ब्लेयर और क्लिंटन की ही तरह ब्राउन भी इस उदारवादी सच को मानता है कि इतिहास के लिए युद्ध को जीता जा चुका है; कि ब्रिटिश साम्राज्य की अधीनता में भारत में अकाल, भुखमरी से लाखों लोग जो मारे गए हैं उसे भुला दिया जाना चाहिए। जैसे अमरीकी साम्राज्य में जो लाखों लोग मारे जा रहे हैं, उन्हें भुला दिया जाएगा। और ब्लेयर की तरह ही उसका उत्तराधिकारी भी आश्वस्त है कि पेशेवर पत्रकारिता उसके पक्ष में है, अधिकतर पत्रकार ऐसी विचारधारा के प्रतिनिधिक संरक्षक हैं, इसे मानते हैं, भले इसे वे महसूस करें या न करें, जो अपने आपको ग़ैर-विचारधारात्मक कहती है, जो अपने आपको प्राकृतिक तौर पर केंद्रीय तथा जो आधुनिक जीवन का प्रमुख आधार ठहराती है। यह शायद अभी तक की सबसे शक्तिशाली तथा ख़तरनाक विचारधारा हो क्योंकि यह लचीली है। यही है उदारवाद। मैं उदारवाद के गुणों से इंकार नहीं कर रहा हूं, बल्कि इसके बिल्कुल विपरीत। हम सभी उसके लाभार्थी हैं। लेकिन अगर हम इसके खतरों से, इसकी लचीली परियोजना से तथा इसके प्रोपेगंडा की सर्वभक्षी शक्तियों से इन्कार करते हैं तब हम सच्चे लोकतंत्र के अपने अधिकार से इन्कार कर रहे हैं। क्योंकि उदरवाद और सच्चा लोकतंत्र (जनवाद) एक ही नहीं हैं। उदारवाद 19वीं शतब्दी में अभिजात्य लोगों के संरक्षण से प्रारंभ हुआ था। और जनवाद कभी भी अभिजात्य लोगों के हाथों में नहीं सौपा जा सकता। इसके लिए हमेशा लड़ाई लड़ी गई है। और संघर्ष किया गया है।
युद्ध विरोधी गठबंधन, युनाइटेड फ़ॉर पीस एंड जस्टिस की एक वरिष्ठ अधिकारी ने अभी हाल में ही कहा, और मैं उन्हें उदृधत कर रहा हूं, कि "डेमोक्रेटिक पार्टी वाले यथार्थ की राजनीति का प्रयोग कर रहे हैं।" उनका उदारवादी ऐतिहासिक यथार्थ वियतनाम था। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति जॉनसन ने वियतनाम से सैन्य दलों की वापसी को तभी शुरू किया जबकि डेमोक्रेटिक कांग्रेस ने युद्ध के ख़िलाफ़ मतदान प्रारंभ किया। जो हुआ वो यह नहीं था। वियतनाम से चार साल के लंबे समय के बाद सैनिकों का हटना शुरू हुआ। और इस दौरान संयुक्त राज्य ने वियतनाम, कंबोडिया और लाओस में पिछले कई वर्षों में मारे गए लोगों से कहीं ज़्यादा लोगों को बमों से मार गिराया। और यही सब इराक में भी हो रहा है। पिछले वर्षों में बमबारी दुगुनी हो गई है। और अभी तक इसकी रिपोर्ट कहीं नहीं आई है। और इस बमबारी की शुरुआत किसने की? क्लिंटन ने इसे शुरू किया। 1990 के दशक के दौरान क्लिंटन ने इराक के उन इलाकों पर बमों की बरसात की जिसे शिष्ट/नरम शब्दों में उड़ान रहित क्षेत्र (फायर फ़्री ज़ोन) कहा जाता था। इसी काल में उसने इराक की मध्ययुगीन नाकेबंदी की जिसे 'आर्थिक प्रतिबंध' कहा गया, जिसमें, मैने पहले भी ज़िक्र किया है कि पाँच लाख बच्चों की दर्ज मौतों के अलावा लाखों लोगों को मार दिया गया। इनमें से किसी एक भी नरसंहार के बारे में तथाकथित मुख्यधारा की मीडिया में लगभग कुछ नहीं बताया गया है। पिछले साल जॉन हॉपकिंस सार्वजनिक स्वास्थ्य विद्यापीठ नें अपने एक अध्ययन में बताया है कि इराक पर आक्रमण के बाद से छः लाख पचपन हज़ार इराकियों की मौत आक्रमण के प्रत्यक्ष परिणामों के कारण हुई हैं। आधिकारिक दस्तावेज़ बताते हैं कि ब्लेयर सरकार इन आंकडों के बारे में जानती थी कि ये विश्वसनीय हैं। इस रिपोर्ट के लेखक लेस राबर्ट ने कहा कि ये आंकडें फ़ोर्डम विश्वविद्यालय द्वारा रुवांडा नरसंहार के बारे में कराए गए अध्ययन के आंकडों के बराबर हैं। रॉबर्ट के दिल दहला देने वाले रहस्योद्घाटन पर मीडिया मौन बनी रही। एक पूरी पीढ़ी की संगठित हत्या के बारे में क्या कुछ अच्छा हो सकता है, हैरॉल्ड पिंटर के शब्दों में कहें तो "कुछ हुआ ही नहीं। यह कोई मामला नहीं है"।
अपने आप को वामपंथी कहने वाले कई लोगों ने बुश के अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण का समर्थन किया। इस तथ्य को नज़रअंदाज़ कर दिया गया कि सीआईए ने ओसामा बिन लादेन का समर्थन किया था। क्लिंटन प्रशासन ने तालिबानियों को गुप्त तरीके से प्रोत्साहित किया था, यहां तक कि उन्हें सीआईए में उच्च स्तरीय समझाइश दी गई थी, यह सब संयुक्त राज्य में सामान्यतः अनजान बना हुआ है। अफगानिस्तान में एक तेल पाइपलाइन के निर्माण में बड़ी तेल कंपनी यूनोकैल के साथ तालिबानियों ने गुप्त भागीदारी की थी। और क्लिंटन प्रशासन के एक अधिकारी से कहा गया कि "महिलाओं के साथ तालिबानी दुर्व्यवहार कर रहे हैं" तो उसने कहा कि "हम तब भी उनके साथ रह सकते हैं"। इसके स्पष्ट प्रमाण हैं कि बुश ने तालिबान पर हमला करने का जो निर्णय लिया वह 9/11 का परिणाम नहीं था। बल्कि यह दो महीने पहले जुलाई 2001 में ही तय हो चुका था। सार्वजनिक तौर पर यह सब संयुक्त राज्य में सामान्यतः लोगों की जानकारी में नहीं है। जैसे अफ़ग़ानिस्तान में मारे गए नागरिकों की गणना के बारे में लोगों को कुछ मालूम नहीं है। मेरी जानकारी में, मुख्यधारा मे सिर्फ़ एक रिपोर्टर, लंदन में गार्जियन के जोनाथन स्टील ने अफ़ग़ानिस्तान में नागरिकों की मौत की जाँच की है और उनका अनुमान है कि 20000 नागरिक मारे गए हैं और यह तीन साल पहले की बात है।