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रवि अरोड़ा की नजर से.....

 जाती बहार / रवि अरोड़ा



जाने माने अंतरिक्षविद व पुराने मित्र अमिताभ पांडे अरसे बाद मिले । मौका था बच्चियों के एक स्कूल में उनके भाषण का । विषय भी बेहद रोचक था- हिस्ट्री ऑफ लाइफ । अमिताभ पांडे घुमक्कड़ हैं और अपनी स्पोर्ट्स साईकिल से शहर शहर घूमते रहते हैं । वे पुराने रंगकर्मी हैं और पेंटिंग में भी उन्हें गज़ब की महारथ हासिल है । सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर यशपाल के साथी रहे अमिताभ पिछले कई सालों से स्कूलों में जाकर जाकर विज्ञान की अलख जगाते हैं और अपने टेलीस्कोप से बच्चों को चांद सितारों की दुनिया की भी सैर कराते हैं । लगभग एक घंटे के अपने ताज़ा प्रजेंटेशन में अमिताभ ने पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत और उसके विस्तार पर प्रकाश डाला और धरती के जन्म से लेकर अब तक की कहानी बच्चों को समझाई । 


अमिताभ बच्चियों को समझा रहे थे कि पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत, अफ्रीका से इंसान की उत्पत्ति, इंसानों के सभी द्वीपों पर फैलाव, हड़प्पा जैसी सभ्यताओं की शुरुआत और फिर धीरे धीरे इंसान के वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने तक कितने करोड़ वर्ष लगे । उन्होंने बताया कि आज जिस विज्ञान को हम जानते हैं , उसे अभी मात्र चार सौ साल हुए हैं । चार सौ साल पहले तक की पृथ्वी, आकाश, जीवन और पराजीवन संबंधी हमारी तमाम पुरानी मान्यताएं विज्ञान के समक्ष अब धराशाई हो चुकी हैं । 


अमिताभ तो अपना भाषण देकर चले गए मगर मैं अभी तक उसी में उलझा हूं । बेशक उन्होंने ऐसी कोई नई बात नहीं बताई थी जो बचपन से ही किसी न किसी रूप में मेरे आपके तक पहुंचती न रही हो मगर लगातार एक घंटा जीवन जैसे गूढ़ विषय पर कोई उम्दा व्याख्यान सुनना भी एक किस्म का अलग ही अनुभव होता है । वैसे मेरी उलझन का कारण वे सवाल भी हैं जो ऐसे व्याख्यानो से जन्मते हैं । सवाल यह है कि धरती चपटी है, सूर्य पृथ्वी के चक्कर काटता है , ग्रहण में चांद को राहु निगल लेता है और सात आसमानों जैसी स्थापित युगों पुरानी मान्यताएं जब विज्ञान के समक्ष धाराशाई हो सकती हैं तो ऐसी मान्यताओं के जन्म दाता धर्म भी कब तक टिकेंगे ? कोई भी धर्म हो, कोई भी आसमानी किताब हो धरती, आकाश और जीवन को लेकर कपोल कल्पनाएं ही तो परोसती हैं । पुराने से पुराना धर्म भी पांच हजार साल से अधिक पुराना नहीं है जबकि इंसानी यात्रा लाखों साल से बिना रुके चल रही है । उम्मीद की जानी चाहिए कि यह यात्रा युगों युगों तक अभी और चलेगी । यदि चलेगी तो क्या उन तमाम धर्मों को भी वह अपनी पीठ पर ढोए रखेगी जो अवैज्ञानिक हैं अथवा उनसे भी गलत मान्यताओं की तरह पीछा छुड़ा लेगी ? यदि धर्म इंसान के समानांतर चलेंगे तो क्या विज्ञान खुल कर सांस ले पाएगा और कुछ नया खोज पाएगा ? और यदि तमाम धर्म कहीं पीछे छूट जाने वाले हैं तो यह पल आने में अभी कितना समय बाकी है ? वैसे आपकी राय तो आप ही जानें मगर मुझे तो लगता है कि इंसान पर धर्म की पकड़ धीरे धीरे कमजोर हो रही है । बेशक धर्म का प्रदर्शन चहुंओर बढ़ा है मगर यह मरते हाथी की चिंघाड़ जैसा ही है । ईसाइयत और चर्च का अब वह जलवा नहीं कि वह फिर से  सत्ता से भी बड़ी सत्ता बन सके । इस्लाम भी विज्ञान के समक्ष नतमस्तक नजर आ रहा है और उस दुनिया से कदम ताल करने का प्रयास कर रहा है जिसे मॉडर्न दुनिया कहा जाता है । हिंदू धर्म भी अब धर्म कम और राजनीतिक हथियार अधिक हो गया है । सवाल फिर वही पुराना है कि जब धर्म की विदाई होने जा रही है तो हम क्यों उन खुराफातों के हिस्सा बन रहे हैं जो धर्म के नाम पर हमारे आसपास घटित हो रही हैं ? जाती बाहर के साथ चिपटने का भला क्या फायदा ?




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