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सुरेंद्र किशोर पर आलोक तोमर की टिप्पणी

 मेरे बारे में आलोक तोमर के तीन वाक्य  

 किसी पुरस्कार से कम नहीं

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सुरेंद्र किशोर

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पत्रकारीय जीवन (1977-अब तक )में कोई भी पद,पुरस्कार,सम्मान या उपहार आदि मेरे नाम दर्ज नहीं है।

या तो मिला नहीं या लिया नहीं !

इस बारे में जिन्हें जो समझना हो,समझ सकते हैं।

हां, एक बात जरूर जहां-तहां दर्ज है।

वह है कि मेरे लेखन के प्रति कुल मिलाकर सराहना के शब्द।

मैं शुरू से ही यह मानता रहा कि वही मेरे लिए बड़ा से बड़ा पुरस्कार होगा।

बाकी पुरस्कारों में से अधिकतर के पीछे ‘‘कुछ-कुछ होता रहता है।’’

हां,सबके पीछे नहीं।

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 कुछ वैसे ही शब्दों के साथ हिन्दी के चर्चित व अद्भुत पत्रकार आलोक तोमर को मैं आज याद कर रहा हूं।

बात तब की है कि जब आलोक तोमर ग्वालियर में दैनिक ‘स्वदेश’ में काम कर रहे थे।

सन 1983 से पहले की बात है।

मैं पटना में दैनिक ‘आज’ में सेवारत था।

साथ-साथ, अनेक पत्र-पत्रिकाओं के ALAWA ‘नईदुनिया’ के लिए भी बिहार से खूब लिखता था।

उन दिनों इन्दौर से प्रकाशित दैनिक नईदुनिया देश का सर्वश्रेष्ठ हिन्दी अखबार माना जाता था।राजेंद्र माथुर उसके संपादक थे।वह मध्य प्रदेश का तब सर्वाधिक प्रसार वाला अखबार था।

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आलोक ने मुझे ग्वालियर से लिखा,

‘‘आपका नाम इस इलाके में नईदुनिया के चलते काफी लोकप्रिय है।

एकाध ने तो भरोसा ही नहीं किया कि मैं जो पत्र दिखा रहा हूं ,वह वास्तव में आपका ही है।

 आपके प्रभामंडल का शिकार हो गया मैं।’’

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याद रहे कि बिहार के मूल वासी अंग्रेजी पत्रकार हेमेंद्र नारायण मध्यप्रदेश में तैनात थे और उन्होंने आलोक के बारे में मुझे बताया था।

उस पर मैंने आलोक को एक चिट्ठी LIKHI थी।

उसी  चिट्ठी की चर्चा कर रहे थे आलोक।

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बाद में आलोक ने नई दिल्ली

में ‘यूनीवार्ता’ ज्वाइन की।

उसके बाद ‘जनसत्ता’।

प्रभाष जोशी के  प्रियपात्र रहे आलोक ने ‘जनसत्ता’

में ऐसी रिपोर्टिंग की जो सब लेखन शैली का उदाहरण बन गया।

  आलोक अपने समय के स्टार रिपोर्टर थे।

11 साल पहले उनका निधन हो गया।

उन्होंने जब मुझे चिट्ठी लिखी थी,तब वे अपने पत्रकारीय जीवन के निर्माण काल में थे।

पर,उस समय भी चीजों पर उनकी पकड़ पैनी और मजबूत थी।

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लगता है कि ऐसे प्रतिभाशाली लोगों को समय से पहले ही ईश्वर अपने पास बुला लेते हैं।

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30 नवंबर 22


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