( वरिष्ठ पत्रकार निलेन्दु जयपुरियार की पत्रकारिता के सफर की कहानी
झारखंड के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार सह संपादक निलेन्दु जयपुरियार के पत्रकारिता के संर्घप की कहानी बड़ी दिलचस्प और अनुकरणीय है। पिता जी की मर्जी के विरुद्ध पत्रकारिता के पेशे में जाना, जहां सिर्फ चुनौतियां हैं। अनिश्चितता का माहौल है। पग पग में संघर्ष है। इन विपरीत परिस्थितियों और चुनौतियों के बीच इन्होंने पत्रकारिता के पेशे को स्वीकार किया। ये जब पत्रकारिता के पेशे से जुड़े तो पीछे मुड़कर कभी देखे नहीं, निरंतर गतिशील बने रहें। मार्ग में कई अवरोध उत्पन्न हुए । इन तमाम अवरोधों का मुकाबला करते हुए आगे बढ़ते रहें। जिस कालखंड में इन्होंने पत्रकारिता पेशे को स्वीकार किया था, उस समय झारखंड में पत्रकारिता का कोई बेहतर माहौल व भविष्य भी नहीं था। इसके बावजूद लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के एक प्रहरी के रूप में हाथ में कलम लिए निकल पड़े थे।
निलेन्दु जयपुरियार अपने कमिटमेंट के पक्के हैं। पत्रकारिता इनके जीवन का मिशन बन गया है। अगर इन्हें, मैं लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का सच्चा प्रहरी कहता हूं, तो इनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक सही उदघोप होगा। आज की बदली परिस्थिति में लोकतंत्र के चारों स्तंभ किसी न किसी रूप में लहूलुहान हैं। चारों स्तंभों पर बराबर देशभर में उंगलियां उठती रहती हैं। पत्रकारिता पर भी अंगुलियां उठ रही हैं। इस विषम परिस्थिति में निलेन्दु जयपुरियार अपनी पत्रकारिता को अछुण्ण बनाए रखा है । यह अपने आप में बड़ी बात है।
इन्होंने पत्रकारिता के मूल मूल्यों को अपनी इमानदारी, सत्य निष्ठा से और भी अंकुरित करने का प्रयास किया है। इनकी रिपोर्टिंग एवं समय-समय पर संपादकीय पक्षपात की राजनीति से दूर रहती है। सच को सच कहने में कभी कतराते नहीं ।
समाज का जो सच है, उसको उसी रूप में प्रस्तुत करते रहते हैं। अन्याय शोषण एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ इनकी रिपोर्टिंग सदा समाज को आगाह करती रहती है। इनकी पत्रकारिता 'एलो जनरलिज्म'से दूर रहती है। जहां तक मैं इनकी रिपोर्टिंग को पढ़कर समझा हूं, इन्होंने बदले की भावना से ग्रसित होकर कभी भी कलम चलाई नहीं है, बल्कि बड़े से बड़े किरदारों की गलतियों के खिलाफ लिखने में कोई कोताही भी नहीं की है।
पत्रकारिता के प्रति इनका लगाव छात्र जीवन से ही रहा है, जो बदस्तूर जारी है। मैं इन्हें बीते 35 - 36 वर्षों से लगातार पत्रकारिता से जुड़ा देखता रहा हूं । इनकी माली हालत जो पहले थी, आज भी कम बेसी वही है । अगर ये थोड़ा भी पीत पत्रकारिता की राह पर चल लिए होते, तो काफी धन संग्रह कर लिए होते । आज भी निलेन्दु जयपुरियार जी अपने दोनों अनुज भाइयों के साथ पिताजी के द्वारा निर्मित मकान में ही साथ साथ रह रहें हैं।
इन्होंने कभी भी पत्रकारिता के मूल्यों एवं सिद्धांतों से समझौता किया । इनकी कथनी और करनी की समानता देखकर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की पत्रकारिता याद आ जाती है। स्वाधीनता आंदोलन के दरमियान भारत में पत्रकारिता जन्म ले रही थी । इस दौर के अधिकांश नेताओं ने पत्रकारिता को स्वाधीनता आंदोलन का प्रमुख हथियार बनाया था । कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, राधाकृष्ण, जयपाल सिंह, फणीश्वर नाथ रेणु आदि शिक्षाविदों ने अपने कैरियर शुरुआत पत्रकारिता से ही की थी। इन तीनों की तरह ही पर देश भर में सैकड़ों लोग चले थे। इस राह पर चलकर इन लोगों ने अपना सब कुछ निछावर कर दिया था । देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने राजनीति में प्रवेश से पूर्व एक पत्रकार के रूप में ही अपने कैरियर की शुरुआत की थी।
निलेन्दु जयपुरियार की उम्र 50 से पार कर गई है, कुछ सालों में साठ को छू लेंगे। मैं, इनको प्रारंभिक काल में एक युवा पत्रकार के रूप में देखा,.. उस समय जो स्फूर्ति देखी थी, आज भी वही स्फूर्ति और गतिशीलता बरकरार है। यह इसलिए संभव हो पाया है कि पत्रकारिता के प्रति इनका पूर्ण निष्ठा और समर्पण है । पत्रकारिता के शुरुआती दौर में निलेन्दु जयपुरियार जी सूचना मिलते ही बिना देर किए ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए निकल पड़ते थे । आज भी निकल पड़ते हैं। चूंकि हजारीबाग एक संवेदनशील क्षेत्र है । जब भी मैंने उन्हें कोई अनहोनी की सूचना दी, बिना समय गवाएं ग्राम रिपोर्टिंग के लिए निकल पड़ते हैं।
हजारीबाग पत्रकारिता के क्षेत्र में सैकड़ों लोग विभिन्न अखबारों में रिपोर्टिंग दर्ज करते रहते हैं । लेकिन निलेन्दु जयपुरियार की रिपोर्टिंग प्रस्तुत करने का जो तरीका है, वह सबसे अलग है। समाज में सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे । जात पात से मुक्त समाज का निर्माण हो। रूढ़िवादिता मिटे। कुरीति जैसी प्रथा का अंत हो । भ्रूण हत्या। बाल अपराध। शोषण समाचार जैसे मुद्दे पर इनकी कलम चलती रहती है। इसके साथ ही सांस्कृतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक एवं वैचारिक गतिविधियों पर भी इनकी कलम निर्वात गति से चलती रहती है। इनकी रिपोर्टिंग पर झारखंड के जाने-माने नेता गौतम सागर राणा ने कहा है कि 'निलेन्दु जयपुरियार की रिपोर्टिंग राष्ट्रीय स्तर की रिपोर्टिंग की तरह होती है । इनकी रिपोर्टिंग बेबाक और निर्भीक होती है। इनकी रिपोर्टिंग पाठकों को निष्कर्ष तक पहुंचाती है । आज के युवा पत्रकारों को इनकी रिपोर्टिंग से सीखने की जरूरत है । इनकी रिपोर्टिंग देखकर प्रतीत होता है कि जयपुरियार जी एक ईमानदार निष्ठावान पत्रकार हैं।'
इन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में की थी। प्रभात खबर और हिंदुस्तान जैसे अखबार में चीफ ब्यूरो बने। इन दोनों अखबारों के चीफ ब्यूरो बनकर इस पद की प्रतिष्ठा को बढ़ाया और कायम रखा । इन्होंने झारखंड के प्रथम हिंदी दैनिक 'रांची एक्सप्रेस,'हजारीबाग संस्करण के संपादक के रूप में भी महती भूमिका अदा की थी। 'रांची एक्सप्रेस'के संपादक की हैसियत से इनका संपादकीय सदा पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा था, जिसकी चर्चा आज भी होती है। भारत की आजादी के दिन कोलयांचल की धरती से प्रकाशित हिंदी दैनिक 'आवाज' जैसे प्रतिष्ठित अखबार का हजारीबाग संस्कृत का संपादक बने । 'आवाज'के संपादक के रूप में भी पत्रकारिता की साख को मजबूत किया। समाज के चतुर्दिक विकास में पत्रकारिता की क्या भूमिका हो सकती है इस धर्म का निर्वाह इन्होंने पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया। इन्होंने आवाज के संपादक के रूप में काम करते हुए एक सामाजिक कार्यकर्ता की थी । 'आवाज'में काम करते हुए कोरोना जैसी महामारी संपूर्ण देश में दस्तक दे दी थी। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद संपूर्ण देश में लॉकडाउन लागू हो गया था । इस दौरान निलेन्दु जयपुरियार ने 'आवाज'के माध्यम से लोगों तक सही सूचनाएं पहुंचाया। बीमार लोगों को 'आवाज'परिवार के सहयोग से अस्पताल में दाखिला करवाना। बीमार लोगों को समय पर दवा उपलब्ध करवाना। लॉकडाउन के दौरान हजारीबाग के गरीब तबके के लोगों के बीच मुफ्त चावल ,दाल , आटा एवं अन्य खाद्य सामग्रियां उपलब्ध कराया। जिसकी चर्चा आज भी होती है। निलेन्दु जयपुरियार ने जिन मूल्यों और सिद्धांतों को अपनी रिपोर्टिंग का आदर्श बनाया, अपने व्यवहारिक जीवन में भी उन मूल्यों और सिद्धांतों को अपनाया।
हजारीबाग के लोगों की इच्छा रही थी कि हजारीबाग से एक हिंदी दैनिक का प्रकाशन हो। यहां से कई हिंदी साप्ताहिक पत्रों का प्रकाशन हुआ था, जिनमें अधिकांश सप्ताहिक कुछ साल चलकर बंद हो गए थे । हजारीबाग से सिर्फ एक हिंदी सप्ताहिक 'रजरप्पा टाइम्स'बीते 36 वर्षों से निरंतर प्रकाशित हो रहा है। हजारीबाग जिले से सटे एक -दो जिले से हिंदी दैनिक का प्रकाशन हो रहा था, लेकिन हजारीबाग के ना कोई व्यवसायी और ना ही कोई पत्रकार ने यहां से हिंदी अखबार निकालने की जोखिम उठाया। हजारीबाग की धरती से प्रथम हिंदी दैनिक 'प्रातः आवाज'को प्रकाशित करने का श्रेय वरिष्ठ पत्रकार निलेन्दु जयपुरियार को जाता है। हजारीबाग के युवा व्यवसाई हेमंत कुमार जी इस अखबार के प्रकाशक सह प्रबंध निदेशक है। इस अखबार के प्रकाशन का दूसरा वर्ष चल रहा है। यह अखबार बिना रुके निर्बाध गति से चल रहा है । कम समय में यह अखबार एक-एक कर झारखंड के विभिन्न जिलों तक अपनी पहुंच बनाने में सफल हो रहा है। इस अखबार को पाठकों का बहुत ही अच्छा समर्थन प्राप्त हो रहा है। इस अखबार का केंद्रीय कार्यालय हजारीबाग होने के चलते अखबार का संपूर्ण कार्य यहीं प्रधान कार्यालय में संपन्न होता है। प्रातः आवाज ने अपने स्थापना के दूसरे वर्ष पर झारखंड की राजधानी रांची में भी अपना कार्यालय खोल लिया है । वरिष्ठ पत्रकार निलेन्दु जयपुरियार जी की पत्रकारिता के प्रति ईमानदारी, निष्ठा और समर्पण के चलते ही हेमंत कुमार जी 'प्रातः आवाज'के प्रकाशन से जुड़े । 'प्रातः आवाज'की पूरी टीम निलेन्दु जयपुरियार के नेतृत्व में आगे बढ़ती चली जा रही है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि 'प्रातः आवाज'झारखंड के अग्रणी अखबारों की श्रेणी में खड़ा होगा।
अंत में मैं निलेन्दु जयपुरियार के परिवार के संबंध में इतना ही कह सकता हूं कि तीनों भाइयों में असीम प्रेम है। तीनों में बेहतर तालमेल है । एक छत के नीचे तीनो भाईयों के परिवार एक साथ रहते हैं । आज ऐसे परिवार देखने को कहां मिलते हैं। यह हजारीबाग का पहला परिवार है, जिसमें परिवार के सभी भाई पत्रकारिता के ही पेशे से जुड़े हुए हों। तीनो भाई ईमानदार और निष्ठावान पत्रकार हैं । तीनो भाई पत्रकारिता के साथ सामाजिक गतिविधियों में भी आगे की पंक्ति में खड़े मिलते हैं । तीनों के बच्चे बेहतर शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई कर रहे हैं । निलेन्दु जी के बड़े पुत्र एक वरिष्ठ अधिवक्ता के अंतर्गत वकालत कर रहे हैं। पिछले दिनों जब मैं सुबह में उनके घर गया था, तब उनका वकील पुत्र खुद से चाय बनाकर बड़े ही आदर के साथ मुझे चाय पिलाया था तीनों भाई एवं इनकी बहुएं मिलजुल कर मां की सेवा करते हैं। निलेन्दु जी के पिताजी अपने जीवन काल में ही घर के घर में एक मंदिर बनवा दिया था। तीनो भाई मिलजुल कर मंदिर की बड़े अच्छे ढंग से ख्याल भी रखते हैं। इनका परिवार एक प्रगतिशील परिवार के साथ मिलनसार परिवार के रूप में जाना जाता है। छठ पर्व अथवा किसी अन्य आयोजन में इनके यहां सैकड़ों की संख्या में लोग आते हैं। सच्चे अर्थों में इनका घर एक मंदिर के समान है। ऐसे घर और परिवार से समाज के हर लोगों को सीख लेनी चाहिए।
विजय केसरी
(कथाकार / स्तंभकार)
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 321.
मोबाइल नंबर :- 92347 99550.