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कभी निर्वासित तिब्बती सरकार की राजधानी रही मसूरी : अरविंद कुमार सिंह

31 मार्च 1959 को तिब्बत के धर्मगुरु दलाईलामा ने भारत में क़दम रखा था. 17 मार्च को वह  तिब्बत की राजधानी ल्हासा से पैदल ही निकले थे और हिमालय के पहाड़ों को पार करते हुए 15

 दिनों बाद भारतीय सीमा में दाखिल हुए थे. यात्रा के दौरान उनकी और उनके सहयोगियों की कोई ख़बर नही आने पर कई लोग ये आशंका जताने लगे थे कि उनकी मौत हो गई होगी। लेकिन यह सच नहीं था। वह अप्रैल 1959 में मसूरी आये। 

और यहीं निर्वासित सरकार बनाई। बाद में 1960 में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती सरकार की राजधानी स्थानांतरित हो गई थीं। 


प्रधानमंत्री का भारत के सचिव स्तर के अफसर को निर्देश था कि, दलाई लामा की निर्वासित सरकार की राजधानी के लिए उन्हें जो जगह पसन्द हो 

उसे उन्हें दिया जाय और पूरी मदद की जाय। कई जमीनें देखी गई। बहुत ढूढं हुई, अंतिम मुहर हिमाचल के धर्मशाला पर लगी। लेकिन मसूरी ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा और उनकी कैबिनेट को पहला आसरा दिया था। यहीं से साल भर सरकार चलाई गईं।1960 में तिब्बतियों का मसूरी में पहला स्कूल खुला। यहाँ हैप्पी वैली में आज भी करीब पांच हज़ार तिब्बती लोग निवास करते हैं। मसूरी के बाद नीचे दून घाटी में तिब्बती समुदाय का विस्तार हुआ। 


देहरादून के क्लेमेंट टाउन में  काफी संख्या में तिब्बती शरणार्थी रहते हैं. यहाँ एक गेलुग बौद्ध मठ है और उसके पास ही दूसरा पर बड़ा मठ है मिन्द्रोल्लिंग मठ. इनके तिब्बती शैली के भवन, स्तूप और गोम्पा बड़े ही सुंदर लगते हैं. यहाँ धार्मिक शिक्षा, पूजा के मंदिर और भिक्षुओं के रहने के स्थान हैं.


तिब्बती भाषा में मिन्द्रोल्लिंग शब्द का अर्थ है

 याने पूर्ण मुक्ति का स्थान. पहला मिन्द्रोल्लिंग मठ 1676 में तिब्बत में स्थापित किया गया था. देहरादून में छठा मिन्द्रोल्लिंग मठ है जिसकी शुरुआत 1965 में की गई थी. इससे पहले 1959 में चीन तिब्बत में घुसपैठ कर गया था और मठ के लोगों को वहां से भागना पड़ा था. मिन्द्रोल्लिंग मठ बौध दर्शन के वज्रयान या तांत्रिक बौध धर्म का पालन करता है.


क्लेमेनटाउन स्थित बुद्घा टेंपल गार्डन में स्थित मोनेस्ट्री बौद्घ मोनेस्ट्री है। इस महान स्तूप की ऊंचाई 185 वर्ग फुट और चौड़ाई 100 फुट है।  सभी के लाभ और विश्व शांति के लिए इस स्तूप का निर्माण 28 अक्टूबर 2002 में किया गया।


 कुल्हान सहस्त्रधारा रोड़ स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राकांग कांग्यू काॅउसिल की 1985 में स्थापना की गई थी। यहाँ कई बार तिब्बति बौद्ध कांग्यू वंश के संस्थापक भगवान जिग्तेन सुमगाॅन जयंती,  पुण्यतिथि मनाई जाती है। 2018 में राज्यपाल श्री  केके पॉल ने भगवान जिग्तेन सुमगाॅन के  परिनिर्वाण दिवस की 800 वीं वर्षगांठ पर आयोजित स्मृति कार्यक्रम में हिस्सा लिया था।


देहरादून में परेड ग्राउंड के बगल में तिब्बती मार्किट बड़ा प्रसिद्ध था। अतिक्रमण के तहत आज से आठ साल पहले इसके कुछ हिस्से को नगर निगम ने तोड़ दिया था। हालांकि अब भी मार्किट है लेकिन वह रौनक नहीं है जो 2010 तक होती थीं। 

80, 90 के दशक में इसके सामने दून के अच्छे

अच्छे मार्किट फेल थे।तब दून का इतना विस्तार नहीं था। इसकी तुलना नई दिल्ली के  कनॉट प्लेस के भूमिगत पालिका बाजार से होती थीं। 


यह दलाई लामा की मर्सडीज़ कार है जो देहरादून में सुरक्षित रखी गई है। 


शीशपाल गुसाईं



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