राजू कुमार
हाल के दिनों में मीडिया के स्वरूप में व्यापक बदलाव आया है. तकनीकी विस्तार के साथ-साथ मीडिया की पहुंच व्यापक हुई है. मीडिया के इस विस्तार के साथ चिंतनीय पहलू यह जुड़ा हुआ है कि यह सामाजिक सरोकारों से बहुत ही दूर हो गया है. मीडिया के इस बदले रूख से उन पत्रकारों की चिंता बढ़ती जा रही है, जो यह मानते हैं कि मीडिया का कार्य समाज को जागरूक करना, शिक्षित करना और सामाजिक सरोकारों के प्रति संवेदनशील बनाना है. लेकिन दूसरी ओर उन पत्रकारों की भी कमी नहीं है, जो बाजारीकरण के दौर में मीडिया को व्यवसाय के रूप में देख रहे हैं. इस बहस में सबसे महत्वपूर्ण बात यह आ रही है कि वर्तमान में मीडिया की क्या भूमिका हो?
विकासशील देशों में मीडिया की भूमिका विकास एवं सामाजिक मुद्दों से अलग हटकर हो ही नहीं सकती पर भारत में मीडिया इसके विपरीत भूमिका में आ चुका है. मीडिया की प्राथमिकताओं में अब शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, विस्थापन जैसे मुद्दे रह ही नहीं गए हैं. उत्पादक, उत्पाद और उपभोक्ता के इस दौर में खबरों को भी उत्पाद बना दिया गया है, जो बिक सकेगा, वही खबर है. दुर्भाग्य की बात यह है कि बिकाऊ खबरें भी इतनी सड़ी हुई है कि उसका वास्तविक खरीददार कोई है भी या नहीं, पता करने की कोशिश नहीं की जा रही है. बिना किसी विकल्प के उन तथाकथित बिकाऊ खबरों को खरीदने (देखने, सुनने, पढ़ने) के लिए लक्ष्य समूह को मजबूर किया जा रहा है. खबरों के उत्पादकों के पास इस बात का भी तर्क है कि यदि उनकी ''बिकाऊ''खबरों में दम नहीं होता, तो चैनलों की टी.आर.पी. एवं अखबारों का रीडरशिप कैसे बढ़ता?
तो क्या यह मान लिया जाये कि मीडिया का यह बदला हुआ स्वरूप ही लोगों को स्वीकार है. शायद नहीं, क्योंकि ऐसा मान लेने से मीडिया की परिभाषित भूमिका को हम नाकार देंगे, और वंचितों एवं उपेक्षितों की आवाज बनने का दावा करने वाले, सच का आईना का दावा करने वाले और विकास और सामाजिक सरोकार के प्रतिबध्द रहने वाले मीडिया को हम खो देंगे.
इन्हीं परिस्थितियों के बीच विकास के मुद्दों को मीडिया में बढ़ावा देने का कार्य कर रही भोपाल की एक संस्था विकास संवाद ने चित्रकूट में राष्ट्रीय मीडिया संवाद का आयोजन कर नई उम्मीदें जगाई हैं. संभवत: देश में यह पहला आयोजन है, जिसमें 7 राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, पंजाब के पत्रकारों ने भाग लिया. आयोजन में संपादक, वरिष्ठ पत्रकार, स्वतंत्र पत्रकार, वरिष्ठ उप संपादक, उप संपादक, संवाददाता, जिला संवाददाता, पत्रकारिता के प्राध्यापक एवं पत्रकारिता के विद्यार्थियों ने शिरकत की.
संवाद का स्वरूप अनौपचारिक रखा गया था, जिसमें प्रतिभागियों को अपने अनुभवों एवं अतीत को खंगालने का मौका मिला. जिस मकसद को लेकर यह अयोजन किया गया, उसकी शुरुआत सफर के साथ ही शुरू हो गई थी, जब विभिन्न संस्थानों के पत्रकार काम के दबाव के बाहर आकर एक दूसरे से मिलें. कई पत्रकार पिछले 4-5 वर्षों से फोन पर चर्चा करते रहे थे, पर आपस में कभी मिले ही नहीं थे, कई वर्षों बाद आमने-सामने हुए. सभी ने अपनी यादों के गर्द को साफ करना शुरू कर दिया - किस मकसद के लिए है पत्रकारिता, किस ओर जा रही है पत्रकारिता, क्या है दबाव, कहां से आ पड़ रहा है दबाव, कौन कहां क्या कर रहा है के साथ-साथ हास-परिहास.
राष्ट्रीय मीडिया संवाद को कई सत्रों में विभाजित किया गया था, पर ऐसा नहीं था कि उसमें तब्दीली न की जा सके. पूरी स्वतंत्रता थी कि सामूहिक रूप से तय कर चर्चा को आगे बढ़ाया जाये और ऐसा हुआ भी. रात को सभी पत्रकारों ने अपने जीवन के दूसरे पक्ष को टटोला, जिस फन को भूल गए थे उसे याद किया, पद और शक्ति का चोला एक ओर रखकर आयोजन स्थल को कम्यून बना दिया, सभी बराबर और सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता.
राष्ट्रीय मीडिया संवाद में अगले दिन हुई गंभीर चर्चाएं. क्या है विकास, एकांगी विकास, समग्र विकास, शहरी एवं ग्रामीण विकास में अंतर, विस्थापन, स्वास्थ्य, बच्चों के अधिकार, विकास में महिलाओं की स्थिति, समानता एवं उसके विभिन्न पहलू, वैकल्पिक मीडिया, मुख्यधारा के मीडिया में स्पेस की समस्या का समाधान, अपनी भूमिकाएं आदि कई मुद्दों पर चर्चा की गई. अति व्यस्त माने जाने वाले पत्रकारों ने इन चर्चाओं के लिए दो दिन को नाकाफी माना और लगातार ऐसे संवाद के आयोजित करने एवं इसको विस्तार देने पर बल दिया. उपस्थित प्रतिभागियों में दैनिक जागरण (इलाहाबाद), प्रभात खबर (रांची), जोहार सहिया (रांची), दैनिक जागरण (मुजफ्फरपुर), अमर उजाला (मेरठ), पी.एन.एन. हिन्दी, न्यूज पोर्टल (दिल्ली), दैनिक भास्कर (लुधियाना), राजस्थान पत्रिका (जयपुर), नवभारत (भोपाल), नवभारत (सतना), नवभारत (इंदौर), सप्रेस (इंदौर), न्युज टुडे (इंदौर), राज एक्सप्रेस (इंदौर), दैनिक जागरण (भोपाल), दैनिक भास्कर (भोपाल), माय न्यूज डॉट इन (भोपाल), हिन्दुस्तान टाईम्स (ग्वालियर) सहित कई अन्य संस्थानों के पत्रकार शामिल हुए. माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल), दिल्ली वि.वि. एवं चित्रकूट ग्रामोदय वि.वि. के पत्रकारिता विभाग के प्राध्यापक एवं विद्यार्थी भी संवाद में शामिल हुए.विकास संवाद ने पिछले वर्ष पचमढ़ी में एक राज्य स्तरीय मीडिया संवाद की शुरुआत छोटे समूह के साथ की थी. उसके बाद मध्यप्रदेश के विभिन्न प्रमुख शहरों के उन पत्रकारों को एक मंच पर लाने की कोशिश की गई जो सामाजिक सरोकार एवं विकास पत्रकारिता के प्रति गंभीर हैं. कई क्षेत्रीय मीडिया संवाद के आयोजन भी किए गए. महज एक वर्ष में सैकड़ों पत्रकार मीडिया संवाद से जुड़ चुके हैं और विकास के विभिन्न मुद्दों पर विश्लेषणात्मक और तथ्यपरक समाचारों एवं लेखों का प्रकाशन एवं प्रसारण कर रहे हैं।
राष्ट्रीय मीडिया संवाद में एक बात बहुत ही स्पष्ट रूप से उभरकर आई कि बाजार एवं व्यावसायिक दबावों के बीच सामाजिक सरोकार से जुड़ी पत्रकारिता हो सकती है और नई चुनौतियों पर चर्चा एवं नई राह तलाशने के लिए ऐसे आयोजन लगातार किए जाने की जरूरत है।