उदय वर्मा
कॉमनवेल्थ गेम्स की लॉनबॉल स्पर्धा में चार अनजानी, अनपहचानी भारतीय महिलाओं ने कल मंगलवार को जिस तरह से स्वर्णिम कहानी लिखी, उसकी दूसरी मिसाल शायद ही किसी को मिल सकती है। खासकर उस खेल में जो, पश्चिमी विश्व का लोकप्रिय खेल है और भारत में इस खेल की कोई परंपरा नहीं है, स्वर्ण पदक जीतना एक नयी कहानी रचती है।
इस भारतीय टीम की चार महिलाओं में से तीन लवली चौबे, पिंकी नयामोनी और रूपा रानी झारखंड की हैं, जबकि चौथी साकिया असम की है। ये चारो देशी समाज की ऐसी महिलाएं हैं, जिन्हें न कभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं मिली, न साधन, ना ही सरकारी सहयोग। यहां तक कि वे जहां रहती हैं, वहां अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी के रूप में भी उन्हें इक्के-दुक्के लोग ही जानते हैं।
चारो छोटे-छोटे पदों पर काम करती हैं और अपना घर-परिवार संभालती हैं। यहां से ऊपर उठना और कॉमनवेल्थ में जा कर बिना किसी कोच के सहयोग के पदक जीतना, वह भी सोने के, कोई मामूली काम नहीं है, बल्कि यह धरती पर गंगा उतारने जैसा ही है। यह गोल्ड भारत में लगातार मजबूत हो रही और अपने लिए नयी-नयी राह बना कर तथाकथित मुख्यधारा को चुनौती दे रही देशी भारतीय समाज की महिलाओं की प्रेरणादायी कहानी भी कह रहा है।