलो । उन दिनों कमलेश्वर जी दूरदर्शन के लिए 'युग 'धारावाहिक लिख रहे थे , मुम्बई के गोकुलधाम सोसाइटी में उनका डेरा पड़ा था , तीन चार कमरों का फ्लैट था । इसी के साथ भास्कर , जयपुर के सम्पादक की जिम्मेदारी भी लिए थे । पहले हमारे लिए भास्कर जयपुर की बात करते रहे फिर बोले , छोड़ो भास्कर , पैसा ठीक नहीं , कम है , मुबई चलो । हम और कृपाशंकर पहुंच गए मुम्बई ।...लगभग रोज मुलाकात होती , उनके व्यक्तित्व के तमाम रंग बिरंगे पन्ने खुलते जाते । युग का लेखन चल रहा था और भास्कर की संपादकी भी , भास्कर से फोन आता तो जल्दी निबटा देते , आकर बताता हूँ । युग के सहयोगी लेखक पूछने आते उस अंग्रेज अफसर का क्या करें ...गोली मार दो ।हमारे देखते देखते चार को तो गोली मरवा चुके थे । हमने पूछा ये क्या है , बोले ये धारावाहिको की स्टाइल है , जब जरूरत होगी जिंदा कर लेंगे , गोली मारी है मरा थोड़े है । ..हमसे कहा , ये सीरियल तो अब उतार की ओर है । आगे मुझे आपके बुंदेलखंड के शूरवीरों आल्हा ऊदल पर सीरियल लिखना है । उसमें आपको साथ रहना हैं । ये जो नज़ारा बयान किया है , अंग्रेज अफसर क्यों मारे जा रहे थे ।..., दरअसल कमलेश्वर जी क्रिकेट मैच के आगोश में हैं , पूरी तरह डूबे हैं , बड़े क्रिकेट प्रेमी हैं ।...एक शाम कमलेश्वर जी हमे और कृपाशंकर को ले कर फिल्मसिटी पहुंचे ,जहां युग की शूटिंग चल रही थी । पहुचे तो सब से परिचय कराया गया , कमलेश्वर की बोले , कहो तो एक रोल लिख दूं आप के लिए । डायरेक्टर साहब सामने हैं सब अभी फाइनल हो जाएगा ...बातों बातों में सही हमने अपने को बड़ा सौभाग्यशाली माना कि हम अपने युग के कितने महान व्यक्ति के साथ हैं ।...कमलेश्वर और उदयन शर्मा जी की खास खूबी यह रही की न कभी खुद हताश दिखे न कभी अपने आसपास वाले को हताश होने देते थे । इनसे मांगो चाँद तारे , अभी लो , काल शाम को मिलते हैं , चांद तारों के साथ । ये पत्रकारिता के मानक गढ़ने वाले लोग हैं , टीवी पत्रकारिता की ए बी सी डी रचने वाला कमलेश्वर के सिवा और कौन है ।


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