
समर्थन के लिए धन्यवाद
मित्रों! मेरे ब्लाग को समर्थन देने के लिए मैं आप सब का हृदय की अतल गहराइयों से धन्यवाद करता हूं। यह ब्लाग इतने कम समय में देश -विदेश में इतनी लोकप्रियता हासिल कर सकेगा इसकी मुझे उम्मीद नहीं थी। इस ब्लाग को नियमित तौर पर भारत के अलावा अमेरिका, जर्मनी, उक्रेन, चीन, रूस, फ्रांस, संयुक्त अरब अमीरात ब्रिटेन, दक्षिणी कोरिया, पाकिस्तान और पापुआ न्यूगिनी में पढ़ा गया और पढ़ा जा रहा है।
इस ब्लाग को शुरू करने के पीछे मूलतः दो उद्देश्य थे। कट कापी पेस्ट तकनीक औरगूगल विकीपीडिया और फेसबुक के सहारे शार्ट कट से किसी तरह परीक्षा पास कर के बाजार में उतरने को तैयार इस पीढ़ी को परम्परागत भारतीय दर्शन और उससे संबंद्ध ग्रंथों में उपलब्ध जानकारियों को पहुंचाया जाए। वे यह जान सकें कि इन ग्रंथों में केवल पूजा पाठ और अध्यात्म का ज्ञान ही नहीं है। इनमें उपलब्ध ज्ञान आज भी सामयिक और उपयोगी है, वे आसानी से उपयोग करके अपना समग्र विकास कर सकते हैं।
इसके लिए न्यू मीडिया के आधुनिकतम चैनलों का उपयोग करने के पीछे उद्देश्य यह था कि यह पीढ़ी हर चीज को इन्सटैंन्ट और ब्रीफ में आन लाइन जानने की इच्छुक है। उसमें मोटी किताबों को लेकर बैठने का न तो समय है, न ही धैर्य और धारणा। इन ग्रंथों की भाषा और अभिव्यक्ति आज की हिंगलिश स्पीकिंग पीढ़ी के लिए एक बड़ी चुनौती तो है ही। उनके इस तरह के सवाल भी होते हैं कि इन पुराने ग्रंथों को हम क्यों पढ़े इससे हमें क्या लाभ?
इस पीढ़ी को इन ग्रंथों के पास ला पाना और उनसे जोड़ पाना एक बड़ी चुनौती थी तो प्रयास यह किया गया कि इन ग्रंथों में उपलब्ध सूचनाएं और जानकारियों को उन तक उनकी भाषा और माध्यम से पहुँचाया जाए जिसका वे आज लगातार उपयोग करते हैं। इन ग्रंथों को समग्रता में समझने के लिए संस्कत भाषा का ज्ञान बहुत जरूरी है। आज इस देव भाषा को जानने वालों की संख्या इतनी कम है कि यह ज्ञान इस भाषा में हस्तांतरित किया जा सकना लगभग असंभव हो गया है। इन ग्रंथों के अनुवाद जिस तरह से उपलब्ध कराए गए हैं उनमें परम्परागत भाषा शब्दों और अभिव्यक्ति को अपनाया गया है वर्तमान पीढ़़ी के लिए उसे प्रयास के बावजूद समझ समझा पाना अपने आप में एक चुनौती है।
इन परिस्थितियों में आधुनिकतम संचार तकनीकी और प्रौद्योगिकी इन्फारमेशन कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी इस काम में बहुत मददगार साबित हो सकती है और हुई। इन ब्लागों में काम में लाई गई भाषा को लेकर भाषा विज्ञान और परम्परागत भाषा विशेषज्ञों को कई आपत्तियां हैं और रही हैं। उनका तर्क है ऐसा करने से इन ग्रंथों की पवित्रता और महत्व कम होगा। ये आपत्तियां अपनी जगह उचित और जायज हैं लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि यह ज्ञान इन ग्रंथों तक ही सीमित रखा जाए या उसे उन तक जो भी रास्ते उपलब्ध हैं उन पर चल कर पहुँचाया जाए जिनहें इन्हें जानना चाहिए और जिनको जानने की उनको आवश्यकता है।
इन ब्लागों पर अपनी राय दें तो इस तरह के अनेक मुद्दो पर चर्चा हो सकती है। इसे बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। अभी तक इन पर उत्तरों और विचारों पर उस प्रकार की प्रतिक्रिया बहुत ही सीमित रही है। मैं आप सब सुधि पाठकों से आग्रह करता हूं कि केवल लाइक और शेयर कर के ही अपने कर्तव्य की पूर्ति न मानें। इन पर अपनी टिप्पणियां दें जिससे अतीत के भारत में उपलब्ध यह ज्ञान आज और आने वाली पीढि़यों के बीच सम्पर्क सूत्र और सेतु का काम कर सके।
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