अमर सिंह जी से पिछली मुलाक़ात करीब साल भर पहले हुई थी. संसद भवन डाकघर के पास से जा रहा था. पीछे से पुकारा. उनके चेहरे को करीब से देख कर चौंका. अकेले और थके हारे से लग रहे थे. थोड़ा हंसी मज़ाक किया.. हाल चाल पूछा और चले गए.यह आखिरी मुलाकात थी।
लेकिन मेरी उनसे मुलाक़ात कल्पनाथ रायजी ने कराई थी. राय साहब तब राव सरकार में खाद्य मंत्री थे और अमर सिंह बिरला जी का काम संभाल रहे थे. फिर माधव राव सिंधिया के करीब भी उनको देखा. और सपा की राजनीति में आने के बाद उनका जलजला भी देखा.. तमाम उद्योगपतियों और मायानगरी के लोगों का उनके पास जमावड़ा भी. वे अपने सबसे ताकतवर दौर में भी अमर उजाला के मेरे दफ़्तर आये. लगातार संवाद बनाये रखा. एक दिन मैने सपा को लेकर उनसे बात करनी चाही तो समय देकर साउथ एवेन्यू बुलाया. मैं पहुंचा समय पर लेकिन वे बिजी थे. कुछ कारोबारी लोगों के साथ. सात मिनट इंतजार किया फिर एक पर्ची लिखी कि दिए समय से पांच मिनट पहले पहुंचा था. सात मिनट इंतजार किया. सामान्यतया पांच मिनट से ज्यादा नहीं करता. कोई बात नहीं. फिर बात होगी. वहां से मैं रेल भवन चला गया और फिर संसद भवन पुस्तकालय. वहां से ऑफिस फ़ोन किया तो पता चला कि अमर सिंह जी आये थे. एक चिट्ठी छोड़ गए है. कहा है कि जहां हों मुझे फोन कर लें. खैर मैने फ़ोन किया तो लाइन पर आते ही क्षमा मांगी. कहा आप अपने ऑफिस कब पहुंचेगे, मिल कर बात होगी. लाइब्रेरी से ऑफिस पहुंचा तो अमर सिंह जी आ गए. इंटरव्यू वहीं दिया. मैं उनको नीचे छोड़ने गया तो ins बिल्डिंग पर अमर सिंह को देख बहुतों को हैरानी हो रही थी. इसके बाद कभी भी उनसे समय को लेकर मेरी शिकायत नहीं रही. कई बार वे फ़ोन पर कहते टाइम आप तय कीजिए. मैं तैयार मिलूंगा. बहुत सी बातें और यादें उनके साथ है. एक दिन मैं मुलायम सिंह जी से मिल कर संसद भवन से निकल रहा था तो वे मिले.. कहा कि फलां अख़बार में संपादक बन कर लखनऊ जायेंगे.मैने कहा कि घर बस्ती है जो लखनऊ के करीब है, लेकिन किसी नेता की सिफारिश पर संपादक बनना जमीर को गंवारा नहीं. अच्छा होगा जिंदगी भर रिपोर्टर बना रहूं..वे मुस्कराते रहे.. जाते जाते कहा कि मुझे पहले ही लगा था कि आप कुछ ऐसा ही कहेँगे.. खैर बहुत उतार चढाव के साथ अमर सिंह ने ठसक से राजनीति की.उनको प्यार भी मिली और गाली भी.. बहुत सी बातें फिर कभी . उनकी यह चिट्ठी भी आज साझा कर रहा हूँ जो मुझे हाथ से लिखी थी.