माखनलाल चतुर्वेदी यानी हिंदी पत्रकारिता के इतिहास का वह न भूलनेवाला कालखण्ड जिसने यह साबित किया कि अपनी प्रतिबद्धता,समर्पण और कलम की धार के आगे कुछ भी नहीं है।वे मूल्याधारित पत्रकारिता के ऐसे पुरोधा थे जो न धमकियों से डरे,न छापों से और न ही जेल जाने से। 'कर्मवीर'जब आर्थिकता के कमजोर मोड़ पर आ गया तब भी उन्होंने कोई समझौता नहीं किया।युवा पीढ़ी जब भी इस इतिहास को देखेगी,पढ़ेगी उसे अपने अतीत पर दर्प भी होगा,गर्व भी।
केंद्रीय साहित्य अकादमी की nस्थापना (1954) के साथ ही पहला साहित्य अकादमी पुरस्कार और भारत सरकार के पदम भूषण से सम्मानित इस इतिहास पुरुष की आज जयंती है।'पुष्प की अभिलाषा'जैसी कालजयी रचना के इस कवि को आज जयंती पर शत शत नमन।
अक्षरों के इस सेनापति को कभी नहीं भुला सकती हिंदी पत्रकारिता।