.पन्नीवाला पान
मोहब्बत की कहानियां अनेक दुश्वारियों और अनगिनत अविश्वसनीय संयोग से भरी होती है। हमारी कथा गायक चंदर
और नायिका सुधा से उस कालखंड के सभीK पाठक परिचित होंगे । यह दोनों हिंदी के सबसे लोकप्रिय नायक नायिका थे। मोहब्बत की कहानी में नाम की समस्या हो तो आसानNbOop पड़ता है कि नायक नायिका का नाम चंदर और नायिका का नाम सुधा रख दिया जाए।
पुराने समय की बात है एक संयोगवश एक विवाह में शामिल होने हमारे कथा नायक चंद्र और सुधा एक साथ ही बनारस जा पहुंचे। चंदर अपनी बुआ की ससुराल में आया था और सुधा अपने बाबू जी के साथ एक महाविद्यालय में साक्षात्कार देने के लिए पहुंची थी। यह संयोग ही तो है एक दूसरे से अपरिचित अनभिज्ञ दोनों एक ही कार्यक्रम के लिए अवतरित हुए थे।
बात पुरानी तो है ही। उस समय ज्यादा खर्चा करने का रिवाज नहीं था। बाबूजी भला 2----4 घंटों के लिए अलग रूम क्यों लेने लगे। घर जाने के लिए हमें रात को ही गाड़ी मिल जाएगी। ऐसा कौन सा पहाड़ टूटा पड़ रहा है।। बारात में दो चार लड़कियां तो और होंगी ही। सबअपने हैं कोई दिक्कत नहीं होगी।मुगले आज़म तो सिर्फ फैसले सुनाते थे। सो भाई सुधा ने भी बिना जिरह किए स्वीकृति दे दी। अनेक अजनबी यों के बीच में तैयार होना इस बात की असुविधा को बाबू जी भला क्या समझते !!! वह तो भगवान की कृपा थी कि लड़के की बहन भी बरात में आई थी सुधा को उसी के कमरे में शरण मिल गई।
बारात रात को 7:00 बजे तक लगने वाली थी । इधर सुधा ने सोचा, जब तक बाबूजी विवाह योग्य लड़कों की सूची इकट्ठी कर रहे हैं, क्यों ना मैं बनारस की गलियां घुम आऊं? यहां लस्सी कचोरी सब्जी तो विश्व प्रसिद्ध है। सुधा बहुत जतन पूर्वक तैयार हुई और, एक बालिका का हाथ पकड़ के निकल चली बनारस की गलियों में। अपने नाम के अनुकूल गलियां बहुत संकरी थीं। दोनों तरफ कचोरी लस्सी की दुकाने। तेजी से साइकिल चलाते हुए लड़के और घुंघरू बजाते हुए रिक्शे। अनियंत्रित ट्रैफिक वसुधा आराम से घूम रही थी। तभी घुंघरू बजाता हुआ एक रिक्शा तेजी से सुधार के बगल से निकला। उसकी गति इतनी तेज थी संतुलन बनाते हुए भी सुधा असंतुलित हो गई। यह असंतुलन सुधा के लिए कितना तूफानी था यह तो बाद में ही पता चला। अगर किसी के सशक्त हाथों ने सुधा को थाम नहीं लिया होता तो सुधा नाली में गिर गई होती। सुधा गिरते-गिरते बची। सच कहें तो बची कहां?? वह तो किसी की बाहों में गिर गई थी। कुछ ही पलों के अंदर, चंदर ने सुधा को कांच की गुड़िया तरह सावधानी से सड़क पर खड़ा कर दिया। इतना ही नहीं चंदर ने सुधा को फटकार ते हुए कहा कम से कम अपना ध्यान रखना चाहिए अभी नाली में गिर गई होती, (अगर मैं नहीं आतानहीं आता तो??) यह संदेश भी स्पष्ट था. समय के छोटे से हिस्से में जो ढाई अक्षर का महाकाव्य चंदर की आंखों में बुरा था उसे पढ़ने में सुधारने कोई भूल नहीं की थी।
बारात का समय हो गया था। सफेद सूट पहन के सुधा बेमन से तैयार भी हो गई थी। अब कहां मिलेगा वह। इतने बड़े बनारस में हम उसे कहां खोजें?? अनमनी सी सुधा की आंखें इतनी बड़ी बरात में भी चंदर को ही ढूंढ रही थी । मैंने कहा ना मोहब्बत की कहानियां न जाने ऐसे कितने ही किस्सों और सहयोग से से भरी हुई होती है। थोड़ी ही देर में चंदर धूमकेतु प्रकट हुआ। सफेद आधी बांह का कुर्ता, सफेद पजामा। कंधे से 0झांकता हुआ यज्ञोपवीत, बड़ी-बड़ी है रक्ताभ आंखें और नासिका। अपने सौष्ठव की पताका लहराते हुए वसुधा के सम्मुख प्रस्तुत हुआ।सुनो पन्नीवाला पान खाओगी ? यदि सुधा चंदर को ही खोज रही थी, लेकिन चंदर के सामने आते ही मैं हड़बड़ा गई। स्वीकृति देते देते भी उसके मुंह से अनायास ना निकल गया। उस मोहब्बतें ऐसे ही शुरू होती है और खत्म हो जातीं थीं। सोच चंदर महोदय त्वरित प्रेम की आतिशी दृष्टि सेसुधा को देखते देखते वापस लौट गए। बिना एक दूसरे को परिचय दिए हुए ही चिर विरहआरंभ हो गया।
जिंदगी अपनी गति से चलने लगी। ना तो एक दूसरे का नाम पता मालूम और ना ही कोई और जानकारी थी। म
पूछें तो किससे पता करें तो कैसे???
खैर इधर संयुक्त परिवार के कर्ता-धर्ता मुखिया बाबूजी के सीने पर मुझे ऐसी तीन अन्य शिलाओं का भार था। वे चाहते थे यथा समय यह भार उतारकर अपनी सबसे छोटी बेटी का संबंधी अच्छी जगह पर कर दिया जाए। अपने दायित्वों की पूर्ति के बाद सहारनपुर वाली ज्योत्स्ना जिज्जी के चचिया ससुर के साले के लड़के का प्रस्ताव के लिए आया। लड़का डॉक्टर था। अम्मा ने घर में हाहाकार मचा दिया। अभी तक तो आप ने जैसा चाहा वैसा किया, मेरी सुधा पढ़ी लिखी है उसे मैं कुएं में ढकेलने नहीं दूंगी। लड़का लड़की एक दूसरे को देख ले बातचीत कर ले तभी संबंध हो सकेगा। पत्नी हठ के सामने, सामान्य व्यवहार में प्रचलित रिवाज के अनुसार बाबूजी ने हथियार डाल दिए। अगले सप्ताह ज्योत्सना जिज्जी के चचिया ससुर….. का लड़का अपनी बहन के साथ सुधा के घर आ रहा था। अतिथि नियत तिथि पर आ गए।
सुधा ने चुनौती स्वीकार कर ली। नेवी ब्लू साड़ी जिस पर सितारे लगे हुए थे। बिल्कुल सांध्य गगन की तरह….. गले में सफेद मोती, सफेद मोतियों के बुंदे। स्वयं को देखकर सुधा स्वयं मुग्ध हो गई। जीजी के चचिया…ससुर के साले का सुदर्शन बेटा…परिचित परिवार सुशिक्षित बेटा वह मना करना जैसा तो कुछ था ही नहीं। थोड़ी देर की औपचारिक बातचीत के बाद इशारों इशारों में स्वीकृति की सूचना सभी सदस्यों ने एक दूसरे को दे दी। अम्मा ने कहा सुधा इन्हें को अपना कमरा दिखाओ कहकर बाबूजी अम्मा बाहर चले गए। सुदर्शन पुत्र। भी उठ खड़े हुए। बड़े नाटकीय तरीके से सुधा के पास आए, एक घुटने पर बैठे, एक पान्नीवाला पान जेब से निकाला। सुधा की ओर बढ़ाते हुए उन्होंने कहा यह पान प पिछले कई वर्षों से मेरी जेब में पड़ा हुआ तुम्हारी स्वीकृति की प्रतीक्षा कर रहा है? आज तो आप इसे स्वीकार कर लेंगी ना??