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लॉनबॉल स्पर्धा में चार अनजानी, अनपहचानी भारतीय महिला खिलाड़ियों का जलवा / उदय वर्मा

उदय  वर्मा 

कॉमनवेल्थ गेम्स की लॉनबॉल स्पर्धा में चार अनजानी, अनपहचानी भारतीय महिलाओं ने कल मंगलवार को जिस तरह से स्वर्णिम कहानी लिखी, उसकी दूसरी मिसाल शायद ही किसी को मिल सकती है। खासकर उस खेल में जो, पश्चिमी विश्व का लोकप्रिय खेल है और भारत में इस खेल की कोई परंपरा नहीं है, स्वर्ण पदक जीतना एक नयी कहानी रचती है।

 इस भारतीय टीम की चार महिलाओं में से तीन लवली चौबे, पिंकी नयामोनी और रूपा रानी झारखंड की हैं, जबकि चौथी साकिया असम की है। ये चारो देशी समाज की ऐसी महिलाएं हैं, जिन्हें न कभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं मिली, न साधन, ना ही सरकारी सहयोग। यहां तक कि वे जहां रहती हैं, वहां अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी के रूप में भी उन्हें इक्के-दुक्के लोग ही जानते हैं।

चारो छोटे-छोटे पदों पर काम करती हैं और अपना घर-परिवार संभालती हैं। यहां से ऊपर उठना और कॉमनवेल्थ में जा कर बिना किसी कोच के सहयोग के पदक जीतना, वह भी सोने के, कोई मामूली काम नहीं है, बल्कि यह धरती पर गंगा उतारने जैसा ही है। यह गोल्ड भारत में लगातार मजबूत हो रही और अपने लिए नयी-नयी राह बना कर तथाकथित मुख्यधारा को चुनौती दे रही देशी भारतीय समाज की महिलाओं की प्रेरणादायी कहानी भी कह रहा है। 

    

   भारत में लॉनबॉल नया-नया खेल है। दो दशक पहले भारत में आस्ट्रेलिया का एक कोच आया था। तब देश में लॉनबॉल की शुरुआत हो रही थी। उस समय लबली, रूपा, पिंकी और साकिया ने आस्ट्रेलियायी कोच से अल्पकालीन प्रशिक्षण लिया था। प्रशिक्षण के दौरान चारो की दोस्ती हुई और वह पक्की होती चली गयी। साथ ही इस खेल में भारत की स्वर्णगाथा की नींव भी पक्की हो रही थी। भारत की लॉनबॉल महिला टीम  पहली बार 2010 में कॉमनवेल्थ में उतरी थी और तब भी यही चारो खिलाड़ी थे और पदक जीतने के लिए लगातार अपना पसीना बहा रहे थे। इनकी मेहनतऔर लक्ष्य पाने की जिद इस बार कामयाब हुई। उन्होंने सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड को 17-10 से और फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को 16-13 से हरा कर अपने गले में सोने का पदक धारण करने का सपना पूरा कर लिया.. और जब स्टेडियम में राष्ट्रगान की धुन बजी तो पूरा भारत दमक गया। यहां तिरंगे के आगे खड़ी चारों खिलाड़ियों के स्वागत में जो तालियां बज रही थी, वह भारतीय मन को भी तृप्त कर रही थीं। 

  वैसे, जिन हालात में यह टीम कॉमनवेल्थ पहुंची थी, उसमें इनके फेडरेशन को भी पता नहीं था कि यह टीम पदक जीतेगी, वह भी सोने का। लेकिन लवली, रूपा, पिंकी और सैकिया को पता था, उन्हें क्या कर दिखाना है। दिल्ली के यमुना स्पोर्ट्स सेंटर में बिना कोच के, बिना फंड के और बिना किसी विशेष सुविधा के लॉनबॉल की ये बालाएं मेहनत करती रही और अपनी मंजिल का रास्ता बनाती रही। वह खुद ही कोच थी और खुद ही खिलाड़ी थी। और चार महीना बीतते-बीतते यमुना स्पोर्ट्स सेंटर में एक सशक्त कहानी की पूरी पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी थी। 

पदक विजेता इस टीम की मैनेजर अंजू लूथरा का कहना था-हमने वह कर दिखलाया जो हम करना चाहते थे। इन चारों महिलाओं की कहानी देश में न जाने कितने लॉनबॉल खिलाड़ी पैदा करेंगी। महेन्द्र सिंह धौनी के नाम से तो हर कोई रांची को जानता है, अब हमारे नाम से भी जानेंगे।



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