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. प्रो.ऋषभदेवशर्मा की तपस्या का फल है #धूप_के_अक्षर : #निशंक

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हैदराबाद,.  भारत के पूर्व शिक्षा मंत्री और प्रसिद्ध लेखक डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, खैरताबाद, हैदराबाद के सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में #ऋषभदेवशर्माअभिनंदनग्रंथ 'धूप के अक्षर'का लोकार्पण करते हुए कहा कि यह ग्रंथ प्रो. ऋषभदेव शर्मा की जीवन भर की तपस्या का फल है। उनकी इस तपस्या को दक्षिण भारत ने हृदय से स्वीकार किया है जिसके दर्शन उनके अभिनंदन समारोह में हो रहे हैं। वे डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा के प्रधान संपादकत्व में दो खंडों में प्रकाशित प्रो. ऋषभदेव शर्मा के अभिनंदन ग्रंथ के लोकार्पण के अवसर पर  आयोजित समारोह में बोल रहे थे। 


डॉ. निशंक ने इस बात पर विशेष बल दिया कि भारतवर्ष को विश्वगुरु के पथ पर पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए तेलुगु, तमिल, कन्नड, मलयालम, बंगला, मराठी, पंजाबी, असमी आदि सभी भाषाओं को सम्मिलित भूमिका निभानी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि प्रो. ऋषभदेव शर्मा हिंदी के माध्यम से सारी भारतीय भाषाओं के लिए कार्य कर रहे हैं। यह कार्य हैदराबाद में हो रहा है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं। 


अभिनंदन समारोह का उद्घाटन शीर्षस्थ भारतीय लेखक प्रो. एन. गोपि ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि प्रो. शर्मा एक आदर्श अध्यापक और प्रख्यात लेखक ही नहीं हैं, बल्कि वे एक उत्तम मनुष्य भी हैं। दक्षिण में उनका आना भाषा और साहित्य के लिए एक वरदान जैसा है। 


अभिनंदन ग्रंथ की प्रथम प्रतियाँ डॉ. पूर्णिमा शर्मा और लिपि भारद्वाज ने धन्यवाद सहित स्वीकार कीं।


प्रो. ऋषभदेव शर्मा के अभिनंदन समारोह में अध्यक्ष के रूप में प्रो.देवराज (दिल्ली) और अतिविशिष्ट अतिथि रूप में डॉ. पुष्पा खंडूरी (देहरादून) के साथ विशिष्ट अतिथियों के रूप में  प्रो. गोपाल शर्मा, जसवीर राणा, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. वर्षा सोलंकी, डॉ. राकेश कुमार शर्मा, पी. ओबय्या, जी. सेल्वराजन, एस. श्रीधर, प्रो. संजय एल. मादार आदि मंचासीन थे। 


सभी वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुए इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया कि प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने हैदराबाद, चेन्नै और एरणाकुलम आदि में रहते हुए जो कार्य किया, उसका भाषायी और साहित्यिक महत्व ही नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी है। उनका कार्य दक्षिणापथ और उत्तरापथ के मध्य संस्कृति-सेतु का कार्य है। 


आयोजन का संचालन 'धूप के अक्षर'ग्रंथ की प्रधान संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने किया। वैदिक स्वस्तिवाचन के साथ आरंभ हुए लोकार्पण एवं अभिनंदन समारोह में कलापूर्ण सस्वर सरस्वती वंदना शुभ्रा मोहंता ने प्रस्तुत की। 'धूप के अक्षर'ग्रंथ के सहयोगी लेखकों को यह ग्रंथ भेंट भी किया गया। 


इस समारोह में हैदराबाद के साहित्य प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। 'पद्मश्री'वेंकटेश्वर, विनीता शर्मा, वेणुगोपाल भट्टड, अजित गुप्ता,  लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, पवित्रा अग्रवाल, रामदास कृष्ण कामत, सुरेश गुगलिया, जी. परमेश्वर, डॉ. श्रीपूनम जोधपुरी, डॉ. जयप्रकाश नागला, डॉ. रियाजुल अंसारी, डॉ. बी. एल. मीणा, मुकुल जोशी, डॉ. शिवकुमार राजौरिया, रवि वैद, डॉ. एस. राधा, सरिता सुराणा, वर्षा कुमारी, हुडगे नीरज, रूपा प्रभु, उत्तम प्रसाद, नीलम सिंह, नेक परवीन, संदीप कुमार, मुकुल जोशी, डॉ. कोकिला, एफ. एम. सलीम, डॉ. के. श्रीवल्ली, डॉ. बी. बालाजी, डॉ. करन सिंह ऊटवाल, डॉ. अनिल लोखंडे, वुल्ली कृष्णा राव, शीला बालाजी, समीक्षा शर्मा, डॉ.सुषमा देवी, सुनीता लुल्ला, प्रवीण प्रणव, डॉ. गंगाधर वानोडे, डॉ. सी. एन. मुगुटकर, डॉ. रमा द्विवेदी, डॉ. संगीता शर्मा, प्रो. दुर्गेशनंदिनी, डॉ. रेखा शर्मा, चवाकुल रामकृष्णा राव, एम. सूर्यनारायन, प्रवीण, केशव, जे. रामकृष्ण, मुरली, एम. शिवकुमार, नृपुतंगा सी. के., डॉ. के. चारुलता, जी. एकांबरेश्वरुडु, शैलेषा नंदूरकर, जाकिया परवीन, शेक जुबेर अहमद, डॉ. गौसिया सुलताना, विकास कुमार आजाद, पल्लवी कुमारी, निशा देवी, डॉ. पठान रहीम खान, के. राजन्ना, डॉ. एस. तुलसी देवी, डॉ. रजनी धारी, गीतिटिका कुम्मूरी, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. साहिरा बानू बी. बोरगल, डॉ. बिष्णु कुमार राय, डॉ. शक्ति कुमार द्विवेदी, डॉ. ए. जी. श्रीराम, हरदा राजेश कुमार, डॉ. संतोष विजय मुनेश्वर, काज़िम अहमद, और अनेक लोग अंडमान, दिल्ली, वर्धा, खतौली, नांदेड, कर्नाटक, चेन्नै, अहमदाबाद, बनारस से भी पधारे थे।000


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