लगभग साथ ही राँची एक्सप्रेस से जुड़े थे मैं प्रारंभिक दिनों में एक संवाददाता के रूप में 1980 में जुड़ा था इससे पूर्व संपादक के नाम पत्र लिखता था जिस से प्रभावित होकर तत्कालीन संपादक मेरे गुरुजी बलबीर दत्त जी ने मुझे संवाददाता बना दिया और तब विद्यार्थी जीवन में संवाददाता बनना किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं था . बाइलाइन कई चर्चित स्टोरी छपी जिसमें दो बड़े मामले थे पहला सीसीएल की चूरी कोलियरी के अंडरग्राउंड खदान में बिना किसी सुरक्षा या संपर्क के मजदूरों के जीवन के साथ खिलवाड़ और दूसरा ट्रैफिक पुलिस की ख़तरनाक तरीक़े से वसूली से ग़रीब ठेलनेवाले की मृत्यु पर पूरे विभाग की लापरवाही की बड़ी स्टोरी .
पहली स्टोरी की डीजीएमएस ने छः महीने तक जाँच की बड़ी कार्रवाई हुई और दूसरे को दिल्ली दूरदर्शन से भी दिखाया गया .कुल मिलाकर मैं तब के सबसे बड़े और प्रभावशाली अख़बार राँची एक्सप्रेस परिवार का अभिन्न अंग बन गया था .1989 में आकाशवाणी राँची में स्थायी नौकरी लगी तो भारी मन से रेडियो परिवार में शामिल हो गया .पूरन जी रेडियो पहुंचे बहुत नाराज थे कि मैं बड़े माध्यम जिसमें लाखों के लिए समर्पित था एक छोटे माध्यम में क्यों जा रहा था ? बहुत मान मनुवौल के बाद डॉ निवास चंद्र ठाकुर जी के समझाने पर माने ऐसे थे पूरन जी .विनम्र श्रद्धांजलि.
एक टिप्पणी मेरी भी
विनम्र श्रद्धांजलि . पूरन जी अब हम सबके बीच नही रहे यह सुनकर मन विहवल हो गया. रांची एक्सप्रेस के सच्चे और समर्पित कर्मठ योद्धा की तरह ऐसे पत्रकार थे जिनके लिए पहला और आखिरी लक्ष्य भी रांची एक्सप्रेस ही था . उनके अलावा कई ऐसे ही पत्रकार थे जिन्होंने रांची एक्सप्रेस से पत्रकार बने और इसी के होकर रह गए. इसके दुख दर्द को अपना माना और यही समर्पण भाव था कि यह अखबार रांची जैसे तब के छोटे शहर से निकलते हुए भी आज के मल्टी एडिशन युग में आज भी केवल एक संस्करण (कोलकाता संस्करण अभी शुरू हुआ है )के बूते ही यह अपनी चमक धमक धार न्यूज रफ्तार बेबाकीपन सफगोई और साहस के चलते बड़े बड़े अखबारों पर भी यह क्षेत्रीय अखबार भारी पड़ता और दिखता था . भले ही हम इसके लिए व्यापारी मालिक मारू बंधु या आदी संपादक बलवीर दत्त को श्रेय दे मगर उनकी टीम के पूरन जी उदय वर्मा क्रिकेटर धोनी के कोच चंचल भट्टाचार्य ( जो रांची एक्सप्रेस के खेल संपादक और रिपोर्टर भी थे ) उदयवर्मा जी के दो और भाई कार्टूनिस्ट मोनी ( अन्य लोग मुझे माफ करेंगे की कुछ सहयोगियों के नाम याद नही आ रहे है. ) जैसे पत्रकारों ने इस अखबार को बड़ा सुंदर सटीक निडर और धारदार बनाने में अपने आप को जलाया . पूरन जी से कुछ माह का ही रिश्ता रहा उनकी यादें मन में आज भी सजीव है . सचमुच पूरन जी जैसे लोग इस अखबार के नवरत्नों में थे को न्यूज के साथ साथ अखबार को आर्थिक रूप से सबल बनाने की भी चेष्टा करते थे . रांची शहर को छोड़े 6 साल हो गए मगर आज भी मन में इस अखबार के सभी लोग मेरी यादों में सजीव है खासकर पूरन जी जैसे पत्रकार से नोक झोंक गरमा गर्मी और अतीत की यादों पर चर्चा करके रांची या झारखंड की पत्रकारिता पर ढेरो जानकारियां किस्से कहानियों का श्रोता बनने का सुखद क्षण सहसा मेरी यादों में सजीव सी है . नम्रता के साथ इतने वरिष्ठ पत्रकार के संग गुजारे कुछ अनमोल पलो यादों का साक्षी होना मेरा सौभाग्य है ,. क्षेत्रीय पत्रकारिता के इस योद्धा पत्रकार को विनम्र श्रद्धांजलि अंतिम प्रणाम .