नोएडा में 121 लोग एक जगह मिले । बातचीत हुई , खाना-पीना हुआ । गप्पें हुईं । सबके बारे में यादें ताज़ा हुईं जो आए जो नहीं आए और जो नहीं है सबकी चर्चा हुई । फिर तस्वीरें पोस्ट की गईं । सवाल ये उठता है कि इतनी बड़ी दुनिया में एक चैनल और चंद लोगों की इस मुलाक़ात से क्या होता है । क्या दुनिया बदल जाती है । किसी को क्या-फ़ायदा नुक़सान । सोशल मीडिया की मित्र सूची में बहुतों को ये बचपना, फिजूलखर्ची जैसी चीजें लगीं होगीं या लगती है । टोटल टीवी का मीडिया में क्या वजूद है इसको लेकर भी ऊँचे लोग आज भी तरह तरह की बातें करते हैं । मगर हमें इससे क्या फर्क पड़ा । आज भी हमारे दोस्त दुनिया की चाल-ढाल में ढलने में उसे बदलने की सोच में यक़ीन करते हैं यही मेरे लिए काफ़ी है । वे चाहते हैं एक बेहतर मीडिया जगत, इनसाइड स्टोरी, स्टोरी पर चर्चा, तहक़ीक़ात, हर वक्त मदद के लिए तैयार दोस्त हो तो और क्या चाहिए । एकाकीपन और टूटते परिवारों के बीच में भरा-भरा दोस्तों का साथ ही जीने की ताक़त देता है । आर्थिक तौर से कमजोर-मज़बूत होना अलग बात है मगर दिमाग़ी और सामाजिक तौर से मज़बूती ही आपको हमेशा अमीर बनाए रखती है । आज भी मुझे याद है जब साल 2005 में प्रताप का फ़ोन आया, इंटरव्यू हुआ मेहता जी, शैलेश जी और जोशी जी ने इंटरव्यू लिया, नौकरी मिली तो अख़बारों की दुनिया से लेकर गन माइक पकड़ लिया । राहुल पंडिता सर ने एक दिन मुझे और आलोक (अब पता नहीं कहां नौकरी कर रहा है ) को औरंगजेब रोड में 270 करोड़ रूपए से ख़रीद गई लक्ष्मी मित्तल के बंगले का फ़ुटेज लाने के लिए भेजा, निर्माणाधीन बंगले को चारों ओर से घेर दिया गया था । हम दोनों ने गुज़ारिश की लेकिन वीडियो बनाने की इजाज़त नहीं मिली । फिर मैं चढ़ गया औरंगजेब रोड के नीम के पेड़ पर और रिकॉर्डिंग शुरु कर दी (कैमरा की ट्रेनिंग चल रही थी ) मैं ऊपर और आलोक दूर समोसे खाने चला गया… खैर काम पूरा हुआ । आज इस बात को याद करता हुआ सोचता हूँ ये करने का जज्बा टोटल वालों में ही था । इसके बाद तो हमारे साथियों ने एक से क्रांति की चाहे अरविंद ओझा द्वारा डी फ़ाइव (निठारी कांड ) में दीवार फाँद कर घुसने की बात रही हो या संजीव मानकर, प्रीति पांडेय की क्राइम स्टोरी ,लिस्ट इतनी लंबी है कि किसी का नाम छूटना तय है इसलिए बात आज की । नोएडा के इस बार में लगभग बीस साल बाद बहुतों से हुई मुलाक़ात से हर किसी की उम्र लंबी होती हुई नजर आई । कई दोस्त अब कवि और साहित्यकार भी हो चुके हैं । गीता को देख कर आज भी हम अन्नपूर्णा को याद करते हैं । वो कविता और कहानियाँ लिखने लगी है । उसने अपनी नई किताबें बतौर उपहार दी । इससे बड़ी भेंट और क्या हो सकती है । रमन और लंबा हो गया है और राणा आज भी उसी आत्मीयता से मिलता जिस आत्मीयता से उसने पाँच हज़ार की सैलरी पाने के बाद सात हज़ार रूपए की ब्लैकबेरी का कोट ख़रीद कर देने की हिम्मत की थी । सैकड़ों कॉल के बाद भी फोन नहीं उठाने पर माफ़ कर देने वाला विकास बिल्कुल नहीं बदला । प्रियंका डबास की गरिमा आज भी वैसी ही है । विश्वजीत को देखकर लगा कि समय जैसे थम चुका है । राजन अग्रवाल तो टोटल टीवी के जमाने की कमी को दूर करता हुआ नजर आया जिसकी वजह से उसके साथ ज्यादा समय नहीं बीता पाया । तारा सैनी की मुस्कान और ख़ूबसूरती दोनों में इज़ाफ़ा नजर आया, अशोक नारंग इतनी दूर से ख़ास तौर से पुराने साथियों से मिलने आया तो देख आँखें नम हो गईं । अमित पावर में आज भी सर्किट आज भी ज़िंदा है । फ्रैंकलीन को बहुत सालों बाद खुद के बीच और आत्मीयता देख नज़दीकी और बढ़ गई । संदीप मिश्रा में सकारात्मक बदलाव देख खुशी हुई । निधि, मोनिका, अंजू,गरिमा आज भी याद कर ले रही है ये देख अच्छा लगा । सरिता और पूजा राठौड़ से सम्मान पाना अपने आप में उपलब्धि है । अमितेश युवराज को देखकर खुद को हल्का और जवान महसूस करना अच्छा लगा । यक़ीन है अमितेश भी मुलाक़ात के बाद रिश्तों को और मज़बूती देगा । ओम सिंह को देख एक ही शब्द याद आता है निर्माल्य । मन में कोई भी मलीनता नहीं । उसके जैसा भाई, बेटा, पति, दोस्त मिलना असंभव जैसा है । जिसे उसका साथ मिला वो ख़ुशक़िस्मत है। अनूप सिंह सर हरिद्वार से जिस हौसले के साथ शिरकत करने पहुँचे वो क़ाबिले तारीफ़ है। उज्जवल, पूजा श्रीवास्तव, सुप्रिया सत्यम, शालिनी गोस्वामी को ऊँचे पदों पर देख गर्व हुआ । मनीष आनंद की मौजूदगी ने उस दौर का याद दिलाया जब टोटल टीवी में नौकरी पाना मुश्किल होता था। सुपाकर की कमी महसूस हुई । कैमरापर्सन कुलदीप,गंगा,संजीत,पर्वत आशीष को देखने के बाद हर शूट याद आने लगा । कई कैमरामैन जैसे तारा जोशी, पंकज, मुकेश , ज़ुनैद आते और अच्छा रहता । अमित शुक्ला की गर्मजोशी देख गौरवान्वित महसूस किया , वो हमेशा की तरह ज़िंदादिल नजर आया । शमा क़ुरैशी भी आई थी सोचा नाम नहीं लिखूं ताकि नाराज़गी जारी रहे मगर माफ़ कर दिया । आख़िर बिरयानी का क़र्ज़दार हूँ । लिस्ट लंबी है । इससे पहले उम्र का असर दिखने लगे अखिल टैगोर, अंकिता चावला, ऋचा बेदी , नेहा शर्मा, रवि बिड़ला, सचिन अग्रवाल को याद नहीं करना गुनाह होगा । कुमार कुंदन होता तो मज़ा हज़ार गुना बढ़ जाता, उसे सबने मिस किया । ज्योति किरण के नहीं होने से पार्टी में डिसेंसी की कमी नजर आई । सुजीत जी , विद्या और पवन, राजकमल, विवेक वाजपेयी, ऋषि पांडेय, गोविंद गुर्जर को आना चाहिए था । बहुतों को नाम गैरइरादतन छूट गए हैं इसके लिए माफ़ी ।
अब सीनियर्स की बारी । मेहता सर से मेरा संबंध हमेशा से ऐसा रहा जैसे हम दोनों एक दूसरे को बहुत ज्यादा तवज्जों नहीं देते हों । लेकिन दोनों एक दूसरे के लिए हमेशा खड़े रहे । कई बार टर्मिनेट करने का मौक़ा मैंने दिया लेकिन उन्होंने कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया । इंडस्ट्री में उनके जैसा कई नहीं । उनसे सबसे बड़ी चीज जो सीखी वो है लोकतांत्रिक व्यवहार, जाति-धर्म और क्षेत्रीयतावाद से परे उनका बर्ताव आज भी वैसा ही । ईश्वर उन्हें सेहतमंद रखे । शैलेश सर से बहुत कुछ सीखा लेकिन उनके साथ ज्यादा काम करने का मौक़ा नहीं मिला उनसे मिलकर अच्छा लगा । राहुल पंडिता आते तो उन्हें वे स्टोरी दिखलाता जो उन्हें करेक्ट किए थे । वे सही मायने में रिपोर्टर के बॉस थे । उमेश जोशी सर को आना चाहिए था । कम से कम उनके द्वारा टेस्ट लिए गए दो लड़के विश्वजीत और विवेक से मुलाक़ात होती और फिर वो कहते मैंने तो चार लोगों को ही रखा था । दो और कुलदीप और सुजीत हैं । शशि जी ऐसे बॉस है जिनके साथ टोटल के बाद भी काम किया। हर बार उन्होंने मौक़ा दिया । मेरा और उनका झगड़ा बहुत पुराना है । उनके जैसा इंसान मिलना मुश्किल है । कई बार मेरी बदतमिजियों को बर्दाश्त करने के लिए उनका शुक्रिया .. और शुक्रिया हम सबको एक करने के लिए । कॉकस को अमर करने के लिए । श्याम साल्वी सर का तो कोई रिप्लेसमेंट अभी तक बना ही नहीं । पचास से ज्यादा चैनल को टेक्निकली लॉन्च करने वाले इस शख्स के हंबलनेस के क़ायल सब हैं। श्रवण सर और तपन सर का आत्मविश्वास देखने के बाद ऊर्जा मिली । प्रज्ञान जी आए तो माहौल बेहतर हो गया । कालरा जी, अरोडा जी को देख अच्छा लगा । छह मई की यह तारीख़ हमेशा याद रहेगी । शुक्रिया दोस्तों ।
Raman MamgainAjay RanaRajan Agrawal
Shashi RanjanGeeta Sharma
Franklin Nigam
Amit Supakar
Amit Shukla
Anami sharan Babal