शोधादर्श के बिजनौर विशेषांक के लिए
महावीर त्यागी जी क़ो याद करते हुए -- (संस्मरण)
-अमन कुमार त्यागी
सवतंत्रता सेनानी महावीर त्यागी का जन्म 31 दिसंबर, 1899 को अपनी ननिहाल ग्राम ढबारसी जिला मुरादाबाद (अब अमरोहा) में हुआ था। जबकि उनका पैतृक गांव जनपद बिजनौर का रतनगढ़ था। मेरठ में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने ब्रिटिश सेना के इमरजेंसी कमीशन प्राप्त किया था। महावीर त्यागी निडर और स्पष्ट बोलने वाले थे। यही कारण था कि 1919 में जलियावाला बाग हत्याकांड के बाद ब्रिटिश सेना के इमरजेंसी कमीशन से त्यागपत्र देकर सवतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। सेना ने उनका कोर्ट मार्शल कर दिया। जिसकी सजा उन्हें अनेक बार जेल जाकर चुकानी पड़ी। अंग्रेजों द्वारा वो 11 बार गिरफ्तार किए गए, एक किसान आंदोलन के दौरान जब उनको गिरफ्तार करके यातनाएं दी गईं तो गांधीजी ने इसके लिए अंग्रेजों की आलोचना यंग इंडिया में लेख लिखकर की। वह अपने आदर्शों से कहीं भी समझौता करते हुए दिखाई नहीं देते हैं। चाहे उनका जेल जीवन रहा हो अथवा संविधान सभा या फिर लोकसभा और राज्य सभा ही रही हो। सभी स्थानों पर आप वह अपने आदर्शों पर अड़े रहे। अंग्रेज सरकार ने उन पर देशद्रोह का केस लगा दिया था और पूरी कोशिश थी कि महावीर त्यागी की अकड़ को खत्म कर सके, लेकिन एक सैन्य अधिकारी रहने वाले महावीर त्यागी को ना झुकना कुबूल था और ना ही माफी मांगना।
हाज़िर जवाबी में तो आपका कोई सानी नहीं था। देहरादून का पूरा क्षेत्र उनका घर प्रतीत होता था। इन्हें देहरादून का सुल्तान या डिक्टेटर भी कहा जाता था। इनके आदर्शों और विचारों के कारण ही महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरु और रफी अहमद किदवई जैसे नेता इन्हें स्नेह देते थे और ‘प्रिय महावीर त्यागी जी’ कहकर संबोधित करते थे। भारत के बटवारे के समय 1947-48 के साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के लिए इन्होंने कुछ स्वयंसेवक एकत्र किए और उनके साथ पुलिस की वर्दी पहनकर एक विशेष बल तैयार किया जिसे लोग ‘त्यागी पुलिस’ के रूप में जानते थे।
जिन दिनों अक्साई चिन चीन के कब्जे में चले जाने को लेकर विपक्ष ने हंगामा काट रखा था। नेहरू को उम्मीद नहीं थी कि उनके विरोध में सबसे बड़ा चेहरा उनके अपने मंत्रिमंडल में शामिल महावीर त्यागी का होगा। चीन से हार पर नेहरू को भरी संसद में मंत्री ने दिखाया था गंजा सिर और कहा था, ‘ये भी बंजर है इसे भी चीन को दे दूं।’ 1962 के युद्ध को लेकर संसद में काफी बहस हुई। जवाहर लाल नेहरू ने संसद में ये बयान दिया कि, अक्साई चिन में तिनके के बराबर भी घास तक नहीं उगती, वो बंजर इलाका है। तभी भरी संसद में महावीर त्यागी ने अपना गंजा सर नेहरू को दिखाया और कहा, ‘यहाँ भी कुछ नहीं उगता तो क्या मैं इसे कटवा दूं या फिर किसी और को दे दूं।’ महावीर त्यागी ने सिद्ध कर दिया कि वे सच्चे देशभक्त हैं। महावीर त्यागी को देश की एक इंच जमीन भी किसी को देना गवारा नहीं था, चाहे वो बंजर ही क्यों ना हो।
-शेष पढ़ें शोधादर्श के बिजनौर अंक में