विपक्ष के नेता न हो गए कोई गाजर, मूली हो गए। जब चाहे तब संसद से बाहर कर दो। सस्पेंड कर दो। एक दो से काम नहीं चले तो समूचे विपक्ष को सस्पेंड कर दो। विपक्ष के नेता को भी सस्पेंड कर दो। गजब लोकतंत्र है संसद में। सत्ता पक्ष का कोई पपलू कुछ भी बके आजादी है। कुछ भी करे छूट है। पर विपक्ष करे तो उस पर रूल लागू होंगे। संसदीय नियमो के हवाले से उन पर कार्रवाई की तलवार लटका दी जायेगी।
लोकसभा से कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी को जिन कारणों से सस्पेंड किया गया वो हैरान कर गया। विपक्ष के सबसे बड़े दल के सबसे बड़े नेता को ऐसे सस्पेंड करना कतई मुनासिब नहीं लगा। संसद एक विधान, एक संविधान से चलता है। राज्यसभा में विपक्ष अगर सरकार पर कोई आरोप लगाता है या कोई सांसद कोई ऐसी बात किसी भी विषय पर बोलता है जो विवाद पैदा करे, उसे authenticate करना होता है। आरोप से संबंधित पेपर्स सदन पटल पर रखने होते हैं। अच्छा नियम है। इससे नेता भाषण के दरम्यान हवाबाजी करने से परहेज करेगा। मगर वो नियम लगता नहीं की लोकसभा में लागू है, कोई किसी पर भी, कुछ भी आरोप लगा रहा है। कुछ भी बोले जा रहा है। सत्ता पक्ष ने इस बार संसद में जितनी हलकी बातें, जितने हलके अंदाज में की उसे इतिहास दर्ज करेगा।
इतिहास इस बात को भी दर्ज करेगा कि महंगाई पर पिछले सत्र में विपक्ष पर बोलना चाहा, नहीं बोलने दिया गया। हंगामा हुआ तो थोक में विपक्षी नेताओं को सस्पेंड किया गया। अब मणिपुर पर चर्चा की मांग करते करते विपक्ष थक गया मगर अंतिम दिन तक राज्यसभा में न पीएम गए न चर्चा हुई। इससे ज्यादा शर्म का विषय ट्रेजरी बेंच के लिए कुछ नहीं हो सकता कि चर्चा के नाम पर सिवाए सियासत के उन्होंने कुछ नहीं किया। ऊपर से तुर्रा ये कि राघव चड्ढा और संजय सिंह को राज्यसभा से सस्पेंड कर दिया गया। विपक्ष वेल में न आये, नारेबाजी न करें, अपनी सीट से बिना बुलाये खड़े होकर न बोलें, सब्जी की माला पहन कर नहीं आये। ये सब नियम पहले भी थे, जिनकी सत्ता है उन्होंने कब, कितना इसका पालन किया? वो तो तब ऐसे विरोधों को लोकतंत्र का गहना बताते थे! अब क्या हुआ?
विपक्ष ने राज्यसभा में नियम 267 या 176 के तहत चर्चा की मांग की। पहले उसको नहीं माना गया। फिर पीएम सदन में आयेंगे इसको भी नहीं माना गया। क्यों भाई? राज्यसभा के रूल बुक में जो नियम हैं उस पर चर्चा क्यों नहीं कराते? नहीं कराना तो 267 नियम को खत्म कर दो।
सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा, अभी तक बहुत कम ऐसे विषय आये जिन पर 267 के तहत चर्चा हुई हो! मतलब ये परंपरा की बात कर रहे थे। वहीं जब आम आदमी पार्टी के सुशील गुप्ता महंगाई पर प्रतीकात्मक विरोध दर्ज कराने अब तक की परंपरा के अनुसार टमाटर की माला पहन कर आ गए तो मारे गुस्से के सभापति लाल हो गए। राज्यसभा की कार्रवाई थोड़े समय के लिए स्थगित तक कर दी जैसे इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ हो! हुआ है कई बार हुआ है। सभी दलों के नेताओं ने विभिन्न विषयों पर विरोध दर्ज कराने कई तरह के प्रतीकों का सहारा लिया है। सुशील गुप्ता ने ऐसा कुछ नहीं किया था जिसके लिए सभापति को Over React करना पड़े। पर उन्होंने किया। सांसद सुशील गुप्ता को संसदीय रूल बुक की नियम पढाये। जब कि कुछ ही मिनट पहले सभापति परंपरा का हवाला देते हुए 267 नियम के तहत विपक्ष की चर्चा की मांग ठुकरा रहे थे। मतलब चित भी मेरी पट भी मेरी क्योंकि मैं सभापति हूँ? ना... ना... ये अनुचित है!
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने मॉनसून सत्र के आखिरी दिन विपक्ष को संसदीय नियमो का पाठ पढ़ाया, मीडिया को कैसे काम करना चाहिए उसकी ताकीद भी दी, पर उन्होंने एक बार भी सत्ता पक्ष को ये याद नहीं कराया कि सदन चलाने की जिम्मेदारी में सत्ता पक्ष पूरी तरह फेल रहा। राज्यसभा में विपक्ष को साधने, मणिपुर पर बीच का रास्ता निकालने में सत्ता पक्ष नाकामयाब रहा।
विपक्ष की अनुपस्थिति में विधेयक पास होगा तो मीडिया यही लिखेगा, दिखायेगा। मगर सभापति का कहना है, मीडिया को बताना चाहिए कि विपक्ष अपनी संवैधानिक, नैतिक और जनता के प्रति जवाबदेही से भाग रहा है, देश को ये बताओ। ये मत छापो कि विपक्ष की गैरहाजिरी में विधेयक पारित हुए! गजब पाठ है सभापति जी।
सभापति जी विपक्ष को तो आप प्रतीकात्मक विरोध करने पर भी सस्पेंड कर रहे हैं, उनकी जायज मांगों को भी रूल बुक के पीछे छिप कर नजायज ठहराया जा रहा है, करें तो वो क्या करें? यही खीज तो तृणमूल के डेरेक ओ ब्रायन ने दिखाई दी थी, जिन्हें आपने सस्पेंड कर, बाद में लीपापोती की थी ! ये केवल डेरेक की नहीं, राज्यसभा में समूचे विपक्ष की खिसियाहट है, आप समूचे विपक्ष को सस्पेंड कर दें। सारे विधायी कार्य निपटा लें। विधेयक पारित करा लें। ऐसा ही तो हो रहा है। पहले ऐसा माहौल तैयार किया जाता है कि विपक्ष विरोध करे, walkout करे। हल्ला हंगामा और विपक्ष की गैरहाजिरी में विधेयक पारित करवाकर उल्टे विपक्ष को ही जिम्मेदारी का ज्ञान दिया जाए!
आपने मीडिया को काम सिखाने की कोशिश की सभापति जी। मैंने सीखी। शुरुआत आप से कर रहा हूँ। सभापति जी राज्यसभा कार्यवाही के minutes निकालिए, देखिये, हम सब को share कीजिये। कुल कितने घंटे कार्यवाही चली, कितने घंटे विपक्ष के नेता को बोलने का मौका मिला? कितने घंटे आप बोले? आपका intelect छलकता है। चाहे जब आप शुरू हो जाते हैं। शुरू हो जाते हैं तो शुरू ही हो जाते हैं। लंबे लंबे भाषण देने लगते हैं। सांसदो को विधार्थी खुद को हेडमास्टर समझने लगते हैं। यही मुश्किल है।
आपका काम MPs को ज्यादा से ज्यादा मौका देने का है। विपक्ष को संरक्षण देना भी आपकी जिम्मेदारी है। आसंदी से आप सदन नियंत्रित करें। खुद कम बोलें। सामने ज्यादा मौcका दें। विपक्ष को आसंदी से ताकत दें। तभी लोकतंत्र धड़केगा। सत्ता की जिम्मेदारी तय की जा सकेगी।