विंसेंट जॉर्ज और स्व अर्जुन सिंह का जन्मदिन 5 नवम्बर...
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काँग्रेस पार्टी में सबसे शक्तिशाली एड्रेस 10, जनपथ और वहां के निवासी राजीव-सोनिया गांधी परिवार के बाद सबसे प्रभावशाली व्यक्ति रहे निजी सचिव विंसेंट जॉर्ज। 1984 से 2004 तक "जॉर्ज साहब "( जैसा काँग्रेस के बड़े-छोटे नेता उनको बोलते थे) का अखण्ड जलवा रहा।
1974 में केरल से नौकरी की तलाश में दिल्ली आए वी जॉर्ज डिग्रीधारी स्टेनोग्राफर हैं। दिग्गज काँग्रेस नेता कमलापति त्रिपाठी के निजी टायपिस्ट रहते हुए संजय गांधी की नजरों में चढ़े और फिर उनकी असमय मृत्यु होने तक उनके साथ थे। फिर राजीव गांधी ने उन्हें अपने साथ ले लिया। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए। वहीं से शुरू हुआ जॉर्ज का जलवे का सफर। प्रधानमंत्री के निजी सचिव, उनके साथ हर समय रहने वाले। जाहिर है, सत्ता साकेत में अहम किरदार बन कर उभरे।
सारे बड़े नेता जिन्हें राजीव गांधी से मिलना होता था, उन्हें जॉर्ज के दरबार में माथा टेकना जरूरी था। अर्जुन सिंह का जन्मदिन भी जॉर्ज के साथ 5 नवम्बर को होता है। यही कारण था कि दोनों के बहुत प्रगाढ़ सम्बन्ध थे। राजीव गांधी के दरबार में कैप्टन सतीश शर्मा, अरुण नेहरू, अरुण सिंह, शीला दीक्षित, माधवराव सिंधिया,पी चिदंबरम जैसे दिग्गज थे। ऐसे में अर्जुन सिंह को जॉर्ज ने बहुत मदद की।
पी वी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री काल में एक मौका ऐसा आया कि दस जनपथ के विश्वासपात्र जॉर्ज को कर्नाटक से मार्गरेट अल्वा के स्थान पर राज्यसभा भेजने का संदेश राव तक पहुंचा। राव ने गांधी परिवार के करीबी ब्यूरोक्रेट वजाहत हबीबुल्लाह के जरिये सोनिया से पुछवाया की क्या जॉर्ज को राज्यसभा में भेजना उनकी इच्छा है? सोनिया ने कहा कि योग्यता और उपयोगिता के आधार पर वह फैसला करें। राव ने जॉर्ज के प्रस्ताव को दरकिनार करते हुए मार्गरेट अल्वा को टिकट दे दिया।
इस घटना के बाद जॉर्ज ने अर्जुन सिंह और नारायण दत्त तिवारी के राव विरोधी रुख को बड़ी बगावत में बदलवा दिया। तिवारी काँग्रेस बन गई। नटवर सिंह, शीला दीक्षित भी इसमें शामिल थे। इसे दस जनपथ का समर्थन है यह सन्देश फैलाने का काम जॉर्ज ने किया। मैं उन दिनों काँग्रेस कवर करने वाले संवाददाता के बतौर हर घटनाक्रम का साक्षी रहा। विंसेंट जॉर्ज से मेरे भी अच्छे सम्बन्ध थे।
जॉर्ज की ही काबिलियत थी कि पहले गांधी परिवार और राव में खाई चौड़ी की, फिर उनके खिलाफ बगावत करवाई। राव के मनोनीत सीताराम केसरी को काँग्रेस अध्यक्ष पद से शर्मनाक घटनाक्रम के तहत हटाने, सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनवाने की पूरी मुहिम के सूत्रधार जॉर्ज थे। सोनिया के अध्यक्ष बनने के बाद जॉर्ज एक तरह से कार्यकारी अध्यक्ष हो गए थे। बहुत शक्तिशाली। बस यहीं से अहमद पटेल की सीन में एंट्री हुई! अम्बिका सोनी, शीला दीक्षित और कैप्टन सतीश शर्मा ये सब इस एक बात पर सहमत थे कि निजी सचिव को आलाकमान नहीं बनने देना चाहिए। शिकायतें, चुगली, सब शुरू हुआ।
और आखिरकार सीबीआई ने जब जॉर्ज पर आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज किया, सबने मिलकर सोनिया को समझाया और जॉर्ज दस जनपथ के शक्तिशाली ऑफिस से बाहर हो गए। कहने को आज भी वह सोनिया गांधी के निजी सचिव हैं, लेकिन उनका न केवल रुतबा खत्म हो गया, बल्कि राहुल गांधी के अपना सचिवालय बनाने के बाद जॉर्ज हाशिये पर चले गए।