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मुगल गार्डन हुआ अमृत उद्यान,फिर छिड़ी बात फूलों की / विवेक शुक्ल

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अब मुगल गार्डन को बोलिए अमृत उद्यान। यानी जिस मुगल गार्डन को देश की कई पीढ़ियों ने मुगल गार्डन के नाम से जाना था उसे नया नाम मिल गया। केन्द्र सरकार ने शनिवार को मुगल गार्डन का नाम बदलकर अमृत उद्यान कर दिया है। मुगल गार्डन को नया नाम राष्ट्रपति भवन दिवस से ठीक पहले मिला है। हर साल 1 फरवरी को राष्ट्रपति भवन दिवस मनाया जाता है।


 दरअसल 1 फरवरी 1950 को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद यहां रहने के लिए आए थे। तो सरकार ने राष्ट्रपति भवन दिवस से ठीक पहले एक बड़ा फैसला लिया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ही मुगल गार्डन में आम जान के प्रवेश को खोला था। यह हर साल जनता के लिए फरवरी में खुलता है। अब जब यहां लोग गुलों को निहारने आएंगे तो उन्हें अमृत उद्यान नाम पढ़ने को मिलेगा।


 किसकी प्राण और आत्मा


बेशक,राष्ट्रति भवन की प्राण और आत्मा रहा है 15 एकड़ में फैला फूलों से लदा महकता मुगल गार्डन। मुगल गार्डन 1928-29 तक बन कर तैयार हो गया था। कह सकते हैं राष्ट्रपति भवन में रहे पहले वायसराय लार्ड इरविन के आने से पहले तक यह सुगंध बिखरेने लगा था। लॉर्ड इरविन यहां 6 फरवरी 1929 को रहने के लिए आए थे। मुगल गार्डन का डिजाइन राष्ट्रपति भवन के चीफ आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने 1917 तक बना लिया था। मुगल गार्डन की लैंड स्केपिंग हार्टिक्लचर विभाग में निदेशक डब्ल्यू आर.मुस्टो ने की थी एडविन लुटियंस की सरपरस्ती में। इसमें ब्रिटिश और मुगलकाली उद्यान शैली का अप्रतिम मिश्रण दिखाई देता है।


 कहां मदर टेरेसा और कैनेडी


संसार के शायद ही किसी उद्यान में मगल गार्डन से अधिक गुलाब की प्रजातियां हों। यहां 150 प्रजातियों के गुलाब हैं। इसमें बोन्न नुइट तथा ओलाहोमा जैसे गुलाब भी हैं जो कि कालेपन के नजदीक होते हैं। नीले रंगों में यहां पैराडाइज, ब्लू मून, लेडी एक्स हैं। यहां पर दुर्लभ हरा गुलाब भी हे। गुलाबों के कुछ बहुत ही रोचक नाम हैं। जैसे जॉन कैनेडी, अब्राहम लिंकन,मदर टेरेसा, अर्जुन, भीम, राजाराम मोहन राय,  डॉ. बी.पी. पाल आदि। कैनेडी की हत्या के बाद  मुगल गार्डन के मालियों ने उनकी याद में गुलाब की एक प्रजाति विकसित की थी।  अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के नाम पर गुलाब की प्रजाति भी मुगल गार्डन में पेश है। मतलब अमेरिका के दो महान राष्ट्रपति भारत के राष्ट्रपति भवन में स्थायी रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं।


मुगल गार्डन चार भागों में बंटा हुआ है और चारों एक दूसरे से भिन्न एवं अनुपम हैं। यहां कई छोटे-बड़े बगीHचे हैं। बटरफ्लाई गार्डन में फूलों के पौधों की बहुत सी पंक्तियां लगी हुई हैं। तितलियों को देखने के लिए यह जगह सर्वोत्तम है। मुगल गार्डन में फूलों के साथ-साथ जड़ी-बूटियां और औषधियां भी उगाई जाती हैं। इनके लिये एक अलग भाग बना हुआ है, जिसे औषधि उद्यान कहते हैं।


 फूल-पौधों पर कौन करता जान निसार


मुगल गार्डन में आने वाले अतिथि गुलाब की अनगिनत प्रजातियों को देखने भर से अपने को तृप्त महसूस कर रहे हैं। लेकिन, शायद ही कोई उन मालियों से मिलता हो जो मुगल गार्डन को देखते-संवारते हैं। मुगल गार्डन के मालियों के लिए यहां का हरेक पत्ता, बूटा, फूल अपने बच्चों की तरह प्रिय होता है। वे इन पर जान निसार करते हैं। इन्हें उसी तरह से पालते-पोसते हैं जैसे कोई माता-पिता अपने बच्चों को जन्म के बाद लाड- प्यार से खड़ा-बड़ा करते हैं। मुगल गार्डन को विशिष्ट बनाता है यहां पर गुलाब की 150 से अधिक प्रजातियां। इन्हें खड़ा करने का श्रेय जाता है इधर के दर्जनों मालियों को। ये पीढ़ी दर पीढ़ी से हैं।


अभी तक रहे देश सभी राष्ट्रपति मुगल गार्डन के मालियों से लगातार मिलते-जुलते रहे। उन्हें सलाह देते रहे कि व किस तरह से मुगल गार्डन को और बेहतर बना सकते हैं।  अमिता बविसकर ने अपनी किताब फर्स्ट गार्डन आफ दि रिपब्लिक में लिखा है- “ मुगल गार्डन के मालियों का संबंध मुख्य रूप से सैनी समाज से रहा है। ये राजस्थान से संबंध रखते हैं।” आप कह सकते हैं कि ये व्यवस्था शुरू से ही चल रही है।   गुजरे कुछ दशकों से उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और फैजाबाद के भी माली आने लगे हैं। ये सब केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग यानी सीपीड्ब्लूडी से जुड़े होते हैं और इनकी किसी अन्य जगह पर ट्रांसफर भी प्राय: नहीं होती। ये अधिकतर राष्ट्रपति भवन परिसर में ही रहते हैं। ये सब यहां पर पीढ़ी दर पीढ़ी से हैं। कुछ के पिता और दादा भी यही काम करते रहे हैं। इनका सारा संसाऱ राष्ट्रपति भवन के अंदर ही गुजर जाता है।


ये माली हर साल सितंबर के महीने से इस अनूठे उद्यान को नए सिरे से तैयार करने में जुट जाते हैं। यहां पर माली के रूप में काम करने वालों को अलग से कोई ट्रेनिंग वगैरह तो नहीं मिलती। वह अपने सीनियर्स से सीख-सीख कर अनुभव प्राप्त कर लेते हैं। हां, ये सब बीच-बीच में पूसा में लगने वाले कृषि मेलों में जाते हैं ताकि खेती की नई किस्मों और उपकरणों के बारे में जान सकें।


बहरहाल, मुगल गार्डन नाम अब इतिहास के पन्नों में जा रहा है। यही प्रकृति का नियम भी है। यहां कुछ भी तो स्थायी नहीं है।


 Vivekshukladelhi@gmail.com,  29 01.23 Navbharattimes




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