बात बे बात (1) :
सुरेन्द्र किशोर जी का आशीर्वाद / परशुराम शर्मा
कल मेरे फेसबुक वॉल पर हमारे अजीज पत्रकार दोस्त लव कुमार मिश्र का बधाई संदेश मिला। उसमें साथी सुरेन्द्र किशोर से मेरी पुस्तक पर आशीर्वाद मिलने की बात थी। मैं खुश हुआ।
मैं अपने बेटे आशीष के साथ अपने मित्र सुरेन्द्र किशोर को अपनी एक पुस्तक भेंट करने गया था। तब का फोटो बेटे ने अपने फेसबुक पर डाल दिया था। हमारे ढेरों शुभचिंतक उस पर अपनी भावना व्यक्त कर रहे थे। इसमें मेरे माननीय जाबिर हुसैन साहब के 'प्रणाम'और लव कुमार मिश्र के 'आशीर्वाद'सरीखे संदेश से मैं चौंका। चकित था कि क्या वाकई हम इस लायक हैं?
अपनी सक्रिय राजनीतिक यात्रा पूरी कर चुके साहित्यिक मिजाज वाले भलमानस जाबिर साहब की उदारता व सदाशयता का तो कोई जोड़ नहीं। हम सब पहले से परिचित हैं। उन्हें हम प्रणाम करते हैं। पर, पत्रकारिता में हमारे हमसफर साथी लव कुमार की प्रतिक्रिया से अभिभूत हूं कि वाकई सुरेंद्र जी कितने ऊंचे हो गये हैं। सचमुच किसी बड़े की शुभकामना ही तो उनका आशीर्वाद होता है। लव कुमार ने सही कहा है।
यह मानने में मुझे कोई संकोच नहीं कि साथी सुरेंद्र जी ने पत्रकारिता में एक बड़ी लाइन खींच दी है। वैसे, उम्र के लिहाज से भी वे हमसे दो-ढाई साल तो जरूर बड़े होंगे। भले, हमने आगे-पीछे ही साथ-साथ पत्रकारिता शुरू की हो। भगवान, उन्हें खुब लंबी उम्र दे, ताकि अनेक पुस्तकों के प्रकाशन कराने की उनकी योजना पूरी हो। कल भी इस पर उनसे देर तक बात हुई। पहले भी मैं इसके लिए उन्हें कोंचता रहा हूं।
यह सोच कर किसी को संतोष हो सकता है कि अबतक उनकी कोई पुस्तक छप कर नहीं आयी है। लेकिन, उन्होंने जितना लिखा है, जितने उनके आलेख छपे हैं, वे हमलोगों के बीच सबसे ज़्यादा हैं। वे बड़े लिखाड़ हैं। आज भी निरंतर नियमित लिख रहे हैं और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छप भी रहे हैं। उनकी लाइब्रेरी इस कार्य में बहुत सहायक सिद्ध हुई है। एक बड़े हॉल में बड़े जतन से उन्होंने अपना एक निजी लाइब्रेरी बनाया है। उसमें ढेरों पुस्तकें हैं। संदर्भ सामग्री के रुप में नये- पुराने ढेरों अखबारों व पत्रिकाओं तथा उनके कतरनों का भंडार है। सहेज कर उसकी फाइलें तैयार की गई है। कम से कम इस तुलना में मैं तो एकदम फिसड्डी साबित हुआ हूं। खैर, ना तो पहले उतना लिखा, ना अब लिख पाता हूं। अब शीध्र उनकी किताबें भी हमें पढ़ने को मिलेगी।
बहरहाल, बात हो रही थी मित्र लव कुमार के बधाई संदेश को लेकर, जो मुझे उससे मिला था। चूंकि सुरेन्द्र जी का नया आवास पटना शहर के बाहरी हिस्से में दूर ग्रामीण परिवेश वाले क्षेत्र में पड़ता है। इसलिए कभी-कभार ही वहां जाना संभव हो पाता है। अब पहले की तरह उनसे अक्सर मिलना संभव नहीं होता। यदि कल बेटे की सवारी नहीं मिलती,तो मिलने का मंसूबा ही बनाता रह जाता। वरना, शीत लहर का बहाना तो सामने खड़ा ही था। उस पर सोने में सुहागा आसमान पर छाये बादल एवं बारिश की मौसम विभाग की चेतावनी हमारे जैसे लोगों की हिम्मत तोड़ने के लिए एक सबल आधार था। इधर, मैं महीनों से उन्हें अपनी नई पुस्तक देने जाना चाहता था। चलो, तमाम अवरोधों के बीच यह मंशा कल पूरी हुई।
शिक्षका से सेवानिवृत्त हुई उनकी पत्नी ने हमेशा की तरह हमारे आवभगत में कोई कोताही नहीं की। नाश्ते में तले हुए ताजे मटर के दाने दिये। वह देख मन हरा हो गया। बड़े चाव से खाया। बचपन से ही इस मौसम का यह हमारा प्रिय नाश्ता रहा है। आजकल सुबह में इसे नियमित लेता हूं। इसके बाद हरा चना का मौसम आने वाला है। वह भी मेरा नियमित नाश्ता होगा। इस मौसम का मेरा मनचाहा हरा मटर मिल गया। यह मेरे लिए उनका स्नेह एवं आशीर्वाद ही तो था। हम आप दोनों के दीर्घायु की कामना करते हैं।
- परशुराम शर्मा
29.12.2021