विक्रमशिला एक्सप्रेस, बोगी S-2. नवरातों के बाद बिहारी दीवाली व छठ मनाने के लिए घर जाना शुरू हो गए हैं। बिहार जाने वाली किसी ट्रेन में कोई कन्फर्म टिकट नहीं है। ट्रेन में भी भीड़ इतनी है, इतनी भीड़ है कि आठ लोगों की सीट पर 12-15 लोग एडजस्ट किए है. जिसने तत्काल में टिकट कराया है वो भी तीन अनजान लोगों को बिठाकर ले जा रहे. बोगी के अंदर का नजारा कुछ ऐसा है। साइड लोअर पर एक दादी, जिनके मुंह में एक भी दांत नहीं, सिर के सारे बाल सन जैसे सफेद, सर के नीचे झोला दबाकर सो रही हैं. वो खर्राटे लेती हैं तो झुर्रियों भरे उनके गाल ज्वार-भाटा की तरह उठ-बैठ रहे. उनके साथ उनका बेटा है और एक सोलह-सत्रह बरस की लड़की. साइड अपर पर लोअर पहने एक भाई साहब भंड सोए पड़े हैं. उनके साथ सामान ही इतना है कि किसी की तशरीफ़ वहां टिक नहीं सकती.
आने-जाने वाले रास्ते पर कंधे पर गमछा डाले एक चचा टाइप आदमी ऊंघ रहा है. चाय वाले ने जाते-जाते गरम केतली उनके हाथ पर टिका दिया. फिर क्या था चचा अचानक मिर्जापुर-2 के चचा की भूमिका में आ गए. चाय वाला "हें-हें-हें-हें, अरे हम जानबूझकर थोड़े सटाए हैं"कहता आगे बढ़ गया. सामने वाली सीट पर तीन आंटियां बैठकर चुपुर-चुपुर लिट्टी खा रही हैं. मेरी तरफ भी एक लिट्टी बढ़ी, मैंने पहली बार औपचारिकतावश मना किया तो उन्होंने दुबारा पूछा ही नहीं. खैर छोड़िए. इसी सब के चक्कर में सामान लुटा जाता है. सामने सफेद कुर्ता-पजामा-टोपी में एक मौलाना साहब, जिनकी सफेद दाढ़ी पर मेहंदी का रंग चढ़ा है, मोबाइल में फुल साउंड में "मुगल-ए-आज़म"देख रहे हैं. साला यहां लोगों को बैठने की जगह नहीं मिल रही और इनकी अनारकली उठ ही नहीं रही. इन चारों के पीछे एक सत्तर वर्षीय बाबा दबे पड़े हैं. जिस हिसाब से वो दबे हैं, मुझे डर है भागलपुर पहुंचते-पहुंचते कहीं इनका कलश ना उतरे ट्रेन से.!
कुछ लोग रास्ता जाम करके ताश खेलने में मग्न हैं. सब फाइन दे-देकर टिकट बनवाया है, सोने-बैठने का कोई ठिकाना नहीं, भागलपुर अभी दस घण्टे दूर है, पर कोई टेंशन नहीं. बिहारियों ने संघर्ष को अपनी नियति मान लिया है. आराम में मजा ही नहीं आता. सीट कन्फर्म हो तो तीन एक्स्ट्रा आदमी को बिठा लेते हैं "आओ भाई, जब तक थोड़ा कष्ट ना हो, सफर का क्या मज़ा.."
ट्रेन हिलती हुई छोटे-छोटे गांव-कस्बों, बिजली-ढिबरी, खेत-खलिहान को पार करती भागी जा रही है. पब्लिक इस मिज़ाज़ में है कि छठ के लिए एक रात की नींद कुर्बान.."पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन आने वाला है. मुगलसराय तो अब रहा नहीं, पर मुग़ल-ए-आज़म का शो अभी चल ही रहा है. मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोए, बड़ी चोट खायी जवानी पे रोए...गाने तक फिल्म पहुंच चुकी है। मौलाना के साथ आस पास बैठे लोग भी गाने का मज़ा ले रहे हैं....ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से भागी जा रही है।