पाठकीय पाठ: रेत समाधि
* रेत समाधि उपन्यास नहीं है, यह एक संयुक्त परिवार की महागाथा है। खुद लेखिका ने भी जगह-जगह इसे गाथा कहा है।
* यह एक मार्मिक, कौतुकपूर्ण, बेहतरीन और विनम्र आख्यान है।
* इसका कथ्य तो अद्वितीय है ही, इसका कहन भी बेजोड़ और विस्मयकारी है।
* यह एक आवारा लेकिन चिंतनीय कथानक है जिसकी भाषा बंजारों सी भटकती है।
* ऐसी भाषा सीखी नहीं जा सकती,वह इनबिल्ट होती है। चालू अर्थों में इसे गाॅड गिफ्ट कह सकते हैं।
* इसे एक सिटिंग में आनंददायक ढंग से नहीं पढ़ा जा सकता। यह एक तकलीफदेह किताब है, इसे इसकी तकलीफ में शामिल होकर समझा जा सकता है।
* यह किताब अपने पूर्ववर्ती कुछ अनूठे लेखकों,यथा- कृष्णा सोबती, कृष्ण बलदेव वैद,विनोद कुमार शुक्ल, निर्मल वर्मा के योगदान को कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करती है।
* इस गाथा का पहला चैप्टर थोड़ा कठिन,दुर्बोध और थका देने वाला है लेकिन उसके बाद किताब खुल जा सिमसिम की तरह खुलती जाती है।
* और अंत में एक कठोर सच्चाई- अगर इसे बुकर प्राइज नहींं मिलता तो यह इतनी जरूरी किताब बड़े स्तर पर अपठित भी रह जा सकती थी।
पूरे तीन सौ पिचहत्तर पेज तेरह दिन में ठहर ठहर कर पढ़ने के बाद की गई टिप्पणी।
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