लोधी एस्टेट से गुजरते हुए इंडिया हैबिटाट सेंटर (आईएचसी) की डिजाइन के लिहाज से अद्वितीय और अप्रतिम बिल्डिंग को देखकर किसी की भी इसके आर्किटेक्ट को जानने की जिज्ञासा पैदा होने लगती है। उन्हें हाल ही में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हालांकि वे वृद्धावस्था के कारण राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में भाग लेने नहीं पहुंच सके थे। दरअसल आईएचसी को प्रो. बीवी दोषी के अलावा जोसेफ एलेन स्टाइन और जयनारायण भल्ला ने मिलकर डिजाइन तैयार किया था। प्रो. दोशी ने चंडीगढ़ के चीफ आर्किटेक्ट ली कार्बूजिए के साथ भी काम किया था। संभवत: इसलिए ही उनके काम में ली कार्बूजिए का प्रभाव नजर आता है।
आईएचसी की बिल्डिंग का निर्माण 1988 में चालू हुआ और 1993 में यह बनकर तैयार हो गई। इसकी दिवारों पर सीमेंट का लेप नहीं मिलता। इससे यह अलग सी हो जाती है। ये कार्बूजिए का स्टाइल था।
चंडीगढ़ की पुरानी सरकारी इमारतों के बाहरी भागों में सीमेंट का लेप नहीं है। 94 साल के प्रो.दोशी ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ्ट) की बिल्डिंग को भी डिजाइन किया था। यह हौज खास एरिया में है। प्रो. दोशी ने चाहे आईएचसी का डिजाइन किया हो या निफ्ट का, उनकी इमारतों में सूर्य की रोशनी और ताजा हवा के झोंकें आते रहते हैं। वे मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर में पढ़े हैं और उनकी डिजाइन की इमारतें सारे देश में मिलेंगी।
उन्हें स्वतंत्र भारत का अति विशिष्ट आर्किटेक्ट माना जाता है। उन्होंने लंबे समय तक राजधानी के स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में अध्यापन भी किया। अध्यापन उनके दिल के बेहद करीब रहा है। वे मानते रहे हैं कि युवाओं के साथ वक्त बिताने से, उन्हें बहुत नए आइडिया मिलते हैं।
अगर फिर से आईएचसी पर लौटे तो इसकी दिवारों में आप हरी, लाल और ग्रे रंगों की सेरेमिक टाइलें देखते हैं। इनसे इमारत को एक नया रूप मिलता है और चारों तरफ ईंटों को देखने से पैदा होने वाली नीरसता भी भंग होती है। जब आईएचसी का निर्माण हो रहा था तब राजधानी की शुष्क जलवायु को जेहन में रखा गया था। इसलिए यहां की लैंड स्केपिंग पर बहुत फोकस दिया गया।
आपको यहां चप्पे-चप्पे पर हरियाली मिलेगी। जाहिर है, गर्मी के मौसम में हरियाली निश्चित रूप से राहत देती है। प्रो. दोशी और उनके साथियों ने आईएचसी की खिड़कियों के लिए बहुत बड़ा सा स्पेस रखा था। यह सोच-विचार करने के बाद लिया गया फैसला था। खिड़कियों का इस तरह का डिजाइन देकर आईएचसी दिन में सूरज के प्रकाश से जगमग रहती हैं। आईएचसी का पशिचमी भाग लगभग बंद सा है। पश्चिम भाग को बंद रखने से यह तब बच जाती है जब सूरज दिन में 12 से दो बजे तक आग उगल रहा होता है।
दोशी जी ने निफ्ट की बिल्डिंग के चरित्र के मुताबिक इधर कक्षाओं,प्रशासनिक ब्लॉक और हॉस्टल को अलग-अलग भागों में बांटा। यह बिल्डिंग 90 के दशक के शुरू में बन गई थी। इसमें तब वाटर हारवेस्टिंग की व्यवस्था की गई थी जब यह विचार नया-नया सामने आ रहा था।। उन्होंने एक बार कहा था कि जब उन्हें 1985 में निफ्ट को डिजाइन करने का काम मिला तो वह हौज खास में घूमे। तब वहां पर गुजरे दौर के खंडहर जगह-जगह पड़े थे।
आखिर यह सारा क्षेत्र कभी सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी की राजधानी थी। यहां अब भी उस काल के बहुत से खंडहर और दूसरे अवशेष मिल जाते हैं। हौजखास में इतिहास और वर्तमान मिलते हैं। बहरहाल,प्रो.दोशी ने निफ्ट का डिजाइन जीवंत रखा। इधर उन्होंने अनेक बरामदे और गलियारे निकाले जहां पर विद्यार्थी मिलते-जुलते रहें। चूंकि यह एक कला के संसार से जुड़े विद्यार्थियों का शिक्षण संस्थाना हैं, तो उन्होंने इसमें कलात्मकता का पुट डाला है। मेन गेट के पास एक बावड़ी नुमा स्थान का स्पेस भी निकाल दिया।
राजधानी में प्रो.दोशी ने संभवत: दो ही इमारतों का डिजाइन बनाकर अपनी प्रयोगधर्मिता को सिद्ध कर दिया। इन्हें बने हुए तीन दशक हो गए हैं पर ये अब भी समकालीन और श्रेष्ठ लगती हैं।
Vivek Shukla, नवभारत टाइम्स में 18 नवंबर, 2021 को छपे लेख के अंश.
Picture- BV दोषी