ख़बर , समझ और मेहनत का संयोग बहुत कम पत्रकारों को नसीब होता है। दया शंकर शुक्ल सागर को यह खुशनसीबी हासिल है। इसी सागर का आज शुभ-जन्म दिन है। बतौर रिपोर्टर कई सारी शानदार खबरें और बड़े-बड़े सम्मान उन के खाते में दर्ज हैं। गांधी पर उन की शोध परक पुस्तक खंडित ब्रह्मचर्य मील का पत्थर है। मैं ने बहुत सारी खबरें लिखी हैं , कहानियां लिखी हैं , उपन्यास लिखे हैं , कविताएं , लेख , संस्मरण , इंटरव्यू आदि लिखे हैं। पर सागर की इस एक किताब पर मेरा यह सारा लेखन न्यौछावर है। सागर को मैं बहुत प्यार करता हूं। मेरे छोटे भाई हैं । मेरे प्रिय और पसंदीदा हैं । पर मैं उन को सर्वदा सैल्यूट करता रहता हूं। उन के खुलेपन , उन की फुर्ती , उन की मेहनत , उन की शार्पनेस के लिए। सागर इन दिनों नोएडा , अमर उजाला में हैं। कुछ बरस पहले जब शिमला गया था तो वह वहां अमर उजाला के संपादक थे। उन की आत्मीयता और आदर भरे मिलन ने मोह लिया था। वह मिठास अभी भी मन में लबालब भरी हुई है। बहू के बनाए और परोसे भोजन का स्वाद अभी भी जीभ पर बसा हुआ है। शायद ही यह स्वाद कभी विदा हो। नन्ही बिटिया की वह अबोधता भी नहीं भूलती कि शिमला में दो चीज़ें अच्छी नहीं लगतीं। एक पढ़ाई , दूसरे चढ़ाई ! शिमला की उन स्मृतियों को एक संस्मरण में संजोने का मन है । जो मेरे सर्वकालिक आलस तथा एक जाहिल और चार सौ बीस की मूर्खता और छुद्रता के चक्कर में टलता गया है । अभी जब नोएडा में था तो बीच कोरोना में वह अपनी विदेश यात्राओं पर लिखे संस्मरणों की पांडुलिपि के साथ घर आए। भूमिका लिखने के इसरार के साथ। मन मोह लेते हैं सागर लिख कर भी और मिल कर भी। सागर जिस से भी मिलते हैं , झट अपना बना लेते हैं। मोह लेते हैं। जिस शहर में रहते हैं , उस शहर को अपना शैदाई बना लेते हैं। शिमला थे तो शिमला भी उन का शैदाई है। प्रयाग में थे तो प्रयाग उन पर प्यार लुटाता था। जम्मू कश्मीर में थे तो कश्मीरियत उन पर तारी थी। ऐन आतंकी पॉकेट में जा कर , जान पर खेल कर रिपोर्टिंग की , संपादक होते हुए भी। नोएडा में भी वह अपनी नवीनता के साथ उपस्थित हैं। हमारा यह सदाबहार सागर ऐसे ही सर्वदा , सर्वत्र मचलता रहे इसी कामना के साथ सागर को बहुत सारा स्नेह , आशीर्वाद और बहुत सारी बधाई ! वह खूब यश प्राप्त करें। पत्रकारिता , लेखन और जीवन में सदा सूर्य की तरह चमकते और दमकते रहें । सर्वदा सुखी और संपन्न रहें।