उज्बेकिस्तान की राजधानी समरकंद में संपन्न हुए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के 2 दिन के शिखर सम्मेलन से भारत ने अपने विकास और उपलब्धियों का ज़िक्र करते हुए सफलतापूर्वक यह प्रदर्शित किया कि हम विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में शामिल होने की दिशा में तेज़ी से बढ़ रहे हैं। इसे कैसे कोई नज़रंदाज़ कर सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत करने खुद उज्बेकिस्तान के प्रधानमंत्री अब्दुल्ला अरिपोव एयरपोर्ट पहुंचे थे। इसके साथ ही भारतीय प्रतिनिधिमंडल के स्वागत में बॉलीवुड संगीत भी बजाया जा रहा था!
शिखर सम्मेलन की बैठक में अपने छोटे से संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने सदस्य देशों को आपसी सहयोग के पांच बड़े सूत्र दिए। इसे कम महत्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता कि दुनिया के महाबली देशों के मंच से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मविश्वास के साथ यह समझाया कि भारत किस प्रकार हर क्षेत्र में मजबूती से अपनी केंद्रीय भूमिका निभा रहा है। उन्होंने इस मौके का बखूबी इस्तेमाल यह बताने के लिए किया कि भारत अपने आपको मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने के लिए संकल्पित है। जाहिर है कि उनकी यह बात वहाँ उपस्थित चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग को काफी नागवार गुजरी होगी क्योंकि इस हलके में भारत के उभरने से चीन के एकाधिकार को चुनौती मिलेगी। वैसे भी अमेरिका और चीन की आपसी तनातनी का यह फायदा भी इधर भारत को मिलता दिखाई दे रहा है कि बहुत सी बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन के बजाय भारत का रुख कर रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी साफ़ किया कि भारत के लिए अपने विकास का अर्थ एकाकी विकास नहीं है। बल्कि हम तो सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं । इसीलिए उन्होंने यह सूचना देने के साथ कि भारत आज 70 हजार स्टार्टअप वाला देश है, यह भी जोड़ना ज़रूरी समझ कि भारत इनोवेशन में सभी की सहायता करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गर्व से कहा कि आज भारत की तेजी से बढ़ती अर्थ व्यवस्था के मुकाबले कोई नहीं। इसीलिए सयाने कह रहे हैं कि भारत शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने वाला एकलौता ऐसा देश है, जो मौजूदा हालात में समरकंद का सिकंदर साबित हो रहा है।
एशिया भर को अपनी विस्तारवादी नीति की गिरफ्त में लेने को आतुर चीन और उसके अतिप्रिय पाकिस्तान को भले ही पसंद न आया हो, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के देशों के बीच सप्लाई चेन और ट्रांजिट बढ़ाने पर खुल कर ज़ोर दिया। यह इसलिए और भी महत्वपूर्ण है कि अफगानिस्तान के लिए भारत से भेजी गई मानवीय सहायता को ईर्ष्यालु पाकिस्तान ने ट्रांजिट की अनुमति नहीं दी थी। यूक्रेन संकट के दौरान तरह तरह के प्रतिबंधों से ग्लोबल सप्लाई चेन पर पड़े बुरे असर से तो सारी दुनिया परिचित है ही, जिसके फलस्वरूप सभी सदस्य देश दमघोंटू महँगाIई में साँस तक लेने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके अलावा यूक्रेन संकट ने दुनिया भर में जिस तरह खाद्य संकट को जानलेवा बना डाला है, भारत का यह सुझाव संकटमोचक साबित हो सकता है कि हमें मोटे अनाज उपजा कर इस विकराल खाद्य संकट से निपटना होगा। कोरोना काल के विषम अनुभवों से गुजरे देशों के लिए प्रधानमंत्री मोदी का यह सुझाव भी आने वाले वक़्त में काफी अर्थपूर्ण साबित हो सकता है कि संगठन के सभी सदस्य देश पारंपरिक इलाज भी शुरू करें।
अंततः, यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से द्विपक्षीय बातचीत में साफ साफ कहा कि यह युग युद्ध का नहीं! कूटनीतिक, व्यावसायिक और सामरिक नज़रिए से भारत इस मौके पर अपने बढ़ते कद का दुनिया को अहसास कराने में सफल रहा। एक ऐसे समय जब चीन रूस के साथ अपनी गहरी दोस्ती के बावजूद यूक्रेन संकट पर चुप्पी साधता नज़र आया, भारत ने यह संदेश देने में कोई संकोच नहीं किया कि हम रूस के साथ खड़े होते हुए भी युद्ध के पक्ष में बिल्कुल नहीं हैं। इसका मतलब है कि रूस और यूक्रेन को समझौते के लिए राजी करने में भारत बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार है। 000