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पत्रकारिता के लिए अघोषित आपातकाल

 Jaishankar Gupta-


5-6 अगस्त को गांधी शांति प्रतिष्ठान में सिटिजन फार डेमोक्रेसी का सम्मेलन था। हमने इसमें आज शिरकत करने का तय किया था। आज हम दिन में एक बजे पहुंचे तो प्रवेश के दोनों दरवाजे बंद थे। पुलिस का पहरा था। पूछने पर पता चला कि अंदर जाने की ऊपर से मनाही है।

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हमने प्रेस से, प्रेस काउंसिल आफ इंडिया का सदस्य होने का हवाला भी दिया लेकिन सब बेअसर। कारण पूछने पर पुलिस के जवान ने किसी से फोन पर बात की और फिर हाथ जोड़ लिया और एसएचओ से बात करने को कहा। इससे पहले भी कई लोगों को वापस लौटा दिया गया था।

हमने कहा, गिरफ्तार कर लो, हम तो अंदर बैठक में जाएंगे। इस पर वे चुप्पी साध गए। इस बीच हमारे समाजवादी अग्रज प्रो. आनंद कुमार अंदर से गेट पर आए, तब तक एसएचओ भी अपनी गाड़ी में आ गए थे। बातचीत के क्रम में उनने कहा, इन्हें जाने दो। हम अंदर गए।

लेकिन अंदर जाने पर पता चला कि सम्मेलन तो एक बजे ही समाप्त हो चुका था। प्रतिनिधि दोपहर का भोजन कर रहे थे। कई नये-पुराने मित्रों से मुलाकात-बात हुई। सबको आश्चर्य हो रहा था कि जेपी आंदोलन से निकलने का दंभ भरने वाले हमारे मौजूदा हुक्मरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा सत्तर के शुरुआती दशक में गठित इस संगठन (सीएफडी) से भी डरने लगे हैं। यह तो एक बानगी है जिसे आनेवाले दिनों में नागरिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के दमन का संकेत भी समझा जा सकता है।

Shashi Shekhar Singh

कल पूरे दिन सम्मेलन चला किंतु दिल्ली पुलिस की ओर से कोई नहीं आया किंतु आज पुलिस ने पहले एक गेट बंद कर दिया और दूसरे गेट पर पुलिस जिप्सी तैनात थी और कुछ पुलिस वाले मौजूद थे। जब मैं जीपीएफ में उस गेट से अंदर गया तो किसी पुलिस ने मुझे नही रोका लेकिन कुछ ही देर बाद एक पुलिस अधिकारी के साथ कुछ पुलिस वाले अंदर हॉल में आ गए और पूछने लगे कि आयोजक कौन हैं उनसे बात करनी है और प्रो आनंद कुमार ने बाहर जाकर उनसे बात की लेकिन कुछ ही देर में साफ हो गया कि पुलिस सम्मेलन में आने वाले को रोकने लगी और गेट बंद कर दिया । कई साथी सम्मेलन में अंदर नही आ पाए और बाहर रहे। दिल्ली पुलिस की यह शर्मनाक हरकत थी क्योंकि सम्मेलन के पहले ही थाने को सूचना दे दी गई थी फिर पुलिस ने एक प्रकार से सम्मेलन को डिस्टर्ब करने की कोशिश की। सरकार द्वारा ऐसी कोशिश लगातार हो रही है कि कही भी नागरिक समाज संगठन की मीटिंग भी न हो । सच तो यह है कि यह एक अधिनायकवादी सरकार की डराने की कोशिश है जो घोर निंदनीय है ।

Kailash Rawat

आदरणीय श्री जय शंकर गुप्ता जी, आप गांधी शांति प्रतिष्ठान में गए और आपके जाने की पूर्वी कार्यक्रम खत्म हो गया. विरोध के लिए विरोध किया गया नाम मत का विरोध किया गया जब विरोध करना है तो कार्यक्रम निरंतर जारी रहना चाहिए और भारी तादाद में गांधीवादियों को जोड़ना चाहिए था. यह बिरोध तो प्रतीक मत है. ले देकर खानापूर्ति. गुप्ता जी आपके अलावा तो यहां पर कोई गांधीवादी सर्वोदय कार्यकर्ता दिखाई नहीं दे रहा.

Jaishankar Gupta

कार्यक्रम बनारस में नहीं बल्कि दिल्ली, गांधी शांति प्रतिष्ठान में था। मुझे गलतफहमी थी कि कार्यक्रम कल की तरह आज भी पांच बजे तक है, इसलिए ही एक बजे गया था। वहां गांधीवादियों के विरोध प्रदर्शन की बात नहीं, सीएफडी (सिटिजन फार डेमोक्रेसी) का सम्मेलन था। पुलिस का वहां प्रवेश द्वार बंद कर लोगों को अंदर जाने से रोकना गलत और निंदनीय ही नहीं आश्चर्यजनक भी था।

Shashi Shekhar Singh

आज सम्मेलन का कार्यक्रम 1 बजे तक ही था और सम्मेलन निश्चित कार्यक्रम के अनुसार ही हुआ ।पुलिस ने अवश्य जीपीएफ के कैंपस के बाहरी गेट पर कुछ साथियों को रोक रखा था जो निंदनीय था । मजे की बात यह है कि कई पुलिस वाले हमारे लंच में भी शामिल हो गए।

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