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इफ्तेखार खान का सफर

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 22 फरवरी 1920 को जालंधर में जन्मे इफ्तेखार बॉलीवुड में सिंगर बनने आए थे लेकिन उनकी किस्मत ऐसी पलटी कि उन्हें एक्टिंग में ही मजा आने लगा। देखते-देखते वो बड़े स्टार बन गए। चार मार्च 1995 को इफ्तेखार का निधन मुंबई में हुआ था। आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर जानिए इफ्तेखार के यादगार किरदारों के बारे में...


मिर्जा गालिब (1954) में बादशाह का रोल


सिनेमा प्रेमी अभिनेता इफ्तेखार को पुराने जमाने की फिल्मों में पुलिसवाले की अनगिनत भूमिकाओं के लिए बखूबी जानते हैं लेकिन एक जैसे नजर आते उन किरदारों से इतर जो उनका जीवन था, वो काफी रोचक और संघर्षों से भरा हुआ था केएल सहगल से प्रभावित इफ्तेखार गायक बनना चाहते थे और उन्होंने 1942 के आसपास कलकत्ता में एचएमवी कंपनी द्वारा रिलीज एक प्राइवेट एलबम के लिए दो गाने भी गाए थे। मगर उनकी कदकाठी और भाषा पर पकड़ ने उन्हें कलकत्ता में बनने वाली फिल्मों का हीरो बना दिया। 1954 में इफ्तेखार ने मिर्जा गालिब फिल्म में बादशाह का रोल किया और दर्शकों के बीच अपनी एक्टिंग से लोकप्रिय हो गए। इस फिल्म में भारत भूषण और सुरैया मुख्य भूमिकाओं में थे। 


कलकत्ता में ही उन्होंने एक यहूदी लड़की से शादी भी की। कुछ सालों बाद जब भारत का विभाजन हुआ तो दंगों की आग उन्हें बॉम्बे ले आई जहां काम की तलाश में कुछ अरसे भटकने के बाद उनकी मुलाकात अशोक कुमार से हुई जिनसे वे कलकत्ता में पहले सिर्फ एक बार मिले थे। इसके बाद दादा मुनि के कहने पर कलकत्ता की फिल्मों के हीरो को बॉम्बे की फिल्मों में छोटे-मोटे रोल मिलने लगे। 1955 में आई देवदास में इफ्तेखार ने बीजूदास का रोल किया था।


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1955 में आई राज कपूर की 'श्री 420'में इफ्तेखार ने पहली बार पुलिस इंस्पेक्टर का रोल किया था। इस फिल्म से पुलिसवाले के रोल में इफ्तेखार को बड़ी पहचान मिल गई। जिसके बाद एक-एक करके उन्हें कई फिल्में ऑफर हुईं जिनमें उन्हें पुलिसवाले का रोल ही दिया गया। 


साल 1957 में अमर कुमार के निर्देशन और राज कपूर के प्रोडक्शन में बनी फिल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं'में एक बार फिर इफ्तेखार को पुलिस इंस्पेक्टर बना दिया गया। इस फिल्म से इफ्तेखार मशहूर हो गए। 


1963 में आई बिमल रॉय की फिल्म 'बंदिनी'में इफ्तेखार ने चुट्टी बाबू का रोल किया। इस रोल से वो इतना मशहूर हुए कि उनकी पिछली पहचान भी बदल चुकी थी। चुट्टी बाबू के रोल में इफ्तेखार की दमदार एक्टिंग के सभी कायल हो गए थे। 


बॉम्बे आने के बाद 1950 और 60 के दशक में इफ्तेखार ने 70 से ज्यादा फिल्मों में काम किया लेकिन न उन्हें कामयाबी मिली और न ही दर्शकों ने उन्हें पहचाना लेकिन जब 1969 में बीआर चोपड़ा निर्मित और राजेश खन्ना अभिनीत ‘इत्तेफाक’ आई, जिसमें उन्होंने एक पुलिसवाले की भूमिका निभाई थी, तो उनकी तकदीर हमेशा के लिए बदल गई। इसके बाद वे फिल्मों में बतौर पुलिस वाले इस कदर व्यस्त हुए कि न सिर्फ जल्द ही बॉम्बे में अपना फ्लैट खरीद लिया बल्कि 1970 और 80 का दशक इफ्तेखार के जीवन का स्वर्ण-काल साबित हुआ। 


‘इत्तेफाक (1970)’ में पुलिसवाले का किरदार निभाने से पहले इफ्तेखार 70 फिल्में कर चुके थे लेकिन उन्हें इन फिल्मों से कोई पहचान हासिल नहीं हुई। मगर इफ्तेखार सिर्फ अभिनेता और गायक नहीं थे। वो एक पेंटर भी थे जिससे खुद दादा मुनि यानी अशोक कुमार ने पेंटिग करना सीखा और उन्हें इस विधा में अपना ‘गुरु’ माना। इफ्तेखार कितने उम्दा चित्रकार थे यह इस बात से भी पता चलता है कि ‘दूर गगन की छांव में’ नामक फिल्म की शुरुआत उनकी बनाई तस्वीरों से ही हुई थी।  


1964 में आई बॉलीवुड की रोमांटिक फिल्म 'संगम'में इफ्तेखार पहली बार एयरफोर्स ऑफिसर बनकर सामने आए। पुलिस के बाद वायु सेना की वर्दी में भी इफ्तेखार जबरदस्त दिखे। फिल्म उस साल की सबसे बड़ी हिट साबित हुई थी। 


जंजीर में पुलिस कमिश्नर सिंह


प्रकाश मेहरा की फिल्म जंजीर (1973) में इफ्तेखार अमिताभ के सीनियर पुलिस कमिश्नर सिंह के रोल में दिखे। इस फिल्म से जहां अमिताभ ने बॉलीवुड में अपनी एक खास जगह बनाई वहीं इफ्तेखार अपने पिछले रोल से और भी बेहतर दिखे।  


1978 में आई चंद्रा बरोत की 'डॉन'फिल्म में डीएसपी डिसिल्वा के रोल ने इफ्तेखार को सपोर्टिंग रोल का उस्ताद बना दिया था। इस फिल्म के लिए अमिताभ को जहां बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला वहीं इफ्तेखार का नॉमिनेशन बेस्ट सपोर्टिंग रोल के लिए हुआ था। 70-80 के दशक में अमिताभ जब सुपस्टार बन चुके थे तब इफ्तेखार उनकी तमाम फिल्मों में देखे गए। डॉन की गिनती हिंदी सिनेमा के बेहतरीन फिल्मों में होती है और ये उस साल की सबसे बड़ी हिट में से एक थी। 

   

सौजन्य  विजय जैन जी

मुंबई डेस्क, अमर उजाला


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