सलमान रूश्दी पर जानलेवा हमले से दुनिया स्तब्ध है। भारतीय मूल के लेखक के स्वस्थ होने की सारी दुनिया कामना कर रही है। इस बीच, यह सवाल भी बना हुआ है कि मिडनाइट चिल्ड्रन और सेटेनिक वर्सेज के लेखक सलमान रूश्दी कभी उस दिल्ली में रहेंगे जिससे उनके पिता का संबंध था। वे अपने पिता के राजधानी के पॉश फ्लैग स्टाफ रोड पर स्थित 4 नंबर के बंगले को लेने के लिये कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
दरअसल राजधानी के सिविल लाइंस मेट्रो स्टेशन से कुछ ही दूर है फ्लैग स्टाफ रोड। सिविल लाइंस के ही एक घर में बाबा साहेब अँबेडकर ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष गुजारे थे। घने पेड़ों की हरियाली से लबरेज फ्लैग स्टाफ रोड के बंगले कई-कई एकड़ में फैले हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का सरकारी आवास भी फ्लैग स्टाफ रोड पर ही हैं। पर इधर का 4 नंबर का बंगला अपने आप में खास है। यह बंगला सलमान रुश्दी के पिता अनीस अहमद का रहा है।
कौन थे सलमान रुशदी के पिता
सलमान रुश्दी के पिता अनीस अहमद दिल्ली के मशहूर वकील थे। वे दीवानी के मामलों में जिरह करना पसंद करते थे। वे तीस हजारी कोर्ट में प्रेक्टिस किया करते थे। उन्होंने सन 1946 फ्लैग स्टाफ रोड का बंगला खरीदा था। वे पहले सपरिवार बल्लीमरान में ही रहते थे। चचा गालिब के बल्लीमरान में। दिल्ली जाकिर हुसैन कॉलेज के लंबे समय तक प्रिसिंपल रहे प्रो. रियाज उमर बताते हैं कि पैसा आया तो अनीस अहमद ने सुंदर सा बंगला खरीद लिया। वे एंग्लो एराबिक स्कूल के मैनेजमेंट से भी जुड़े हुए थे। अनीस अहमद हमेशा वेल ड्रेस रहना पसंद करते थे। अनीस अहमद दिन भर की मारामारी के बाद शामें कनॉट प्लेस के मरीना होटल ( अब रेडिसन ब्लू होटल) में ही गुजारना पसंद करते थे । इसी होटल में गांधी जी का हत्यारा नाथूराम गोडसे भी ठहरा था।
कहते हैं, अनीस अहमद 1960 के दशक में लंदन चले गए। वे देश के बंटवारे के समय भी पाकिस्तान नहीं गए थे। लंदन से कभी-कभार ही दिल्ली आते। वे 1970 में दिल्ली आए। यहां उनका कुनबा और तमाम दोस्त थे ही। तब उन्होंने राजपुर रोड के एक प्रॉपर्टी डीलर लज्जा राmम कपूर की मध्यस्थता से अपना बंगला स्वाधीनता सेनानी और कारोबारी भीखूराम जैन को 300 रुपए मासिक रेंट पर दे दिया।
बंगले पर बवाल
भीखू राम जैन का परिवार बढ़ रहा था। इसलिए उन्होंने 4 फ्लैग स्टाफ रोड के बंगले को तुरंत किराए पर ले लिया ताकि परिवार के कुछ मेंबर वहां पर शिफ्ट कर लें। पर इस डील के चंदेक दिनों के बाद अनीस अहमद फिर से भीखूराम जैन से मिले। उनके साथ लज्जा राम कपूर भी थे। उन्होंने जैन से अपने बंगले को खरीदने की पेशकश की। भीखूऱाम जैन अनीस अहमद के बंगले को खरीदने के लिए राजी हो गए। तय हुआ कि वे 3. 75 लाख रुपए में बंगला खरीद लेंगें। उन्होंने 50 हजार रुपए बयाना अनीस अहमद को दे दिया। शेष रकम 15 महीने में दी जानी थी। अनीस अहमद बयाना लेकर एक बार जो लंदन गए तो वे फिर कभी नहीं लौटे। वहां पर ही उनकी मृत्यु हो गई। भीखूऱाम जैन ने करीब 25 साल पहले इस लेखक को अपने 49 राजपुर रोड वाले घर में बताया था कि उन्होंने अनीस अहमद को बार-बार भारत बुलाया ताकि डील को अंतिम रूप दिया जा सके। पर वे नहीं आए।
ताजा सूरते हाल यह है कि 4 फ्लैग स्टाफ रोड के बंगले के स्वामित्व को लेकर विवाद जारी है। अब भीखूराम जैन, अनीस अहमद और लज्जाराम कपूर को गुजरे हुए भी एक जमाना हो गया। 4 फ्लैग स्टाफ रोड बंगले के मालिकाना हक के लिए आधी सदी से केस चल रहा है। जैन साहब के बाद उनके पुत्र नरेन केस को लड रहे हैं । वे ही उस बंगले में रहते हैं। वे सलमान रुश्दी पर हुए हमले से आहत हैं। कहते हैं, ये गलत हुआ है।
बतादें कि सलमान रुश्दी का हिमाचल प्रदेश के सोलन में शिल्ली रोड़ पर उपायुक्त रेजिडेंस के पास एक बंगला भी है, जिसमें करीब 11 कमरे, हॉल, बेड रूम, किचन वगैरह है। वे यहां साल 2002 में आखिरी बार आये थे। इस बंगले को एक केयरटेकर देखता है।
इस बीच,हो सकता है कि नौजवान पीढ़ी भीखूराम जैन से पूरी तरह से परिचित ना हो। उनके जीवन काल में ही उनका घर लैंडमार्क बन गया था। वे गांधी जी के आहवान पर स्वाधीनता आंदोलन में कूदे थे। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया। वे 1980 में चांदनी चौक लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर निर्वाचित हुए। वे जीवनभर समाज सेवा और शिक्षा के प्रसार-प्रचार के लिए सक्रिय रहे। वे दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रतिष्ठित हिन्दू कॉलेज मैनेजिग कमेटी से दशकों जुड़े रहे। भीखूराम जैन दिल्ली नगर निगम के भी लंबे समय तक मेंबर रहे। उनके नाम पर राजपुर रोड की एक स़ड़क का नाम 2008 में भीखूराम जैन रोड रखा गया था। भीखूराम जैन दावा करते थे कि अगर अनीस अहमद ने मान लिया होता कि वे उनके साथ इसलिये डील नहीं कर रहे क्योंकि उन्हें किसी अन्य से बेहतर पैसा मिल रहा है, तो वे उनके ऊपर केस नहीं करते। हालांकि वे कभी सलमान रुश्दी से नहीं मिले थे।
भीखूराम जैन दिल्ली का परिवार मूल रूप से हरियाणा के झज्जर से था। वहां से करीब दो सौ साल पहले दिल्ली आये तो पहाड़ी धीरज में रहने लगे। इसे जैन समाज का गढ़ माना जा सकता है। यहां पर सैकड़ों जैन परिवार रहते हैं। हां, यहां से बहुत से जैन परिवार राजधानी के अन्य भागों में शिफ्ट भी होते रहे। उदाहरण के रूप में भीखूराम जैन 1960 में राजपुर रोड में शिफ्ट कर गए थे।
Vivekshukladelhi@gmail.com, Navbharattimes and Dainik Tribune