( 22 नवंबर, झारखंड विधानसभा स्थापना दिवस पर विशेष )
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हम सबों का प्यारा झारखंड 22 वर्षों का युवा हो चुका है। लंबे संघर्ष के बाद झारखंड अलग प्रांत का गठन हो पाया था। उम्मीद थी कि झारखंड अलग प्रांत निर्माण के बाद झारखंड वासियों के दिन सुधरेंगे। वर्षों से उपेक्षित झारखंड में चतुर्दिक विकास की गंगा बहेगी। लोगों को रोजगार मिलेगा। प्रांत वासियों का पलायन रुकेगा। लेकिन ऐसा कुछ भी होता दिख नहीं रहा है । झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता के कारण चतुर्दिक विकास पर ग्रहण लग गया है। सन 2000 में जब झारखंड अलग प्रांत का गठन हुआ था, तब ही इसके माथे पर राजनीतिक अस्थिरता की रेखाएं उकेर दी गई थीं। 2000 में एनडीए की मिली जुली सरकार बनी थी। बाबूलाल मरांडी इस प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने थे । प्रारंभ में सब कुछ ठीक ही चल रहा था, लेकिन सरकार गठन के 6 महीने बाद ही आपसी खींचातानी शुरू हो गई थी। एनडीए में शामिल दलो के मंत्रियों और नेताओं के आए दिन एक दूसरे के विरुद्ध बयान अखबारों में छपने लगे थे। सरकार में शामिल सभी मंत्री अपने अपने मन के हो गए थे।
झारखंड में एनडीए की मिली जुली सरकार जरूर थी, लेकिन कोई किसी की बातों को सुनने को तैयार नहीं था। जदयू के वरिष्ठ नेता गौतम सागर राणा को एनडीए सरकार का पहला संयोजक बनाया गया था । सरकार बेहतर ढंग से चले । झारखंड में चतुर्दिक विकास हो। इस निमित्त उन्होंने एनडीए में शामिल सभी मंत्रियों की कई बैठकें आयोजित की थी। मंत्रियों और नेताओं के फालतू बयान बाजी बंद हो। सरकार बेहतर तालमेल के साथ चले । ऐसा उन्होंने एक प्रयास भी किया था, लेकिन उनका यह प्रयास असफल ही सिद्ध हुआ था। आपसी खींचातानी के कारण मात्र 27 महीने में ही झारखंड की पहली बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी सरकार चली गई थी। फिर अर्जुन मुंडा इस राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। वे भी आपसी खींचातानी के कारण अपना कार्यकाल पूरा कर नहीं पाए थे। झारखंड अलग प्रांत के अगुआ शिबू सोरेन एक बार कुछ दिनों के लिए ही झारखंड के मुख्यमंत्री बन पाए थे। झारखंड में सरकारें बनती गईं, कुछ साल और कुछ महीने चल कर ही समाप्त होती गई थी। झारखंड वासियों के उम्मीद के विपरीत प्रांत की सरकारों के चलने के कारण सभी विकास के कामों में ग्रहण लग गया । यह सब कुछ राजनीतिक अस्थिरता की कोख से जन्म ले रहा था।
झारखंड विधान सभा अपने स्थापना काल से ही हर वर्ष किसी एक विधायक को उनके बेहतर आचरण और विधानसभा की कार्रवाई में पूर्ण सहयोग देने के निमित्त सर्वश्रेष्ठ विधायक सम्मान प्रदान कर अलंकृत करता रह रहा है। लेकिन यह झारखंड विधानसभा के लिए दुर्भाग्य की बात है कि पक्ष और विपक्ष के विधायकों ने ऐसा कोई विशिष्ट उदाहरण विधानसभा में नहीं प्रस्तुत किया, जिससे यह प्रतीत हो कि विधानसभा के बहुमूल्य समय का सदुपयोग हुआ हो। झारखंड विधानसभा के स्थापना के बाद ही चाहे एनडीए की सरकार हो, चाहे यूपीए की सरकार हो, चाहे झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार हो, चाहे एक निर्दलीय विधायक की सरकार हो, किसी ने भी विधानसभा के बहुमूल्य समय को बर्बाद होने से नहीं बचा पाया। बल्कि आरोप-प्रत्यारोप में ही विधानसभा के बहुमूल्य समय बर्बाद होता रह रहा है। विधायक गण चाहते तो विधानसभा में चर्चा के दौरान झारखंड की बुनियादी समस्याओं पर बेहतर ढंग से उठाते, बेहतर ढंग से बातचीत करते । बहस करते। समस्याओं के स्थाई निराकरण के लिए कोई स्थाई हल ढूंढ पाते ।
झारखंड की हरियाली बीते 22 वर्षों में बहुत ही कम हुई है। झारखंड का नाम झारखंड इसलिए पड़ा था कि यह प्रदेश पेड़ पौधों की हरियाली से भरी पड़ी थी । इस प्रदेश में खनिज संपदा के बाद पेड़ पौधे ही संपदा के रूप में मौजूद हैं। बीते 22 वर्षों के दरमियान वन विभाग द्वारा संचिकाओं पर झारखंड की हरियाली को बरकरार रखने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए गए। लेकिन जमीनी स्तर पर परिणाम क्या सामने आया ? पढ़कर और सुनकर घोर आश्चर्य होगा। बीते 22 वर्षों में जंगलों की अवैध कटाई ने झारखंड की पहचान ही मिटाती चली जा रही है। बीते दिनों झारखंड के विभिन्न जिलों में लकड़ी की कटाई के कई अवैध आरा मील हजारीबाग, चतरा, कोडरमा, रांची आदि जिलों में पकड़े गए। आरा मीलों में करोड़ों रुपए के लकड़ी जप्त किए गए। अब सवाल यह उठता है कि जब वन विभाग वन रोपण का कार्य गांव - गांव में जा कर रही है, तब इन गांवों में इतनी संख्या में ये अवैध आरा मील कैसे चल रहे थे ? ये आरा मील किसकी देखरेख में चल रहे थे ? इन आरा मीलों ने मिलकर झारखंड के जंगलों की सूरत ही बिगाड़ कर रख दी है। पकड़े गए इन अवैध आरा मिलों के विरुद्ध क्या कार्रवाई हुई ? चूंकि झारखंड में एक मजबूत सरकार नहीं रहने के कारण संबंधित आरा मिलो एवं इनके सूत्रधारों पर ढंग से कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। फलत: इस वन लूट में शामिल अधिकारी, व्यवसाई और सरकार में शामिल मंत्री खुले रूप से घूम रहे हैं।
झारखंड की राजनीतिक अस्थिरता का आलम यह रहा कि मधु कोड़ा जैसे एक निर्दलीय विधायक झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे। विचारणीय बात यह है कि एक निर्दलीय विधायक झारखंड के हित में निष्पक्ष होकर कैसे फैसला ले सकता है ? उसकी कुर्सी तो दलिया विधायकों की मुट्ठी में कैद होती है। मधु कोड़ा मुख्यमंत्री के रूप में एक के बाद एक संचिकाओं के ऊपर दस्तखत करते चले जा रहे थे, ये सारे दस्तखत किसी न किसी दबाव में जरूर हुए थे। जब उनकी कुर्सी चली गई, तब उनके द्वारा किए गए दस्तखत पर बातें उठी थीं। इन बातों ने उन्हें जेल तक पहुंचा दिया था। झारखंड के 14 वर्ष राजनीतिक अस्थिरता में ही बीत गए थे । 14 वर्षों के बाद झारखंड में पहली बार रघुवर दास के नेतृत्व में एनडीए सरकार अस्तित्व में आई थीं। बीते 22 वर्षों के दरमियान रघुवर दास की पहली सरकार थी, जिसने किसी रूप में अपना 5 वर्षों का कार्यकाल पूरा किया था। झारखंड की जनता ने पांच वर्षों के बाद रघुवर दास की सरकार को अलविदा कह दिया था। हाल के कुछ दिनों में जो समाचार आ रहे हैं, उससे पता चलता है कि रघुवर दास सरकार में शामिल पांच मंत्रियों के खिलाफ ईडी अर्थात प्रवर्तन निदेशालय ने समन भेज कर ईडी दफ्तर बुलाया है। उनके खिलाफ ईडी ने भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाया है। ईडी रघुवर दास सरकार में शामिल इन पांचों मंत्रियों से पूछताछ करने जा रही है। 17 नवंबर को राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी ने समन भेज कर पूछताछ के लिए दफ्तर बुलाया था। साढ़े नौ घंटे तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से ईडी ने खनन विभाग के 1000 करोड़ों रुपए एवं मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित आरोप पर उनसे पूछताछ की है । इस पूछताछ से यह स्पष्ट हो जाती है कि झारखंड के खनिज संपदा की भरपूर ढंग से लूट हुई है। प्रदेश में जो भी सरकारें आईं, किसी न किसी रूप में अस्थिर ही रहीं । अब तक झारखंड में जो भी सरकारें बनी, किसी ने भी झारखंड को खनिज संपदा की लूट से बचा नहीं पाई। मुख्यमंत्री और मंत्री इसके घेरे में आते रह रहे हैं।
पिछले दिनों झारखंड के वरिष्ठ नेता सरयू राय ने यह कहा है कि जब ईडी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से पूछताछ के लिए बुला सकती, तब पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास से क्यों नहीं पूछताछ के लिए बुलाती है । सरयू राय के उक्त वक्तव्य का आशय यह है कि रघुवर दास की सरकार भी झारखंड के खनिज लूट में शामिल रही है। झारखंड लूट ने प्रांत के विकास को ग्रहण दिया है।
किसी भी राज्य के विकास के लिए 22 वर्षों का समय कम नहीं होता है। लेकिन अब तक झारखंड एक लूट का ही बना रहा। जिसे जब भी अवसर मिला, झारखंड को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ा। राजनीतिक अस्थिरता के कारण झारखंड के अधिकारी भी बेलगाम हो गए । झारखंड के अधिकारी अपनी मनमर्जी से प्रशासनिक कार्य पूरा करते हैं। यह झारखंड का दुर्भाग्य ही है कि झारखंड के लूट में झारखंड के बड़े बड़े अधिकारी शामिल रहे हैं। उदाहरण के तौर पर पूजा सिंघल जो इस प्रांत के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहीं। आज पूजा सिंघल मनी लांड्रिंग और आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के केस में रांची जेल में बंद है। इसके अलावा झारखंड के कई वरीय पदाधिकारियों के विरुद्ध भी मुकदमे चल रहे हैं। झारखंड का चतुर्दिक विकास तभी संभव होगा, जब झारखंड के एक-एक विधायक पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ विधानसभा के संकल्प के अनुरूप आचरण करेंगें। झारखंड को सुंदर बनाने के लिए सबसे पहले झारखंड को लूटना बंद करें। झारखंड की खनिज संपदा और हरियाली पर झारखंड वासियों का हक है। झारखंड वासियों ने आप सबों को मत देकर विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री बनाया हैं । राज्य के प्रति आप सबों की नैतिक जवाबदेही बनती है कि राज्य के विकास के लिए ईमानदारी पूर्वक पहल करें। राजनीतिक अस्थिरता के कारण झारखंड के विकास पर ग्रहण लग गया है। यह तभी दूर होगा, जब इमानदारी पूर्वक पहल किया जाएगा। झारखंड को एक मजबूत और इमानदार सरकार की जरूरत है, जो राज्य वासियों के हित में फैसला लें । राज्य के उद्यमिता विकास, हरियाली, खेतों में पानी, झारखंड से उत्पादित वस्तुओं से संबंधित उद्योगों का निर्माण प्रदेश में करें, बेरोजगारों को नौकरी दे सके, ऐसी एक मजबूत सरकार की झारखंड में जरूरत है। है। इस निमित्त झारखंड वासियों को अपने अपने मत का प्रयोग धर्म, जात पात से ऊपर उठकर करने की जरूरत है । ऐसे लोगों को चुनकर विधानसभा में भेजने की जरूरत है, जो झारखंड के विकास को गति दे सके।