हाल ही में देश के जाने माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा साहब की किताब 'India after Gandhi'का हिंदी अनुवाद "भारत गांधी के बाद"पढ़ा. इस किताब को पढ़ने के बाद गुलाम भारत 1930 से आजाद भारत 1960 तक देश में किस तरह की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक घटनाएं घटीं और कौन से बदलाव हुए यह बात जानने में मदद मिली. साथ ही समझ में आया कि हिंदू-मुसलाम वाली सांप्रदायिक राजनीति कितनी पुरानी है.
भारत को यूं ही आजादी नहीं मिली. भारत का जन्म बहुत सारे अभावों और गृह युद्ध जैसे हालातों के बीच हुआ. उस समय देश जाति, धर्म, भाषा, नस्ल, आदि मुद्दों पर बंटा हुआ था, बंटा ही नहीं था ये सारी चीजें उग्र भी थीं. जमकर मार-काट होती थी. इन तमाम समस्याओं के बाद देश के नेताओं ने जिसमें, गांधी, नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, कामराज, वी के कृष्ण मेनन, डॉ. आंबेडकर और अन्य नेताओं ने भारत को दुनिया के एक लोकतांत्रिक देश के रूप में खड़ा कर दिया. जबकि दुनिया को लगता था कि पाकिस्तान के बाद भी भारत टूटेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
वहीं पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व क्षमता को भी सराहा जाना चाहिए. एक समस्या के बाद दूसरी बड़ी समस्या उसके बाद तीसरी बड़ी समस्या.... सबसे नेहरू ने बहुत ही सही तरीके से निपटने का काम किया.
कश्मीर समस्या का हल नहीं हो सका क्योंकि उनकी मौत हो गई. चार महीने और जीते तो शायद कोई हल इस पर भी निकल आता. दूसरी चीज चीन से हार पर नेहरू को खूब कोसा जाता है. जाहिर है कि दुश्मन जब विस्तारवादी सोच का हो और हमसे कई गुना ज्यादा ताकतवर हो तो हमें नुकसान पहुंचा सकता है. वही उसने किया और आज भी कर रहा है. इस किताब को पढ़ने के बाद मुझे ऐसा नहीं लगता कि नेहरू को एकाध समस्या के लिए कोसना सही होगा. सैकड़ों समस्याओं का हल उनके नेतृत्व में किया गया तो उनकी इसके लिए तारीख भी होना चाहिए.
अगली किताब..... "भारत नेहरू के बाद"पढ़ूंगा फिर उसके बारे में बताऊंगा क्या जाना.