$ 0 0 #जाहिल_के_बाने आप सभ्य हैं क्योंकि प्रस्तुति - राकेश कुमार मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पाँवों चलता हूँमैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँमैं असभ्य हूँ क्योंकि चीरकर धरती धान उगाता हूँमैं असभ्य हूँ क्योंकि ढोल पर बहुत ज़ोर से गाता हूँआप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपरआप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू परआप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठीआप सभ्य हैं क्योंकि ज़ोर से पढ़ पाते हैं पोथीआप सभ्य हैं क्योंकि आपके कपड़े स्वयं बने हैंआप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े ख़ून सने हैंआप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारेआप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढँग हमारेमैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बानेधोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटाए हूँ याने!