मेरी सहेली मेरी ननद-
(स्व.(डॉ.) सत्या जांगिड)
प्रो. (डॉ.) सीता कौशिक
*10 अगस्त जिसका जन्मदिवस है।*
मैं नेपाल में जन्मी मगर मुझे सहेली मिली भारत में। मेरे पति प्रो. बृजमोहन कौशिक अपनी बहन को बहुत प्यार करते थे। जब मेरे बेटे की शादी हुई तब उन्होंने कहा- पहले मेरे बहनोई प्रो० (डॉ.) रामजीलाल जांगिड का स्वागत किया जाएगा,
बाद में मैं समधी से मिलनी करूंगा।
जब हमें 26 अगस्त 2016 को
डॉ. सत्या का शव पंजाबी बाग दिल्ली के श्मशान में पहुंचने की सूचना मिली, तब पैर में चोट लगी होने के बावजूद मेरे पति लंगड़ाते हुए वाकर पर आए और कहा- मैं अपनी छोटी बहन को शान से विदा करूंगा।
दौड़कर वह दुशाला लाए और अपनी छोटी बहन
को दुशाला ओढा कर विदा किया।
वर्षों तक चला हमारा आत्मीय बंधन कालिन्दी कालेज, पूर्वी पटेलनगर
नई दिल्ली में शुरू हुआ। मैं राजनीतिशास्त्र पढ़ाती थी और वह अर्थशास्त्र | मेरे पति रक्षा संस्थान से जुड़े थे।
डा. सत्या मेरे पहले इस कॉलेज की कार्यवाहक प्राचार्या बनी और मैं बाद में। उसकी अर्थशास्त्र पर अच्छी पकड़ थी। उसने 1968 से 2000 यानी 32 साल कालिन्दी में पढ़ाया।इस अवधि में उसने न एक दिन की छुट्टी लीऔर न कभी कक्षा में देर से पहुंची।
कॉलेज की उसकी सभी साथी प्राध्यापिकाएं और कर्मचारी आज भी उसे आदर और श्रद्धा से याद करते हैं, क्योंकि कॉलेज में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा, जिसकी डा० सत्या ने मदद नहीं की होगी।
वह उदार, परोपकारी और विनम्र थी। मेरी समझ में वह "बेस्ट ड्रेसड टीचर"थी। वह न सिंदूर लगाती थी, न मांग भरती थी, न चूड़ी पहनती थी और न मंगलसूत्र लटकाती थी।वह इन सबको पुरूषों द्वारा स्त्रियों पर धोपे गए प्रतीक मानती थीं।
वह नारी सशक्तिकरणकी प्रबल हिमायती थी। उसे सादगी और सफाई दोनों पसंद थी। वह स्वाभिमानी थी। केवल देना जानती थी। उसने अपने भाइयों से भी कभी कुछ नहीं लिया। वह अलग थी।
- प्रो. (डॉ.) सीता कौशिक
सुशीला महाजन
ॐ अमृतेश्वर्यैमन n
सतसैया के दोहरे,ज्यों नाविक के तीर।
देखन में छोटे लगें , घाव करे गंभीर।।
यह दोहा सत्या जी के जीवन पर खरा उतरता है।"नन्ही सी जान में सारे जहान की उलझने सुलझाने का हौसला"मैंने उन में ही देखा था। भेदभाव से बहुत ऊपर थीं वो। आज के स्वार्थ-सने समय में, उन का अहैतुकी प्रेम, सब से अलग एक मशाल की तरह रोशन करता था- अँधेरों को। उन के सत्य वचन,अक्सर अहम की परतों को चीर जब भीतर उतरते, तो तकलीफ़ भले ही होती थी, पर गहरे छिपा अपना सत्य सामने आ खड़ा होता था। अन्याय को न सहने का साहस भी, उन के चरित्र का अभिन्न अँग था। "अहर्निशम सेवामहे” और "देने को सदा तत्पर"उन के दो हाथ थे। ऐसे व्यक्तित्व, देह से भले ही दुनिया से चले जायें, परन्तु अपनी यादें यूँ छोड़ जाते हैं, कि सदा दिल के आस-पास रहते हैं। उन्हें बारम्बार नमन....उन के जन्मदिवस पर उन्हें एक छोटी सी श्रद्धाँजलि......🙏🙏💐🌹
❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
याद तुम्हारी
याद तुमहारी...
अँधेरे मन में जलते दिये सी,
टिमटिमाती.....
देती है राहत यही,
जलते रहो, जगमगाते रहो जग में,
औरों के लिये..
राहें स्वयं रोशन हो जायेंगीं तुम्हारी।
याद तुम्हारी....
घने जंगल में महकते फूल सी,
खुशबु लुटाती...
कहती है चुपचाप यही,
खिले रहो, मुस्कुराते रहो जग में,
मुश्किल पलों में भी,
आसान हो जायेंगी, मुश्किलें तुम्हारी।
याद तुम्हारी....
जलते हुये मरुथल में हरित वन सी,
आमंत्रित करती...
देती है दिलासा यही,
चलते रहो,धीरज धर मन में,
साहस भरे कदमों से,
बाहें पसारे,इंतज़ार में है,मंज़िल तुम्हारी।
सुशीला महाजन
1973 से लेकर आज तक हम कालिंदी कॉलेज के लगभग सभी टीचर और प्रशासनिक विभागों में विभिन्न पदों पर कार्यरत कर्मी प्रिय सत्या जांगिड़ को अत्यंत आदर भाव से तथा एक आदर्श के रूप में देखते रहे हैंl उनके जन्मदिवस 10 अगस्त को डॉ रामजीलाल जांगिड़ उनकी स्मृति में किसी न किसी प्रकार से कुछ ना कुछ आयोजित करते हैंl सत्या की nekiyon को जिंदा रखने का य़ह प्रयास उत्तम हैl
इस बार जब डॉ जांगिड़ ने मुझे भी कुछ लिखने को कहा तो मेँ सोचती रही क्या कुछ नया लिखूं क्योंकि सत्या के व्यक्तित्व के प्रायः सभी पहलूओं पर हम कह चुके हैंl मैने सोचा उनकी कमजोरियों, नकारात्मक पक्ष पर कुछ लिखूँ जो सही भी हो और ऑथेंटिक भी हो, यही किसी भी विषय वस्तु के विश्लेषण का तरीका माना जाता हैl बहुत कोशिश करने पर मेँ केवल एक दो बातें ही निकाल पाई, वो ये कि वो सच के पक्ष मे किसी को भी खरी खरी कह देने से नहीं चूकती थीं, फिर भले ही वह कोई भी हो, फिर उसी की मदद के लिए खड़ी हो जाएंगी जैसे कुछ हुआ ही ना होl अपनी ज़िद पर माँ को अपने पास ले आई, उनकी सेवा की, ख़ुद इच्छा से अर्ली रिटायरमेंट ले लिया l इस विषय पर कइयों के मत अलग भी रहे हों शायद, पर उनकी ज़िद के सामने सबको घुटने टेकने परते थे l
यदि किसी विषय पर बहुत दिलेर थीं तो कई अन्य बातों में बहुत डरपोक सी लगती थीं ख़ासकर यदि किसी से स्वयं के लिए कुछ करवाना हो l बस यही कुछ सोच पा रही हूं उस अति उत्तम व्यक्तित्व के बारे में l ईश्वर उनका हमेशा ख्याल रखें, वैसे वो बहुत ईश्वरवादी नहीं थीं l सत्या को पुनः प्रणाम l
मैम के बारे में जितना जाना, जितना सुना बस यही लगा काश मैं उनसे मिल पाती, काश उनका स्नेह मुझे भी मिल पाता है, उनसे मैं भी कुछ सीख पाती। कितना विराट व्यक्तित्व था उनका पर उसके उलट एकदम सहज, सरल, पानी सी पारदर्शी, ख़ुद भूखी रह जाएं पर उनके सामने कोई भूखा नहीं रह सकता था, साड़ियों का बहुत शौक था। महिला सशक्तिकरण की मिसाल। अदभुत व्यक्तित्व की धनी थीं हमारी सत्या मैम। मैम को शत शत नमन और जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं।
भावना