ट्विट्टर पर पिछले कई महीनो से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर चर्चा देखी जा रही है| हमारी सरकार द्वारा पिछले कुछ दिनों में लगाए गए दुर्भाग्यपूर्ण प्रतिबंधों ने इस चर्चा को एक व्यापक आयाम दे दिया है|
जब भी मई स्वतंत्र दृष्टिकोण से इन सामाजिक माध्यमों को देखने का प्रयास करता हूँ तो बचपन के दिनों को चाय/पान की दुकानें बहुत याद आती है| [i]माताजी कभी भी इन दुकानों पर हमें नहीं जाने देती थी| मोहल्ले के कई घरों में जब कोई नाते रिश्तेदार आने वाला होता तो घर के लडको को विशेष हिदायत दे दी जाती कि वो इन मनहूस जगहों पर खड़े न हुआ करें| कारण सामान्य था, इन दुकानों पर बेरोजगार और सड़क छाप सज्जन ही पाए जाते थे| अपना जीवन तो राम भरोसे होता था मगर राजीव गाँधी को देश चलाने की सभी सलाहे ये दे सकते थे| लड़किया छेड़ना इन सभी लोंगो का प्रिय शगल था जो महिलाओं, बुजुर्गो से लेकर सज्जन अधेड़ो तक विस्तारित हो जाता था|
परन्तु, महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि जब भी कोई नए स्थापित कवि, लेखक, विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता, क्रांतिकारी, आंदोलनकारी नगर भ्रमण पर निकलते, इन पान और चाय की दुकानों पर अवश्य ही विचार विनिमय करते| एक महत्वपूर्ण बिन्दु यह भी है कि इन सभी सम्मानित बुद्धिजीवी विचारकों को अपने नगरों में चाय की दुकानों प नहीं वरन काफी हॉउस में विचार विनिमय करने की आदत थी|
अब सूचना क्रांति का समय है| पान, चाय और काफी हॉउस की जगह पर फ़ेसबुक,[ii]ट्विट्टर और ब्लॉग ने ले ली है| [iii]इस समय सभी विचारकगण [iv]प्रायः ब्लॉग पर पाए जाते है और कुछ कुछ पलों के बाद ट्विट्टर पर भ्रमण कर लेते है, इन सभी प्रथम श्रेणी विचारकों के फ़ेसबुक पृष्ठ उसी प्रकार से बने हुए है जैसी उस समय पान कि दुकानों पर इनकी विशेष सभा होती थी या अपनी सामाजिक पकड़ नापने के लिए इनका प्रातः भ्रमण होता था| इसी प्रकार से द्वितीय श्रेणी के विचारक ट्विट्टर पर चहकते है और फ़ेसबुक पर महकते है| फ़ेसबुक की स्तिथि सामाजिक नौसिखियों का है, जहाँ आप किसी को, उसके फोटो और कथा को बस पसंद कर सकते है|
अब स्तिथि यह है की सामाजिक सूचना क्रांति के बाद हम सभी को यह सामाजिक माध्यम अतिरिक्त आसानी से उपलब्ध है तो देश और समाज के दुश्मनों को भी| आज यहाँ सूचना तंत्र का प्रयोग प्रोपेगंडा में भी हो रहा है साधारण सूचना उपयोक्ता को पता ही नहीं चलता कि यह सूचना है या प्रोपेगंडा| सूचना का यह युद्ध दो मोर्चो पर है: आंतरिक राजनीति का घमासान और विश्व राजनीतिक परिदृश्य| दोनों के बीच में हानि राष्ट्र की सर्वाधिक हो रही है|
पहले आंतरिक स्तिथि की चर्चा करते हैं| आज देश में स्पष्ट रूप से एक नाकामयाब सरकार और अस्तित्व विहीन विपक्ष है| जनलोकपाल आन्दोलन का राजनीतिक रूप अभी स्पष्ट नहीं है| राजनीतिक विचार शून्यता इस स्तिथि तक है की सत्ता और विपक्ष दोनों संसद में बहस आदि से बच रहे हैं| जनता के बीच सरोकार विहीन मुद्दों पर अगले चुनावों की लड़ाई ले जाने की पूरी तैयारी है| भावनात्मक मुद्दे मुख्य माध्यमों से लेकर समिक माध्यमों तक चर्चा का विषय हैं| पिछले कई वर्षो में भ्रष्ट्राचार के अतिरिक्त किसी अन्य आधारभूत मुद्दे पर चर्चा नहीं हो रही, और दुर्भाग्य से यह चर्चा भी राजनीतिक और विधियिक नहीं रही है और इसका स्वरुप भावनात्मक अधिक रहा है| अन्य भावनात्मक मुद्दों को देश की राजनीति भुना रही है| व्यक्तिगत प्रहार, अभद्र भाषा, अपुष्ट सूचना आदि को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना की आजादी का नाम नहीं दिया जा सकता| कई बार कहा जाता है कि प्रेम और जंग में सब जायज है| राजनीति न प्रेम है न जंग| सभी राजनीतिक और वैचारिक मतभेद और उनपर होने वाली बहसें संघर्ष है युद्ध नहीं| मुझे लगता है कि साधारण संघर्ष ही नहीं वरन गीता और गाँधी के उपदेशो के सहारे गए बड़े बड़े संघर्ष भी सच्चाई और माध्यम की पवित्रता और उद्देश्य की स्पष्टता के कारण जीते गए है|
सामाजिक माध्यम में दुष्प्रचार का अंतहीन सिलसिला है| बर्मा में नरसंहार, असम के महादंगे, से लेकर निर्मल बाबा तक के नाम पर दुष्प्रचार हो रहा है| फ़ेसबुक पर देखने को मिला कि निर्मल बाबा हिन्दू है इसलिए गिरफ्तार कर लिया मुसलमान को नहीं करते| जिन सज्जन ने इस प्रोपेगंडा को शेयर किया था मैंने उनसे कहा कि जो हिन्दू को बेवकूफ बना रहा था उसे गिरफ्तार कर लेते है और मुसलमान को बेवकूफ बनाने वाले को छोड़ देते है क्योकि वो शायद पाकिस्तानी दामाद होता है| मेरे तात्पर्य है कि आप सही गलत देखे जाति धर्म नहीं| ये सज्जन तो बात समझ गए मगर किस किस को समझाये|
अब ज़रा विश्व परिदृश्य को देखें| पहले एक पुरानी बात, “जब दोस्त आपके मुकाबिले नाकामयाब होता है तो दुःख होता है और जब दोस्त आपके मुकाबिले अधिक कामयाब होता है तो बहुत ज्यादा दुःख होता है”| दोस्त का अगर ये हाल है तो दुश्मन की बात क्या की जाये| आज दुनियां भर में चर्चा है कि भारतीय जनता स्रोत का पता किये बिना हल्ला मचा देती है| एक बारगी ठीक है कि किसी ऐसे अखबार या ट्विट्टर हेंडल जो जाना पहचाना हो, से कोई खबर आये तो चलो कोई बात भी की जाए| हालात ये है की बस आपको नाम पसंद आना चाहिए बस उस पर भरोसा कर लेते है| अगर आज पाकिस्तान की कोई संस्था या कोई साधारण पाकिस्तानी किसी हिन्दू देवी देवता या संस्था के नाम पर ट्वीट करना शुरू कर दे और कुछ दिन मीठी मीठी बाते लिख दे, देश के सारे हिन्दू उसकी बात पर तन मन धन रोटी बेटी दे बैठते है| यही बात भारतीय मुस्लिम और अन्य समुदाय पर लागू है|
शर्म की बात है कि देश में एक हाई स्कूल फेल लड़का फेसबुक पर एक नकली फोटो डालता है और देश भर के मुसलमान “इस्लाम खतरे में है” चिल्लाने लगते है| [v]देश भर के हिन्दू भी बस असम के दंगो पर हल्ला मचाये है, भाई बोडो का झगडा किस से नहीं है मारवाड़ी, मुस्लिम या और स्थानीय जातियाँ|
कोई धार्मिक दंगा नहीं था वहाँ| मूल मुद्दे की जगह दुसरे मुद्दे पर बहस हो रही है, वो मारा वो काटा| भाई, मानता हूँ बंगलादेशी बड़ा मुद्दा है पर सही से बहस कीजिये| बात होगी तो हल भी निकलेगा|
आज दुनिया हँस रही है देखिये इन पांच हजार साल के विश्व गुरूओं को, आपस में बात करने का सलीका नहीं|
और हमारी सरकार, क्या कहें; जब हमने चुनी है तो हम से बढ़िया तो हो ही नहीं सकती न| जैसे पहले राजतन्त्र के समय कहते थे, यथा राजा, तथा प्रजा| आज लोकतंत्र में यथा प्रजा तथा प्रधानमंत्री तो होना ही चाहिए| समय पर बोलेंगे नहीं, निर्णय ले नहीं सकते, जब कुछ करना हो तो होश खो देंगे जोश पर उतर आयेंगे| और जो गलत बोल रहा है, उससे कुछ मत बोलो बस माध्यम को बंद कर दो| हर किसी को पता है, आज सामाजिक माध्यम में आप पांच मिनिट में नए नाम से अपना काम करना शुरू कर सकते है| सरकार को चाहिए यह था कि कुछ ऐसे लोगो को चिन्हित करती जो अफवाहें फैला रहे है और उन्हें थाने में बिठा लेती| ट्विट्टर और फेसबुक पर इन लोगों को चिन्हित करना कठिन नहीं है, पुलिस को केवल इतना पता करना है कि किस इंटरनेट प्रोटोकॉल से ये गलत सन्देश आ रहे है| मजे की बात तो यह है कि प्रतिबंधित किये गए कई नामों को तो सरकार के महानुभाव लोग रोज मिलते है जैसे कंचन गुप्ता और शिव अरूर| पर लगता है कि सरकार की नीयत कुछ और थी|
सरकार द्वारा लगाये गए प्रतिबन्ध में कई खामियां और अव्यवहारिक बाते हैं| पहला तो मोबाइल पर सन्देश भेजने की संख्या पर लगा प्रतिबन्ध| मूलतः एक दिन में किसी को भी २०० सन्देश भेजने की अनुमति थी| इसे घटा कर पांच कर दिया गया| यद्यपि, यह प्रतिबन्ध उठा लिया गया है परन्तु सरकार ने मजाक को आम जनता तक पहुँचा दिया| अफवाह फ़ैलाने वाले दो सौ लोगो को सन्देश नहीं भेजते वरन उस चिन्हित समूह को भेजते है जो उसे आगे फैला दे| एक प्रमुख प्रश्न यह भी है क्या मोबाइल आने से पहले अफवाहें नहीं फैलती थी? और उस समय सरकार कैसे उस का मुकाबला करती थी? अलीगढ में मैंने देखा है कि अधिकारी समझदार लोंगो की बैठक बुला कर उन्हें तथ्यों से अबगत करते थे और उनसे आग्रह करते थे कि इन बातों को जनता में फैलाए| अलीगढ में हर चौराहे पर ध्वनिविस्तारकों के माध्यम से पुलिस तथ्य बताती थी और गाने भी सुनाये जाते थे| आज इन्टरनेट, टी वी और एफ एम् रेडियो इस सुविधाओं के बाद भी सरकार कुछ विशेष प्रकार के नाकारा कदम क्यों उठा रही है?
जिस देश में सरकार के पास भारी भरकम पत्र सूचना कार्यालय, जन सम्पर्क निदेशालय, दूरदर्शन, आकाशवाणी, कई सारे मंत्रियो और विभागों के ट्विट्टर खाते और फेसबुक पृष्ठ हों, उस देश में सरकार की ओर से ऐसे कदम वाकई भद्दा मजाक हैं|
अंधेर नगरी, चौपट सरकार|
[i]दादाजी अगर होते तो शायद गाँव की चौपाल को याद कर लेते|
[ii]मेरे विचार से फेसबुक प्रोफाइल और फ़ेसबुक पेज दो भिन्न स्तिथि है. पहला नेटवर्किंग है दूसरा सोशल मीडिया|
[iii]स्पष्ट है कि इंडिया काफी हॉउस के बंद होने के पीछे किस विदेशी ताकत का हाथ है|
[iv]विचारकगणिका लिखने सामाजिक दृष्टि से उचित नहीं है,क्योकि गणिका शब्द का अर्थ गलत लोगो ने गलत किया है वरन सम्मानित स्त्रियों के लिए इसे प्रयुक्त होना चाहिए था|