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रवि अरोड़ा की नजर से.....

 फिर भी कहते हैं / रवि अरोड़ा 



गुरमीत राम रहीम से अपनी कोई जाती दुश्मनी नहीं है मगर उसके एक बार फिर पैरोल पर जेल से बाहर आने की ख़बर पढ़ते ही तन बदन में आग सी लग गई। हत्या और अपने आश्रम की साध्वियों के यौन शोषण के मामले में बीस साल की सजा काट रहा यह कथित संत जब अपनी राजनीतिक पहुंच के चलते बार बार जेल से बाहर आए तो यकीनन किसी भी न्यायप्रिय व्यक्ति को बुरा ही लगेगा ।


 बेशर्मी का आलम यह है कि डेरा सच्चा सौदा नाम का संगठन चला रहा यह आदमी बाहर आते ही फिर आत्मा परमात्मा पर लम्बे चौड़े पाठ पढ़ा रहा है और उसके कथित सत्संग में भाजपा के बडे़ बडे़ नेता न केवल हाजरी भर रहे हैं अपितु बाबा के भक्तों की तरह पिताजी पिताजी भी कह रहे हैं।

 उधर, यह भी खबर है कि हाल ही में रिहा किए गए बिलकीस बानो बलात्कार और सामूहिक हत्याओं के अपराधियों ने भी पैरोल और फरलो जैसे नियमों का जम कर लाभ उठाया और अपनी सजा के दौरान लगभग चार साल तक सलाखों से बाहर रहे । नियमों कानून की आड़ में यह सब उस देश में हुआ जहां लाखों लोग जेलों में सालों से सड़ रहे हैं और हमारी अदालतें तय ही नहीं कर पा रहीं कि वे दोषी हैं भी अथवा नहीं। 


गुरमीत राम रहीम को पिछले साल तीन बार और इस साल अभी तक दो बार पैरोल मिल चुका है। खास बात यह है कि उसे हरबार पैरोल तभी मिलता है जब उसके प्रभाव वाले हरियाणा और पंजाब में कोई चुनाव होता है और भाजपा को उसकी जरूरत महसूस होती है। 

इस बार भी अगले पन्द्रह दिनों में हरियाणा के दस जिलों में जिला परिषद के चुनाव और आदमपुर सीट पर उपचुनाव होना है । उधर, गुजरात के चर्चित बिलकीस बानो मामले के सभी ग्यारह अपराधी औसतन 1176 दिन पैरोल अथवा फरलो पर बाहर रहे । हालांकि उन्हें बाहर आने की अनुमति इससे आधे दिनों की भी नहीं थी मगर सत्ता तक उनकी पहुंच ने हर नियम और कानून को दराज में डलवा दिया । 

बेशक राज्यवार कुछ आंकड़े तो हैं मगर पूरे देश में कितने लोगों को हर साल पैरोल दिया जाता है, यह जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। राज्यों के आंकड़ों को ही देखें तो ऐसे लोग उंगलियों पर गिनने लायक ही हैं जिन्हें यह सुविधा मिली । ये लोग भी वही थे जिनकी जेब में मोटा पैसा था अथवा सत्ता के गलियारों में जिनकी अच्छी पैठ थी। 

कानूनी पचड़ों में फंसे आम भारतीयों को तो पता भी नहीं है कि सजायाफ्ता होने के बावजूद उन्हें साल में कुछ दिन सलाखों से बाहर आने का कानूनी हक है। हालांकि इसके लिए भी कुछ शर्तें हैं मगर राजनीतिक पहुंच हो तो उसका भी कोई अर्थ नहीं होता। साल 2020 में हुए नियमों के संशोधन के अनुरूप बलात्कार और हत्या के दोषियों को पैरोल अथवा फरलो लगभग न ही देने का नियम है मगर राम रहीम और बिलकीस बानो मामले के ऐसे दोषियों को बार बार समाज में विचरण के लिए खुला छोड़ दिया गया । दूसरी ओर देश की 1339 जेलों में वर्षों से ऐसे सवा तीन लाख लोग बंद हैं जिनका अपराध अभी तक साबित ही नहीं हुआ है। 

गृह मंत्रालय द्वारा संसद में बताए गए आंकड़ों के अनुरूप सजायाफ्ता कैदियों के मुकाबले विचाराधीन कैदियों की संख्या कई गुना ज्यादा है। सालों से अदालती फैसले के इंतजार में सलाखों के पीछे कैद इन लोगों को जमानत तक नहीं मिल रही और उधर राजनीतिक असर वाले हत्यारे और बलात्कारी पैरोल और फरलो का आनंद ले रहे हैं । उस पर तुर्रा यह कि हम छाती चौड़ी कर दावा करते हैं कि देश में कानून सबके लिए बराबर है।


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