यकीन मानिए कि आपको अब भी करोल बाग के टैंक रोड, रैगरपुरा, हरध्यान सिंह रोड वगैरह में कई बुजुर्ग मिल जाएंगे जिन्होंने अपने बचपन में इधर बाबा साहेब अंबेडकर को देखा-सुना है। इन्हें यह भी पता है कि करोल बाग और कांशी राम का किस तरह का संबंध रहा है। यूं ही दिल्ली सरकार के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम और बहुत से अन्य लोगों ने करोल बाग में बुद्ध धर्म को स्वीकार नहीं किया। इसका एक मतलब है।
आखिर करोल बाग बाबा साहेब और फिर कांशीराम की कर्म भूमि रहा है। बाबा साहेब करोल बाग में अपने परिचितों-समर्थकों से मिलने जुलने के लिए पहुंचते थे। यहां चमड़े का काम करने वाले दलितों की घनी बस्तियां रही हैं। बाबा साहेब ने 27 सितंबर,1951 को नेहरू जी की कैबिनेट से त्यागपत्र दे दिया था। दोनों में हिन्दू कोड बिल पर गहरे मतभेद उभर आए थे। बाबा साहेब ने अपने इस्तीफे की जानकारी संसद में दिए अपने भाषण में दी। वे दिन में तीन-चार बजे तक अपने सरकारी आवास वापस आ गए थे।
तब, करोल बाग क्षेत्र से सैकड़ों लोग बाबा साहेब के सरकारी आवास 22 पृथ्वीराज रोड पर पहुंच गए थे। करोल बाग वालों की चाहत थी कि बाबा साहेब करोल बाग में शिफ्ट कर लें। पर बाबा साहेब के एक मित्र ने उन्हें अपने 26 अलीपुर रोड के घर में रहने की पेशकश की। बाबा साहेब को वह घर लोकेशन के लिहाज से सही लगा। इसलिए उन्होंने वहां शिफ्ट किया। वे जीवन के अंत तक यहां ही रहे! लेकिन, उनका करोल बाग आना-जाना लगातार जारी रहा।
महत्वपूर्ण है कि राजधानी में बाबा साहेब की पहली प्रतिमा करोल बाग से सटे रानी झांसी रोड पर स्थित अंबेडकर भवन में 14 अप्रैल 1957 को स्थापित की गई थी। अंबेडकर भवन के लिए प्लाट बाबा साहेब ने खुद खरीदा था। इसे लेने का मकसद यह था ताकि इधर दलित समाज के लोग मिल-बैठ कर लिया करें। इससे समझा जा सकता है कि करोल बाग और इसके आसपास का सारा क्षेत्र दलितों के लिए कितना विशेष है। बाबा साहेब ने अंबेडकर भवन की 16 अप्रैल 1950 को नींव रखी थी। बाबा साहेब की 6 दिसंबर 1956 को मृत्यु के बाद उनका जो पहला जन्म दिन आया, उस दिन उनकी दिल्ली में पहली प्रतिमा लगाई गई। उसके बाद तो राजधानी में बाबा साहेब की अनेक प्रतिमाएं लगती रहीं।
इस बीच, दलितों के हकों के लिए जीवनभर सक्रिय रहे कांशीराम 1970 के दशक में रैगरपुरा में रहे। ये उन दिनों की बातें हैं जब वे रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इण्डिया से जुड़े थे। पर उन्होंने इसे जल्दी ही छोड़कर बहुजन समाज को संगठित करने के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय के सरकारी कर्मचारियों को संगठित करने के लिए ‘बामसेफ’ की स्थापना की।
कहते हैं कि वे जब यहां पर रहते थे तब उनका और मायावती की पहली बार मुलाकात हुई। एक बात और कि 1962 के लोकसभा चुनाव से करोल बाग को आरक्षित सीट घोषित कर दिया गया था। तब यहां से कांग्रेस के दलित नेता नवल प्रभाकर जीते थे। नवल प्रभाकर रैगर बिरादरी से थे। करोल बाग में रैगर बिरादरी का खास असर रहा है। करोल बाग से भारतीय जनसंघ उम्मीदवार राम स्वरूप विद्यार्थी 1967 में जीते।
1971 में कांग्रेस के टी. सोहन लाल ने यह सीट भारतीय जनसंघ से छीन ली थी। करोल बाग से शिव नारायण सरसूनिया तथा धर्मदास शास्त्री जैसे दिल्ली के दलित नेता भी जीते। धर्मदास शास्त्री पर 1984 में सिख विरोधी दंगों को भड़काने के गंभीर आरोप लगे थे। अब करोल बाग सीट को उत्तर-पश्चिम दिल्ली लोकसभा क्षेत्र कहा जाता है। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हंसराज हंस विजयी हुए थे।