कृति कथा : बातें मुलाकातें / टिल्लानी रिछारिया
इस कृति को आप जैसे सुविज्ञ और संवेदनशीKल पाठकों तक पहुंचाते हुए इस बात की खुशी हो रही है कि इसमें प्रस्तुत सारा लेखा जोखा आप की ही अमानत है जो आप को समर्पित कर रहा हूं। अपनी 50 सालों की पत्रकारिक यात्रा में मिले तमाम लोगों से तमाम बातें - मुलाकातें हुईं। कुछ याद रहीं , कुछ भूल गईं , कितनी खो गईं , कुछ पत्र पत्रिकाओं के पन्नों तक पहुंची। पत्र पत्रिकाओं के पन्नों तक पहुंची कुछ बातें - मुलाकातें संयोग से उपलब्ध हैं , इन्हें एक कृति के रूप में प्रकाशित कर रहा हूं। इस सद्भाव के साथ कि यह अनुपम लोगों की बातों मुलाक़ातों का दस्तावेज़ अपना मुकाम पा जाए। बातों और मुलाकातों का सिलसिला तो अंतहीन है पर क़िताब की शक्ल में प्रस्तुत करने ले लिए अनुशासन से गुज़रना होगा। ...तो इस किताब के लिए चयन में अनुशासन बरता है।... और प्रस्तुति के मूल रूप में यथोचित परिमार्जन किया गया है। बातें मुलाकातें के प्रसंग की कालावधि सन 1970 से 2023 तक की है। सातवें दशक की शुरुआत से शुरु होता है बातें मुलाकातें में वर्णित लोगों से बातों मुलाकातों का सिलसिला। तब 1973 में मेरे गृह क्षेत्र चित्रकूट में डॉ राम मनोहर लोहिया द्वारा संकल्पित रामायण मेला का शुभारंभ होता है। इसी समय बाँदा में प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिशील सम्मलेन का आयोजन करते हैं। इसी दौर से मिला ....फादर कामिल बुल्के , अनंत गोपाल शवडे ,नागार्जुन ,डॉ हरिवंश राय बच्चन , महादेवी वर्मा , अमृत राय , डॉ रणजीत , डॉ रघुवंश , वी डी एन शाही , विष्णुकांत शास्त्री , डॉ राम कुमार वर्मा , भवानी प्रसाद मिश्र , नेता राजनारायण आदि आदि विद्वानों के साथ दरस पारस ,सत्संग , संवाद , संपर्क और बातों मुलाक़ातों का अवसर। लम्बी श्रंखला है।
11 चरित नायकों का महाकाव्यीय कोलाज़
भविष्य के छंद
कैलेण्डर बदलने के दिन हैं ये , जाते हुए 1994 के पन्नों पन्नों पर , यादों के दस्तखत हैं। कुछ सुर्ख , कुछ धुंधलाये। समय जब से कागज के इस सालाना चार्ट पर बंटने लगा है... शायद तब से आदमी तमाम जिंदगी छंटने लगा है। उम्र के पड़ाव सालों-दशकों में बंट सांसारिक आकलन की कसौटी में घिस जाते हैं... शेष को हम-आप अपने-अपने ढंग से सार्थकता की तराजू पर तौलते हैं। साल के गुजरते और अगवानी के ये दिन यादों और मंसूबों के आसव भरे मदमाते दिन है।
तीखी बयार के झोंके मादकता से भरे हिलोर ले रहे है...सुबहें .. उल्लसित, दोपहरें बिसूरती। शामें हिलोरती और रातें... कुछ मस्त-मस्त सी हैं । ... कुछ चेहरे गड्डमड्ड ,कुछ सुर्ख।
जाते हुए साल की कुछ निबौलियां .... कुछ स्वाद-बेस्वाद कारस्तानियां, कुछ हुमक ठुमक, कुछ चौकासियां, कुछ वैचारिक जुगलबंदियां, कुछ आवारगी की तुकबंदियां। कुछ शरमाये-लजाए बिम्ब तो कुछ बेधडक अंधियारे-उजियारे ...किसी छंद-सा रच जाए पूरा का पूरा साल ऐसा तो नहीं होता.... होता जो है... वह काफी कुछ चीन्हा-अचीन्हा ही रह जाता है। खैर साल तो गया।... जाते- जाते मन-आंगन नहला गया ।
जाते-जाते साल ने 1994 दिसम्बर में जो नक्श-अक्स दिये , जो मिले चलते-चलाते , उनकी कुछ हलचल... जो यादों में महके उनकी कुछ बातें । कुल मिलाकर एक रोचक कोलाज़ ... जिसमें आप साफ पहचान पाएंगें...
ओडिसी की नृत्यांगना शेरोन लॉवेन
पेंटर जतिनदास
गीत- सर्जक वीरेन्द्र मिश्र
चौरानबे के त्रिनाले विजेता पेंटर नरेश कपूरिया
पत्रकार सुरेन्द्र प्रताप सिंह
कुचिपुड़ी की नृत्यांगना स्वप्ना सुंदरी
पत्रकार सुधेन्दु पटेल
चर्चित कार्टूनिस्ट काक
मॉडल एवं फैशन डिजायनर प्रियंका
जैन टेलिविजन के डॉ. जे. के. जैन
सौन्दर्य- सर्जक भारती तनेजा
ये सारे 11 चरित नायक एक ही दिन रविवार , 8 जनवरी 1995 को दैनिक राष्ट्रीय सहारा के , 'उमंग ' , परिशिष्ट में अवतरित होते हैं , महाकाव्यीय प्रस्तुति के साथ , 'भविष्य के छंद'के विविधवर्णी 11 जीवंत सोपान ।
इस कृति में कुछ रंग और भी हैं... कुछ खुश्बुओ के दौर और भी हैं , कुछ मुलाकातें और भी हैं ... इन मुलाकातों में आप के साथ होंगे , टेलीविजन की दुनिया की जानी पहचानी शख्सियत विनोद दुआ , एफ एम टाइम्स की आवाज पार्वती राठौड़ , आज के 24x7 की नायिका अनुराधा प्रसाद , शास्त्रीय नृत्यांगना दीपिका नागराज , महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुर्रहमान अंतुले ,पत्रकार उदयन शर्मा, फिल्म अभिनेता शशि कपूर , , शिल्पकार सतीश गुजराल ,भारत रत्न नाना जी देशमुख , डॉ राम कुमार वर्मा ,समाजवादी आजम खान , अभिनेता राजेश खन्ना ,अमर सिंह और योगगुरु रामदेव ।
ये सब अपने विविध रूप और वार्ता प्रसंग के साथ आप के सामने आते हैं , यहां मेरी भूमिका इनके देखे सुने को निर्विकार भाव से आप तक लाना है ।
मुझसे कहीं कुछ अतिरेक हुआ हो , कहीं शब्द फिसले हों , वाक्य अटपटे हों तो उन्हें अपनी समझ से सहज ग्रहण करेंगे ।
इन सारे लोगों पर लिखे और काफी पहले प्रकाशित वार्ता प्रसंगों को आज जब मैं संपादित और परमार्जित कर किताब लिए संयोजित कर रहा हू तो ऐसा लग रहा है की इन सारे चरित्रों से मेरा रोमांटिक लगाव रहा हो , यह सच लग रहा है , अगर आप अपने क्रिएशन के हर फलक से प्रेम पूर्ण अनुरक्त नहीं हैं तो यह सब रचना संभव कैसे हुआ ।...जी हां मैं इन चरित्रों से आशिकी की हद तक प्यार करता हूं ।
फिल्ममेकर राज कपूर से पूछा गया कि आप अपनी हर नायिका से कैसे प्यार करने लगते है , ये सब किस्से कितने सच हैं ?
राज कपूर साहब का कहना था , कि ये किस्से नहीं , सब सच्चाई है , हां मैं अपनी नायिकाओं के प्रेम में डूब जाता हूं । नहीं डूबूं तो परदे पर कैसे प्रेम की कश्ती तैरता नज़र आऊंगा , कैसे कह पाऊंगा , बोल राधा बोल , संगम होगा कि
नहीं ...