'कोई अपना होता'नये बरस की कड़कड़ाती हुई इस ठंड में जहां उत्तर भारत ठिठुरा और दुबका हुआ है। इसी हाड़ कंपाती ठंड के बीच देश के बड़े पत्रकार अनामी शरण बबल जी की नई किताब की आमद साहित्य और पत्रकारिता जगत में नये बरस का तोहफा से कम नहीं है। किताब के पन्नों को पलटने पर एक से बढ़कर एक कथाएं और संस्मरण इस ठंड के मौसम में भी भावनाओं की ऊष्मा और चमत्कारी शब्दों के कथानक, गर्मी लाने में सक्षम हैं। 'कोई अपना होता'जैसे महत्वपूर्ण शीर्षक इस आमुख का विशेष सौन्दर्य भले हो लेकिन इसके भीतरी सौन्दर्य में उन अनाम नायिकाओं की मन की पीड़ा और भावनाओं का ज्वार-भाटा पाठक को बांधे रखने की क्षमता रखता है।
अनामी शरण बबल मूलतः औरंगाबाद से हैं। पूरब की माटी और उसके मनोविज्ञान में रचा-बसा एक नवयुवक जब दिल्ली जैसे महानगर में प्रवेश करता है तो उसके सामने एक ऐसी दुनिया होती है जहां सबकुछ अनजाना और अनभिज्ञ सा होता है। देश की पत्रकारिता की सबसे बड़ी संस्था आईआईएमसी से पत्रकारिता में दीक्षा लेने के बाद समाज को देखने, समझने और महसूसने का नज़रिया बदल जाता है। एक रिपोर्टर के रुप में वे विभिन्न समाचार माध्यमों के लिए रिपोर्ट करते हुए समाज की तल्ख सच्चाईयों से रूबरू होते हैं। राजनीति की भीतरी अन्तर्सम्बन्धों को भेदने में माहिर बबल जी का प्रिय विषय भेंटवार्ता और संस्मरण लेखन होता है। मैंने जितना उन्हें जाना या पढ़ा है। इस विषय पर उनकी कलम सर्वोत्तम प्रदर्शन करती है। विशेष तौर पर आधी आबादी की अन्तर्मन की वेदना के तो वे कुशल चितेरे हैं।
यह किताब उनके पत्रकारिता जीवन का ही संकलन है।
वेश्यावृत्ति इस देश की शुरुआती पेशा में से एक है। समय की रेखा पर दक्षिण के मन्दिरों में देवदासी प्रथा से शुरू हुआ यह पेशा,आज कालगर्ल तक का रुप बदलते हुए हमारे समय में दाखिल हुआ। देश के लगभग हर महानगर की अपनी-अपनी जीवंत कथाएं इस वर्ग को लेकर है। बबल जी, दिल्ली से लेकर आगरा तक की नगरवधुओं से साक्षात्कार किए हुए हैं। उनकी आत्मा इन अभागी वेश्याओं को समाज की गंगा मानती है। हर वेश्या की अपनी आत्मकथा है और उसके पास बताने के लिए बहुत कुछ है। बबल जी उनके उस हिस्से के हमराज हैं। जो इनसे मिलकर खुशी-खुशी मन की गिरहें खोलकर रख देती हैं, जो किसी रईस के सामने नहीं खुलती। कोई रईस उनके शरीर की गांठें खोल सकता है लेकिन बबल जी कलम उनकी मन की गांठें खोलने में सक्षम होती हैं । इस मामले में उनका यह काम उन्हें बहुत बड़ा बना देती हैं। तिरस्कृत समाज का दर्द बांटना, उसे स्वर देना अनामी शरण बबल के कलम की खुबी है।
तीन खंडों में संकलित इस किताब में पहला खंड नगरवधुओं और आधी आबादी की वेदना का अभिव्यक्ति है तो दूसरा खंड एक पत्रकार का राजनीतिक लोगों से मुलाक़ात और उनके जीवन के अनुछुए पहलुओं पर शानदार संस्मरण लिखा है। उसमें से बहुत से लोग अब इस दुनिया में नहीं है।
कुल मिलाकर यह किताब राजनीति, आधी आबादी, विशेष कर वेश्याओं के मनोविज्ञान को समझने के लिए महत्वपूर्ण कृत है। शोधकर्ताओं के लिए यह महत्वपूर्ण सन्दर्भ हो सकती है।
Anami Sharan Babal जी की इस नई कृत की साहित्य और पत्रकारिता जगत में स्वागत होना चाहिए।