विगत 26 अप्रैल की एक खबर आपको दोबारा पढ़वाना चाहता हूं । हरियाणा के भिवानी में एक 23 वर्षीय युवक पवन ने पेड़ से लटक कर आत्महत्या कर ली। यह पेड़ उसी स्कूल के मैदान में था जहां पिछले कई साल से पवन पसीना बहा कर फौज में भर्ती की तैयारी कर रहा था । उसने मेडिकल और फिटनेस दोनो एग्जाम पास कर लिए थे मगर इसी बीच कोविड के चलते भर्तियां बंद हो गईं और दोबारा शुरू होने के इंतजार में ही उसकी योग्यता हेतु अधिकतम उम्र सीमा पार हो गई । मरने से पहले अपने पिता के नाम चिट्ठी में पवन ने लिखा कि पिता जी इस जन्म में तो फौजी नहीं बन सका मगर अगले जन्म में जरूर बनूंगा । पवन से मिलती जुलती ही एक खबर अभी अभी फिर पढ़ने को मिली । हरियाणा के ही रोहतक के पीजी हॉस्टल में सचिन नाम के एक नवयुवक ने आत्महत्या कर ली । सचिन भी सेना में भर्ती होने की तैयारी कर रहा था और अब इस भर्ती के लिए लाई गई सरकार की अग्निपथ योजना के चलते निराशा के गर्त में चला गया था । फौज में भर्ती का सपना टूटने पर पवन और सचिन जैसे ही अपनी इहलीला समाप्त करने वाले युवकों की इस देश में एक लंबी फेहरिस्त है ।
मेरा लगभग रोज ही अनेक गांवों से होकर गुजरना होता है । भरी दुपहरी में किशोर और नवयुवक सड़कों पर दौड़ लगाते दिखते हैं । दरअसल फौज में भर्ती एक ऐसा सपना है जो मुल्क की ग्रामीण आबादी लेकर ही पैदा होती है । यदि चुन लिए गए तो मान सम्मान , पैसा, शोहरत और अच्छी जगह शादी तो हो ही जाती है और यदि शहादत भी मिली तो भी परिवार ही नहीं पूरे खानदान का नाम रौशन हो जाता है । उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और बिहार के ग्रामीण अंचल में छुट्टी पर आए फौजी किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं होते । शायद यही वजह है कि हर साल लाखों नवयुवक इस भर्ती की तैयारी करते हैं और अब पिछले दो साल से भर्ती बंद होने के बावजूद उनके उत्साह में दो दिन पहले तक कोई कमी भी नहीं आई थी । अब 14 जून को सरकार ने घोषणा कर दी कि उसकी अग्निपथ योजना के तहत यह भर्ती अब केवल चार साल के लिए होगी और सेवा समाप्त होने पर सेवानिवृत सैनिकों को मिलने वाला लाभ भी नहीं दिया जायेगा तो ग्रामीण नवयुवकों को यह अपने सपने की हत्या जैसा लग रहा है और गुस्से में वे तोड़फोड़, आगजनी और हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं ।
पता नहीं क्यों मुल्क के रहनुमाओं को नए नए प्रयोग करने में मज़ा आता है ? लगातार एक के बाद एक असफल हो रहे प्रयोगों के बावजूद उन्हे ऐसा कुछ करने में न जाने क्यों जरा भी हिचकिचाहट नहीं होती ? इस अग्निपथ योजना से देश की सुरक्षा पता नहीं कितनी मजबूत होगी अथवा कितनी कमज़ोर , यह तो आने वाला समय बताएगा मगर इतना तो साफ दिख ही रहा है कि फौजियों को मिलने वाली पेंशन सरकार की आंख में खटक रही है और यह योजना बस पैसा बचाने का टोटका भर है । पाकिस्तान द्वारा किए जाने वाले नित नए षड्यंत्रों , सीमाओं पर चीन के अतिक्रमण और रूस यूक्रेन युद्ध से जन्मे अंतराष्ट्रीय हालात के बावजूद पता नहीं सरकार ने इस अनोखे प्रयोग के लिए यही वक्त क्यों चुना ? आज जब सेना में 97 हजार 177 पद खाली पड़े हैं और इनके लिए लाखों नवयुवक पिछले कई सालों से पसीना बहा रहे हैं , उनके साथ केवल चार साल की भर्ती क्या छलावा नहीं होगा ? क्या यह उचित नहीं होता कि सरकार पुराने पद पुराने तरीके से ही भरती और अग्निपथ जैसी अपनी योजना अगले सालों की भर्ती के लिए रख छोड़ती ? अजब विडंबना है , जिन्हे देश की हिफाजत के लिए हम सालों तक प्रेरित करते रहे अब वही युवक उपद्रवी हो गए और सरकार को उन पर लाठियां भांजनी पड़ रही हैं ।
रवि अरोड़ा:
अग्निपथ : मूर्खता बनाम महामूर्खता
देश में आजकल जो हो रहा है , उसके संकेत अच्छे नहीं हैं । सरकार ने मूर्खता की तो नवयुवक महामूर्खता कर रहे हैं । विरोध जताने को कोई अपना ही घर फूंकता है क्या ? चलो देश का तो जो नुकसान हुआ सो हुआ, इन नवयुवकों के हाथ भी क्या आयेगा ? पहल छात्रों ने की है तो सरकारी तंत्र भी भला कब तक चुप बैठ सकता है । बेशक सरकारी मंशा के तहत दंगाइयों जितनी बेरहम कार्रवाई न हो मगर गिरफ्तारियां और उत्पीड़न तो होना लाजमी है। अजब हालात हैं, लंबे अर्से से देश को जिस नफरत की भट्टी में झौंका जा रहा था उससे तैयार हुआ बारूद ऐसा लक्ष्य हीन होगा यह तो उसके निर्माताओं ने भी नहीं सोचा होगा । उम्मीद कीजिए कि सरकार को अब कुछ अक्ल आ जाए और वह फौज में भर्ती की अपनी इस विनाशक योजना अग्निपथ को वापिस ले ले अथवा उसे इतना लचीला बना दे कि नौजवानों को स्वीकार हो जाए , वरना न जाने अभी और कितनी अशांति और बवाल देखने को हम अभिशप्त होंगे ।
पता नहीं सरकार यह कैसे दावा कर रही है कि उसने लम्बी सलाह मशवरे के बाद यह स्कीम शुरू की है , जबकि सेना के ही अधिकांश पूर्व अफसर इसे विनाशकारी बता रहे हैं । जाहिर है उनसे इस बाबत नहीं पूछा गया । मेजर जनरल गगन दीप बक्शी मोदी सरकार के बड़े हिमायतियों में शुमार होते हैं और न्यूज चैनलों पर छाए रहते हैं , अग्निपथ का जिस तरह से उन्होंने विरोध किया है , उससे उनकी अनभिज्ञता भी स्पष्ट होती है । जनरल वी के सिंह उन चुनिंदा पूर्व सेनाध्यक्षों में शामिल हैं जिनका नाम आम आदमी को आज भी याद है । पिछले आठ सालों से वे मोदी सरकार में महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री हैं मगर उनके बयान से भी स्पष्ट है कि उसने इस बाबत राय नहीं ली गई । ऐसे में भला वे कौन लोग थे जिनकी राय पर सरकार यह योजना लाई ? क्या केवल शहरों में रहने वाले उन चंद पिट्ठू अफसरों की राय पर जो कभी गांव नहीं गए जहां से सैनिक आते हैं ? क्या केवल उनकी राय पर जिन्होंने कभी कोई युद्ध नहीं लड़ा ? फ़ौज की जरुरत युद्ध काल में ही मूलतः होती है , क्या 1962 , 1965 अथवा 1971 के युद्ध में शामिल किसी आला फौजी से भी इस योजना के इम्पेक्ट के बाबत पूछा गया ?
सबको मालूम है कि पेंशन पर खर्च होने वाली एक बड़ी राशि को बचाने के लिए सरकार यह योजना लाई है मगर क्या यह अच्छा नहीं होता कि यह योजना अन्य सरकारी विभागों से पहले शुरू होती और सबसे आखिर में सेना को लिया जाता ? वैसे क्या ही अच्छा होता कि शुरूआत विधायकों और सांसदों पर खर्च होने वाली बड़ी राशि को बचाने से की जाती ? इन जन प्रतिनिधियों में ऐसा क्या है कि दो दिन के लिए भी सांसद अथवा विधायक बनने पर उन्हे आजीवन पेंशन और तमाम अन्य सुविधाएं मिलती हैं जबकि उनका काम नौकरी की श्रेणी में भी नहीं आता ?
लगता है कि सरकार के सारे सलाहकार भस्मासुर ही हैं जिन्होंने यह तथ्य अपने आकाओं से छुपाया कि अग्निपथ योजना से बेस्ट यूथ अब फ़ौज को नहीं मिलेगा । ऐसा क्यों नहीं होगा कि गांवों की सड़कों पर दौड़ रहा नवयुवक पहले पैरा मिलिट्री की तैयारी करेगा जहां कम से कम पक्की नौकरी की गारंटी तो है ? वहां नम्बर नहीं आया तो अपने राज्य की पुलिस में ही चला जाएगा ताकि अपने घर के निकट रहे । कहीं भी नम्बर नहीं आया तब जाकर वह चार साल के लिए अग्निवीर बनना स्वीकार करेगा । क्या दोयम दर्जे के सैनिकों के हवाले होगी अब देश की सुरक्षा ? हे राम ! भगवान ही मालिक है अब तो इस देश का ।