पश्चिम बंगाल के हंसखली (नदिया) में नाबालिग लड़की के कथित बलात्कार और हत्या की घटना अशोभनीय और निंदनीय तो है ही; लेकिन उस पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अनावश्यक टिप्पणी बेहद चौंकाने वाली है। मानवीय संवेदना को झकझोरने वाले ऐसे दुष्कृत्य पर इतनी असंवेदनशीलता के प्रदर्शन से तो यही लगता है कि वे केवल और केवल राजनीति में जीती हैं। ऐसी निर्मम राजनीति जिसमें मनुष्य मनुष्य नहीं होता, केवल वोट होता है! थोड़ी देर को मान भी लें कि मारी गई नाबालिग लड़की किसी प्रेम प्रसंग की दुर्भाग्यपूर्ण परिणति का शिकार हुई, तो भी क्या उस राज्य की मुख्यमंत्री का जनसभा में यह फ़तवा जारी करना शोभनीय और उचित हो सकता है कि यह एक लव अफेयर था और लड़की के परिवार को भी इसकी जानकारी थी? मुख्यमंत्री ने अपने चिर-परिचित आक्रामक अंदाज़ में कहा है कि “मीडिया में दिखाया जा रहा कि कथित रेप के कारण एक नाबालिग की मौत हो गई। यह रेप था, या वह प्रेग्नेंट थी, या लव अफेयर था, किसी ने जाँच की है?"उन्हें कौन बताए कि जाँच आपकी खुद की ज़िम्मेदारी है? पर उनका बयान तो जाँच के बिना ही फैसले पर पहुँचने का सूचक है। ऐसे में उनके नियंत्रित तंत्र से किसी निष्पक्ष जाँच की उम्मीद नहीं की जा सकती।
सहज सवाल है कि ममता बनर्जी इस मसले पर इतनी बौखलाई हुई क्यों हैं कि उन्हें न दुष्कर्म दीख रहा है, न मृत्यु? ऐसा इसलिए कि इस कथित सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में मुख्यमंत्री की अपनी पार्टी तृण मूल कांग्रेस के एक नेता के बेटे को गिरफ्तार किया गया है। नेतापुत्र का नाम आ जाने से मुद्दा राजनीतिक बन गया है। विपक्ष का हमलावर होना भी स्वभाविक है। लेकिन इस पर ममता बनर्जी का यह रुख पूर्णतः स्त्रीद्रोही और दुर्भाग्यपूर्ण है।
मुख्यमंत्री महोदया को लगता है कि इस मामले को उछाल कर भाजपा बंगाल की छवि को खराब कर रही है। उन्होंने किसी घाघ राजनीतिबाज की तरह यह भी कहा है कि जान देकर भी वे बंगाल की छवि की रक्षा करेंगी। लेकिन उन्हें बंगाल की छवि की नहीं, तृण मूल कांग्रेस के उस नेता-पुत्र की रक्षा की चिंता शायद ज़्यादा सता रही है! उन्होंने अपने राज्य की तुलना दूसरे राज्यों से करते हुए उनका भी मजाक उड़ाया है। लेकिन खुद उनका बयान उन पुरुषवादी नेताओं से कहीं अधिक अभद्र और अपमानजनक है जो कहते रहे हैं कि लड़कों से गलती हो ही जाती है! ममता बनर्जी कह रही हैं कि "अगर एक कपल रिलेशनशिप में है, तो हम कर ही क्या सकते हैं? यह उत्तर प्रदेश नहीं है कि मैं लव जिहाद के खिलाफ अभियान चलाऊँगी। यह उनकी निजी स्वतंत्रता है। लेकिन अगर कुछ गलत हुआ है तो पुलिस गिरफ्तारी करेगी. उन्होंने गिरफ्तारी की भी है। पुलिस इसमें कोई भेदभाव नहीं करेगी।"पुलिस के करने को तो आपने कुछ छोड़ा ही नहीं, महोदया! इस बयान के रूप में आपने उन्हें एक गढ़ी-गढ़ाई थ्योरी पकड़ा दी है न? पुलिस कुछ हाथ-पाँव मारती भी, तो आपने उसकी भी संभावना यह कह कर समाप्त कर दी कि 'मुझे बताया गया है, लड़की का लड़के के साथ अफेयर था। लड़की की मौत 5 अप्रैल को हुई और पुलिस को इसके बारे में 10 तारीख को पता चला। अगर 5 अप्रैल को उसकी मौत हुई तो परिवार वाले उसी दिन पुलिस के पास क्यों नहीं गए? उन्होंने शव का अंतिम संस्कार कर दिया। वे कहाँ से सबूत जुटाएँगे?” अब भला पुलिस क्यों कुछ करेगी? उसकी तरफ से आपने तो फाइनल रिपोर्ट लगा कर एक तरह से फ़ाइल ही बंद कर दी है न! दुष्कर्म-पीड़िता पर दोषारोपण का ऐसा उदाहरण आप ही प्रस्तुत कर सकती हैं!
वह तो भला हो कलकत्ता उच्च न्यायालय का जिसने इस मामले की सीबीआई जाँच के आदेश दे दिए हैं और पुलिस से मामले को केंद्रीय एजेंसी को सौंपने को कहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मामले की निष्पक्ष जाँच पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के साथ ही राज्य के लोगों में विश्वास भी पैदा कर सकेगी। 000