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रवि अरोड़ा कि नजर से....

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 काहे भरमा रहे हो जी / रवि अरोड़ा




ज़माना गालियों का है जी । झूठे दावे, झूठे वादे करने और मलाई उड़ाने के चलते नेता गाली खा रहे हैं तो नेताओं की जूतियां चाटने के कारण अफसरशाही गरियाई जा रही है । भ्रष्टाचार, लेटलतीफी और न्याय को अमीरों की चेरी बनाने के कारण न्यायपालिका अपमानित हो रही है तो सरकारों के भोंपू बनने के कारण मीडिया जगत की भी थुक्का फजीहत जारी है। इन तमाम ताकतों के निराकार स्वामी हमारे लोकतंत्र की भी समय समय पर लानत मलानत होती रही है मगर संविधान की आड़ लेकर अक्सर वह पतली गली से बच निकलता है ।

हालांकि सारी बदमाशियां उसके जहाज़ के सुराखों के चलते ही हैं। बेशक किसी राज्य अथवा केंद्र में जब कोई खुराफात होती है तो लोगों की गालियां उसकी ओर भी रुख कर लेती है मगर आम तौर पर वह निर्बाध ही बना रहता है । आजकल महाराष्ट्र में हो रहे हाई वोल्टेज ड्रामे से यकीनन जनता की तोपों के मुंह उसकी ओर फिर घूमे हैं मगर तमाशों से भरे इस मुल्क में जल्द ही कोई और नया तमाशा होगा और एक बार फिर हमारा कथित लोकतंत्र साफ बच निकलेगा।


वैसे क्या इस पर देश में खुल कर चर्चा नहीं होनी चाहिए कि जिस व्यवस्था को हम लोकतंत्र कह रहे हैं, क्या यही लोकतंत्र होता है ? जनता चुनती ए को है। राज बी करता है। बी टूट कर सी हो जाती है और सारी कमान फिर डी संभालता है। रिजॉर्ट राजनीति ने भी क्या दिन दिखाए हैं । केंद्र में जिसकी सरकार हो वह अपने विरोधियों को सीबीआई, इनकम टैक्स और ईडी के मार्फत टाइट रखता है और यदि विरोधी थोड़ा बहुत बेईमान हुआ तो पालतू ही बना लेता है। राज्य में विरोधी दल की सरकार हो तो केंद्र के नेता वहां जा नहीं सकते और उधर, राज्य सरकार के नेताओं को केंद्र जब चाहे उठा कर बंद कर देता है । सीबीआई जैसे केंद्रीय इदारे विरोधी दल की सरकार वाले राज्य में घुस नहीं सकते और प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति के भी राज्य में जाने पर वहां का मुख्यमंत्री भाव नहीं देता । राज्य और केंद्र सरकार एक ही दल की हों तो योजनाएं और पैसा छप्पर फाड़ कर बरसता है और यदि दोनो अलग हैं तो बस चिट्ठी पत्री ही चलती रहती हैं । हालांकि अब केंद्र सरकारें विरोधी दल की राज्य सरकारों को भंग नहीं करतीं मगर ढंग से राज्य सरकार चल जाए, ऐसा भी नहीं होने देतीं । 


विधायक खरीदने के मामले में गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने इतिहास में हमें ऐसे ऐसे किस्से दिए हैं कि फिल्मी कहानियां मात खा जाएं। महाराष्ट्र में आजकल पुनः चुने हुए विधायकों को सड़कों पर फिल्मी अंदाज़ में निपटाया जा रहा है। शिवसेना के सांसद और प्रवक्ता संजय राउत का अपने बागी विधायकों के लिए बोला गया यह डायलॉग कि कब तक रहोगे गुवाहाटी में कभी तो आओगे चौपाटी में, ने तो फिल्मी डायलॉग राइटरों को भी मात दे दी है। उधर,उत्तर प्रदेश में बुलडोजर से लोकतंत्र को हांका जा रहा है तो केंद्र सरकार ने भी पिछले आठ सालों के अघोषित आपात काल में एक के बाद एक अपने दुश्मन ठिकाने लगाए हैं और यह क्रम नित नए मानक गढ़ रहा है ।

इस पर भी तुर्रा यह है कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र हैं और यह हमारा अमृत काल चल रहा है। समझ नहीं आता कि यह लोकतंत्र है तो राजशाही क्या होती है ? अपने पल्ले तो यह भी नहीं पड़ता कि जब असली लोकतन्त्र हमें चाहिए ही नहीं तो इस तमाम ड्रामे की जरुरत ही क्या है ? एक घोषणा भर ही तो करनी है कि लोकतंत्र की अकाल मृत्यु हो गई है। यूं भी यह बस औपचारिकता भर ही तो होगी, काम तो कब का हो चुका है । काहे भरमा रहे हो जी ।


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