- दिव्या आर्य
- बीबीसी संवाददाता
पैदाइश के वक्त लड़की करार दिए गए “मनोज” ने, जब 17 साल की उम्र में अपने परिवार को बताया कि वे पुरुष जैसा महसूस करते हैं और एक औरत से प्यार करते हैं, तो उनकी जान पर बन आई.
मनोज ने मुझे बताया कि उनके माँ-बाप इस बात को स्वीकार करने को तैयार ही नहीं थे. उन्होंने हाथ-पैर बांधकर बुरे तरीके से मारा और घर के एक कोने में बंद कर दिया. पिता ने मनोज के हाथ की नस काट दी और जान से मारने की धमकी दी.
मनोज बोले, “इतनी मारपीट होगी, ये मेरी सोच से परे था. मैंने सोचा था कि जैसा भी हो, अपने बच्चों के लिए परिवार मान ही जाता है. पर मेरा परिवार अपनी इज़्ज़त के लिए मुझे मारने को तैयार था.”
गांवों में औरत की ज़िंदगी पर पहले ही कई बंदिशें होती हैं. औरत अगर कहे कि वो मर्द जैसा महसूस करती है और अब उसे ट्रांस-मैन माना जाए, तो इसकी तीखी प्रतिक्रिया हो सकती है.
बिहार के एक गांव के रहने वाले मनोज बताते हैं कि उनका स्कूल छुड़वाकर, दोगुनी उम्र के आदमी के साथ उनकी जबरन शादी कर दी गई.
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उन्होंने कहा, “मैं अपनी जान लेने को भी तैयार था, पर मेरी गर्लफ्रेंड ने मेरा साथ नहीं छोड़ा. आज मैं ज़िंदा हूं और हम साथ हैं तो इसलिए कि उसने कभी हार नहीं मानी.”
अब 22 साल के हो चुके मनोज और उनकी 21 साल की गर्लफ्रेंड, “रश्मि” एक बड़े शहर में छिपकर रह रहे हैं.
इस बीच उन्होंने याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट से समलैंगिकों की शादी का क़ानूनी अधिकार मांगा है और अब फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं.
शादी का अधिकार
साल 2018 में, एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था.
लेकिन समलैंगिकों में शादी को अब तक क़ानूनी मान्यता नहीं मिली है.
इस साल सुप्रीम कोर्ट ने इसकी मांग करने वाली 21 याचिकाओं की सुनवाई की और अब जल्द ही फैसला आने की संभावना है.
याचिकाओं में ज़्यादातर ने शादी की मांग एक मौलिक अधिकार के रूप में की है.
लेकिन चार क्वीयर ऐक्टिविस्ट्स और दो अन्य जोड़ों के साथ दायर की मनोज और रश्मि की याचिका में, शादी को परिवार के हाथों होने वाली शारीरिक और मानसिक हिंसा से निकलने का ज़रिया बताया गया है.
मनोज ने कहा, “हमारे रिश्ते को क़ानूनी मान्यता मिल गई तो कोई डर नहीं रहेगा.”
साल 2011 में हुई आखिरी जनगणना के मुताबिक भारत में करीब पांच लाख लोग खुद को ट्रांसजेंडर मानते हैं. ऐक्टिविस्ट्स के मुताबिक ये आंकड़ा असलियत से काफी कम है.
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए ट्रांसजेंडर लोगों को तीसरे जेंडर का क़ानूनी दर्जा दिया.
पांच साल बाद संसद ने ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा के लिए क़ानून पारित किया. इसके तहत शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य क्षेत्र में ट्रांसजेंडरों के साथ भेदभाव और उनके खिलाफ़ आर्थिक, शारीरिक, यौन और मानसिक हिंसा ग़ैर-क़ानूनी है.
लेकिन परिवार के भीतर होने वाली हिंसा से निपटना पेचीदा है.
परिवारों में होने वाली हिंसा
मुंबई में रहने वाली महिलावादी वकील वीणा गौड़ा के मुताबिक, ज़्यादातर क़ानून किसी भी व्यक्ति के लिए परिवार को सबसे सुरक्षित मानते हैं, चाहे वो खून के रिश्ते से बने परिवार हों या शादी और गोद लेने से.
वीणा के मुताबिक, “परिवारों में होने वाली हिंसा से हम सब वाकिफ़ हैं, चाहे वो पत्नी, बच्चों या ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ़ हो. पर जान-बूझकर इसे अनदेखा कर दिया जाता है, क्योंकि इसे देखा और कबूला, तो परिवार के ढांचे पर सवाल उठाने को मजबूर हो जाएंगे.”
वीणा गौड़ा उस पैनल का हिस्सा हैं जिसने एक सार्वजनिक सुनवाई में 31 क्वीयर और ट्रांसजेंडर लोगों के विस्तृत बयान दर्ज किए, इन लोगों ने बताया कि उन्हें परिवार के भीतर किस तरह हिंसा का सामना करना पड़ा.
गौड़ा के साथ इस पैनल में एक पूर्व जज, वकील, शिक्षाविद्, ऐक्टिविस्ट्स और राज्य सरकार के साथ काम कर रही एक समाज सेविका थी.
अप्रैल में इस सुनवाई पर आधारित रिपोर्ट जारी की गई जिसमें सुझाव दिया गया कि क्वीयर लोगों को अपना परिवार चुनने का हक़ दिया जाना चाहिए.
अपने सुझाव में वीणा ने लिखा, “सुनवाई में जिस तरह की हिंसा के बयान लोगों ने रखे, इसके मद्देनज़र अगर इन्हें अपना परिवार चुनने की आज़ादी नहीं मिली तो ये इनसे इनके जीने का अधिकार, और इज़्ज़त से जीवन जीने का अधिकार छीनने जैसा होगा.”
वीणा के मुताबिक, “शादी का अधिकार इस नए परिवार को परिभाषित करने और बनाने जैसा होगा.”
जबरन शादी के कुछ महीने बाद मनोज ने दोबारा रश्मि के साथ रहने की कोशिश की, पर कहते हैं कि उनके पति ने उनका पता लगा लिया और दोनों के साथ जबरन यौन संबंध बनाने की धमकी दी.
मनोज और रश्मि भाग गए. नज़दीक के रेलवे स्टेशन पर खड़ी पहली ट्रेन पर चढ़ गए लेकिन परिवार ने उनका पता लगा लिया और वापस लाकर बहुत पीटा.
रश्मि याद करती हैं, “मनोज पर दबाव बनाया गया कि वो मुझे उसकी मौत के लिए ज़िम्मेदार बताने वाले एक ‘सुसाइड नोट’ पर हस्ताक्षर कर दें.”
मनोज के मना करने पर उन्हें फिर घर के एक कोने में बंद कर दिया गया और मोबाइल फोन भी छीन लिया गया.
आखिरकार मनोज अपने मां-बाप के घर से तब निकल पाए जब रश्मि ने एक क्वीयर महिलावादी संगठन से संपर्क किया और स्थानीय पुलिस के महिला सेल की मदद ली.
कुछ समय के लिए वो ट्रांसजेंडर लोगों के लिए बने सरकारी शेल्टर में रहे, पर जल्द ही वहां से निकलना पड़ा क्योंकि रश्मि ट्रांसजेंडर नहीं हैं.
भागना और दोबारा जीवन बसाना
मनोज तलाक लेने में भी कामयाब रहे. लेकिन परिवारों की हिंसा से बचकर निकलने और नई ज़िंदगी बनाने में मदद करने वाले कम हैं.
कोयल घोष, पूर्वी भारत के पहले लेस्बियन-बाइसेक्सुअल-ट्रांसमैस्क्युलिन पीपल राइट्स कलेक्टिव - ‘सैफो फॉर इक्वॉलिटी’ – की मैनेजिंग ट्रस्टी हैं.
कोयल घोष पिछले कई सालों से सक्रिय हैं
सैफो बीस साल से ज़्यादा समय से क्वीयर समुदाय के साथ काम कर रहा है.
कोयल को अब भी साल 2020 का वो दिन याद है जब सैफो की हेल्पलाइन पर उन्हें एक क्वीयर जोड़े का कॉल आया. ये जोड़ा भागकर कोलकाता आया था पर रहने का कोई ठिकाना ना होने की वजह से सात रातें फुटपाथ पर बिता चुका था.
कोयल ने कहा, “हमने एक जगह किराए पर ली और उन्हें अस्थायी तौर पर तीन महीने के लिए वहां ले गए. सर पर छत होगी तभी तो वो नौकरी ढूंढने और नए शहर में नई ज़िंदगी बनाने के लिए कुछ कर पाएंगे.”
समाज में हेय नज़र से देखे जाने, परिवारों के हाथों हिंसा झेलने, पढ़ाई पूरी न कर पाने और जबरन शादी के अलावा कई ट्रांसजेंडर लोगों को स्थायी रोज़गार नहीं मिल पाता है.
भारत की पिछली जनगणना के मुताबिक इनकी साक्षरता दर (49.76%) देश की औसत (74.04%) से काफ़ी कम है.
साल 2017 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिल्ली और उत्तर प्रदेश में 900 ट्रांसजेंडर लोगों के साथ किए सर्वे ने पाया कि 96% को नौकरी नहीं दी गई या भीख मांगने और सेक्स वर्क करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
सैफो ने तय किया कि वो घर से भागने को मजबूर जोड़ों के लिए एक शेल्टर बनाएंगे. पिछले दो साल में उस शेल्टर में 35 जोड़ों को रहने की जगह दी गई है.
काम मुश्किल है. कोयल को रोज़ाना तीन से पांच फोन कॉल आते हैं और वे अलग-अलग चुनौतियों के समाधान के लिए लगातार वकीलों से संपर्क बनाते हैं.
कोयल बोले, “मुझे जान से मारने की धमकियां मिली हैं, गांवों में गुस्साई भीड़ पीछे पड़ी है, पुलिस थाने में भी लोग असहज हो जाते हैं क्योंकि हम अपनी क्वीयर आइडेंटिटी छिपाते नहीं हैं और ये उनसे बर्दाश्त नहीं होता.”
जब ट्रांस-मैन “आसिफ” और उनकी गर्लफ्रेंड “समीना” ने कोयल को संपर्क किया तब वो पश्चिम बंगाल के एक गांव के स्थानीय थाने में थे.
समीना का आरोप है कि कॉन्स्टेबल उन्हें हिजड़ा बुलाते हुए कह रहे थे कि उन दोनों को दुनिया को अपने रिश्ते के बारे में बताने की जगह मर जाना चाहिए.
उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी.
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प्यार में बदली उनकी बचपन की दोस्ती को बचाने के लिए वो दो बार अपने परिवारों को छोड़कर भागने की नाकाम कोशिश कर चुके थे.
ये जान बचाने का आखिरी मौका था और उन्हें मदद चाहिए थी.
समीना ने कहा, “जब कोयल आए और पुलिस अफसर इंचार्ज से बात किए, तब कॉन्स्टेबल का बर्ताव ठीक हुआ और अफसर ने उन्हें डांटा कि पुलिसवाले होकर वो अदालत के फैसलों और कानून से बेख़बर रहते हुए ऐसी बातें कैसे कह सकते हैं.”
आसिफ और समीना अब एक बड़े शहर में सुरक्षित रह रहे हैं. ये मनोज और रश्मि के साथ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता भी हैं.
आसिफ ने कहा, “हम अब खुश हैं. लेकिन हमें वो कागज़ का टुकड़ा चाहिए, वो मैरिज सर्टिफिकेट जो हमारे परिवारों के मन में पुलिस और क़ानून के उल्लंघन का डर पैदा करे.”
इन ट्रांस-मैन के लिए ये बहुत अहम और मुश्किल वक्त है.
आसिफ ने कहा, “अगर सुप्रीम कोर्ट हमारी मदद नहीं करेगा, हमें मरना पड़ सकता है. हम जैसे हैं, वैसे हमें क़बूल नहीं किया जाएगा, हमेशा भागते रहेंगे और अलग किए जाने का डर बना रहेगा.”
(सुरक्षा कारणों से पहचान छिपाने के लिए लोगों के नाम बदल दिए गए हैं)
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