दिलीप मंडल-
(B4M)
एनडीटीवी सर्वहारा का चैनल कभी नहीं था।अंबानी से लोन लिया था। ओसवाल की इसमें 14% हिस्सेदारी थी। अब अडानी समूह ने 29 परसेंट ले लिया है। सारी दुनिया में कॉरपोरेट ही मीडिया को चलाता है। सीएनएन, फ़ॉक्स, स्टार, स्काई सब। पब्लिक ब्रॉडकास्टर बीबीसी को छोड़ सभी। इसलिए कृपया चिंतित न हों। एनडीटीवी में कोई बदलाव नहीं होगा।
एनडीटीवी 2009 के बाद से अंबानी के करीबी नाहटा के दिए ₹403 करोड़ से चल रहा था। एनडीटीवी की सारी क्रांति और सेक्युलरिज्म का खर्चा नाहटा उठा रहा था। नाहटा ने वह लोन अडानी को बेच दिया। बस इतना सा फ़र्क़ आया है!
सारे बड़े अख़बार बनियों के हैं जो अच्छा है क्योंकि भारत में संपादक और एंकर आम तौर पर ब्राह्मण हैं। ये बैलेंस ज़रूरी है।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया, जागरण, भास्कर, अमर उजाला, हिंदुस्तान टाइम्स, एक्सप्रेस आदि बनियों के हैं। सिर्फ द हिंदू ब्राह्मणों का है। चैनलों की बात करें तो एनडीटीवी और इंडिया टीवी ही ब्राह्मणों का है। एनडीटीवी अब बनियों के पास जा रहा है। ₹403 करोड़ क़र्ज़ा लिया था। चुका नहीं पाए। अडानी ने क़र्ज़ देने वाले को ही ख़रीद लिया।
NDTV ने ICICI से क़र्ज़ लिया था। नहीं चुका पाए तो 2009 में अंबानी की करीबी कंपनी VPCL से ₹403 करोड़ क़र्ज़ लेकर चुकाया। ये रक़म NDTV की 30% हिस्सेदारी है। NDTV ने क़र्ज़ चुकाया नहीं। अब अडानी ने VPCL को ख़रीद लिया।
ये है NDTV की कहानी। इस बीच कंपनी के मालिक अपनी सेलरी लेते रहे।
एक बनिए से क़र्ज़ लिया। बनिए ने वह क़र्ज़ दूसरे बनिए को बेच दिया। इसमें कोई क्रांतिकारी कहानी नहीं है।
क़र्ज़ लेने वाले को खर्च घटना चाहिए था। पैसे का इंतज़ाम करना चाहिए था। एनडीटीवी को 13 साल मिले थे क़र्ज़ चुकाने के लिए।
किसे किसे पहले से पता था कि NDTV बिकने वाला है? जुलाई अगस्त के बीच शेयर डबल हो गए। आज भी लगभग 5% चढ़ा हुआ है।
सबसे बड़े शेयर होल्डर होने के नाते सबसे बड़े लाभार्थी एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय और राधिका रॉय रहे। बधाई।

एनडीटीवी जैसा चल रहा था, वैसा चलता रहेगा। उसकी ब्रांडिंग नहीं बदलेगी। वह सेक्युलर बना रहेगा।
इसलिए दुखी आत्माएँ, कृपया चिंतित न हों।
एनडीटीवी में कोई बदलाव नहीं होगा। वे मूर्ख हैं जो सोच रहे हैं कि अडानी एनडीटीवी की ब्रांड इमेज को मार डालेंगे। वे बिज़नेस का चरित्र नहीं जानते।