हिंदी पत्रकारिता में भाषा की शुद्धता और शुचिता के प्रबल पक्षधर वरिष्ठ फिल्म समीक्षक आनंद गहलोत का बुधवार की सुबह निधन हो गया।वे एक साल बाद अपनी उम्र का शतक पूरा करनेवाले थे।उनकी पुत्री दिग्गज फिल्म पत्रकार दीपा गहलोत ने उनका अंतिम संस्कार किया।
हिंदी पत्रकारिता में आनंद गहलोत उस पीढ़ी के प्रतिनिधि थे जहाँ पत्रकारिता जुनून थी।संस्कार थी।समर्पण थी।वे भाषा की शुद्धता, शब्दों का सही उपयोग और वर्तनी की शुचिता के प्रति अत्यंत सजग और सक्रिय रहते थे।पत्रकारिता उनके लिए एक मिशन थी।यही वजह थी कि सरकारी नौकरी को छोड़कर वे दिग्गज फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास की पत्रिका 'सरगम'से जुड़ गये। उसके बाद वे लगभग ढाई दशक तक 'नवभारत टाइम्स'से जुड़े रहे।उनका यह जुड़ाव सेवानिवृत्त होने के बाद भी जारी रहा।वे दो दशक तक फिल्म समीक्षा व अपना स्तम्भ 'शब्दों का सफर'लिखते रहे।इसी नाम से उनकी पुस्तक भी प्रकाशित है।
आनंद गहलोत का जाना उस पीढ़ी के प्रतिनिधि की विदाई है जो शब्दों की उत्पत्ति,उनका इतिहास,उनकी व्यंजना और सही जगह,उनके सही इस्तेमाल के लिए चिंतित भी रहता था,सक्रिय भी।फिल्मी पत्रकारिता का यह इनसाइक्लोपीडिया दैनिक अखबारों में भी भाषा की शुद्धता का पैरोकार था।मुझ जैसे तमाम पत्रकार भाषा के मुद्दे पर जब भी कहीं अटकते तो उनके तारणहार वे ही होते थे जो सप्रमाण और विस्तार से शब्द और उसका महत्व बताते।आज सिर्फ सन्नाटा है।अरसे तक उनकी कमी खलती रहेगी।
उम्र के अंतिम पड़ाव पर भी वे सक्रिय थे और फारसी व सँस्कृत के शब्दों के एक विश्वकोश को बनाने में जुटे थे जिसे ईरान सरकार का सहयोग मिल रहा था।
आज स्तब्ध है मुम्बई का हिंदी समाज।फिल्म और भाषा के प्रति इतना जुड़ाव,समर्पण और जानकारी रखनेवाला दूसरा आनंद गहलोत अब कहाँ मिलेगा?
अक्षरों और शब्दों को,उनके अतीत को, वर्तमान से जोड़नेवाले शब्दशिल्पी को सादर नमन।आपको कभी नहीं और कैसे भूल सकत है हिंदी समाज,हिंदी पत्रकारिता?
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