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Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
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खाकी- द बिहार चैप्टर,

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रात भर जगकर वेब सीरीज देखना एक अलग ही दुनिया मे ले जाता है। खाकी- द बिहार चैप्टर, आईपीएस अमित लोढ़ा की खुद की कहानी, जिसे मूवी में एक यस आई द्वारा कहलवाया गया है। आईपीएस अमित की  किताब तो नहीं पढ़ा पर पर नीरज पांडे के निर्देशन में बनी और नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हुई यह वेब सीरीज बिहार में इक्कसवीं सदी के शुरुआत में राजद का सरकार से बाहर होना और जदयू के सरकार में आने के दौरान अतिपिछड़ी जातियों के आत्मसम्मान और राजनीति में भागीदारी की शानदार कहानी बताती है। मैं कहानी बताकर देखने वलां का सस्पेंस नहीं खत्म करने वाला। पर मूवी से मिलने वाली  सामाजिक समझ की बात जरूर करूंगा। क्यों कि खुद के लिए एक्टिंग और सिनेमेटोग्राफी की समझ सायद अभी उस स्तर की नहीं मानता, इसलिए मूवी से मिलने वाली सामाजिक समझ, सीख और उद्देश्य जरूर जानने का प्रयास करता हूँ। 

             

                

              कुल कुल सात एपिसोड में लगभग 50-50 मिनट के ये सातों एपिसोड सात चैप्टर में बांटे गए हैं, जो आईपीएस अमित लोढ़ा की अपनी समझ के हिसाब से आईपीएस की नौकरी की ब्रांडिंग करते हुए कहानियां बयां करती है। यह मूवी बिहार में जाति संघर्ष के साथ राजनीति और पुलिस के आपस मे जुड़े तारों को जिस आसानी से समझाती है वह काबिलेतारीफ है। बिहार में जाति और आइडेंटिटी की राजनीति अन्य  राज्यो के अपेक्षा ज्यादा होती दिख पड़ती है। खैर इस वेब सीरीज की बात करें तो  कैसे बिहार के नालन्दा जिले की अतिपिछड़ी जाति अभाव और भागीदारी के लिए संघर्ष करती है, और उस आधार पर पहले एक अपराधी को अपना नेता बनाती है, फिर उसे समर्थन देकर तमाम अपराधों के बावजूद भी अपना नेता बनाये रखती है। कैसे ये अपराधी (चंदन महतो) जाति के आधार पर अपना एक साम्राज्य खड़ा करता है, और यही अपराधी बाद में उसकी ही जाति के नेताओं के लिए गले की हड्डी बन जाता है। पूरी वेब सीरीज जातिगत संघर्ष, राजनीति और अपराध के साथ- साथ एक पुलिस अधिकारी के अपनी जॉब के दौरान परिवारिक जीवन मे आने वाली मुश्किलों को बड़े सुंदर ढंग से बताती है। हमे यह मूवी यह सिखाती है, कैसे अपनी ही जाति द्वारा बनाया गया अपराधी हमारे लिए भस्मासुर साबित होता है जो पूरे समाज के लिये हानिकारक साबित होता है। जो चीज कानून और शिक्षा के रास्ते जितने सम्मान और सरल तरीके से प्राप्त की जा सकती है वह हिंसा के रास्ते क़त्तई नहीं संभव है। तो किसी भी सभ्य समाज के लिये सबसे जरूरी है कानून का राज, साथ मे शिक्षा। यही वह माध्यम है जिसे हमे अपना मानक मानना चाहिए।


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