प्रज्ञानानंद: चेस वर्ल्ड कप की आख़िरी बाज़ी हारे लेकिन दिल जीत लिया...
- प्रदीप कुमार
- बीबीसी संवाददाता
चेस वर्ल्ड कप 2023 के फ़ाइनल मुकाबले में प्रज्ञानानंद को दुनिया के नंबर-1 खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन ने हरा दिया है. इसी के साथ नार्वे के कार्लसन ने 2023 फाइड वर्ल्ड कप का ख़िताब अपने नाम कर लिया है.
बीते तीन दिनों से शतरंज की दुनिया रमेशबाबू प्रज्ञानानंद की ओर टकटकी लगाए देख रही थी.
पांच बार के वर्ल्ड चैंपियन मैग्नस कार्लसन को भी पता चल चुका था कि उनकी बादशाहत को कड़ी टक्कर देने वाला बहुत पीछे नहीं है.
यही वजह है कि शतरंज चैंपियनशिप के टाईब्रेकर फ़ाइनल से पहले उन्होंने कहा, "प्रज्ञानानंद ने कई दमदार खिलाड़ियों के सामने टाईब्रेकर मुक़ाबले खेले हैं. मुझे मालूम है कि वह काफ़ी मज़बूत है. अगर मुझमें कुछ ऊर्जा बची रही और मेरे लिए अच्छा दिन रहा तो मैं मेरे जीतने के चांसेज होंगे."
ये कोई पहला मौका नहीं है जब कार्लसन दुनिया के सामने प्रज्ञानानंद की तारीफ़ कर रहे थे.
हाल ही में आयोजित टेक महिंद्रा ग्लोबल चेस लीग के दौरान उन्होंने कहा, "हमलोगों के पास एक खिलाड़ी है जो हर गेम जीतना चाहता है. इस नज़रिए से मदद मिलती है और प्रज्ञानानंद एक एबसल्यूट स्टार हैं."
'शतरंज ओलंपियाड की जीत 1983 क्रिकेट विश्व कप जीत के समान'
दूसरे राउंड का मुक़ाबला
वर्ल्ड चेस फ़ाइनल में के दूसरे राउंड में प्रज्ञानानंद और कार्लसन 30 राउंड की बाजियों के बाद ड्रॉ पर सहमत हुए थे जबकि पहले राउंड में दोनों ने एक दूसरे को 35 राउंड तक तौलने की कोशिश की.
पहले राउंड में प्रज्ञानानंद दबाव में ज़रूर दिखे लेकिन दूसरे राउंड में मुक़ाबला बराबरी का दिखा.
शतरंज की दुनिया के विश्लेषकों ने उम्मीद ज़ाहिर की थी कि कार्लसन के सामने प्रज्ञानानंद की जीत की संभावना केवल टाईब्रेकर मुक़ाबले में ही हो सकती है, क्योंकि प्रज्ञानानंद ने कार्लसन को केवल रैपिड टाईब्रेकर में ही हराया है.
अब ये टूर्नामेंट ख़त्म हो चुका है और प्रज्ञानानंद अपने दिल और दिमाग़ पर क़ाबू रखते हुए इतिहास में दर्ज हो गए भले ही ये मुक़ाबला वो हार गए हैं.
शतरंज की दुनिया में अब तक ऐसा नहीं हुआ है कि नंबर एक, नंबर 2 और नंबर 3 को हराकर कोई खिलाड़ी वर्ल्ड कप जीत ले, प्रज्ञानानंद ये इतिहास रचने से चूक गए.
कार्लसन के साथ पहले के मुक़ाबले
ऐसा होने की सूरत में वे विश्वनाथन आनंद के बाद वर्ल्ड कप जीतने वाले महज दूसरे भारतीय खिलाड़ी होते.
कार्लसन एक ओर जहां पांच बार के वर्ल्ड चैंपियन रहे हैं वहीं प्रज्ञानानंद बीते दो दशक में चेस वर्ल्ड के अंतिम चार खिलाड़ियों में जगह बनाने वाले पहले खिलाड़ी हैं.
लेकिन इससे प्रज्ञानानंद के हौसलों में कोई कमी नहीं दिखी.. मैग्नस कार्लसन और प्रज्ञानानंद के बीच इस फ़ाइनल से पहले 19 मुक़ाबले हो चुके थे.
क्लासिकल चेस में दोनों इससे पहले केवल एक बार टकराए थे और मुक़ाबला ड्रॉ रहा, जबकि रैपिड और प्रदर्शनी मैचों में दोनों 12 बार खेल चुके हैं, जिसमें मैग्नस कार्लसन सात बार जीत चुके हैं जबकि प्रज्ञानानंद पांच बार.
जबकि छह बार मुक़ाबले इस वजह से स्टेलमेट करना पड़ा क्योंकि सामने वाले खिलाड़ी के सामने चाल चलने के लिए कोई मोहरा नहीं बचा हो.
विश्वनाथन आनंद, कोनेरू हंपी और युवा प्रज्ञानानंद जैसे चेस खिलाड़ी दक्षिण भारत से आए हैं.
रैपिड चेस टूर्नामेंट
बीते ही साल मई, 2022 में प्रज्ञानानंद ने का आत्मविश्वास कुछ ऐसा था कि वर्ल्ड नंबर एक मैग्नस कार्लसन को हराने के बाद मीडिया के सामने उन्होंने एक तरह से निराशा ही जाहिर की थी.
उन्होंने कहा था, "वे इस तरह से जीत हासिल नहीं करना चाहते थे."
खेल में जीत, जीत होती है और हार, हार. तब कार्लसन अपनी ग़लती से हारे थे और प्रज्ञानानंद इस पहलू को समझते हुए कह रहे थे कि जीत दमदार होनी चाहिए थी.
दरअसल, चेसेबल्स मास्टर्स ऑनलाइन रैपिड चेस टूर्नामेंट में प्रज्ञानानंद और मैग्नस कार्लसन का मुक़ाबला ड्रॉ की ओर बढ़ रहा था.
40 बाजियों के इस मुक़ाबले का कोई नतीज़ा नहीं निकलने वाला था.
सफलता की कहानी
दुनिया के वर्ल्ड नंबर एक खिलाड़ी
जब प्रज्ञानानंद ने अपनी बाज़ी चली तब तक ऐसा ही संकेत मिल रहा था लेकिन चालीसवीं बाज़ी चलते हुए मैग्नस कार्लसन से एक चूक हो गई.
उन्होंने अपना घोड़ा इस तरह से राजा के सामने से हटाया कि चेकमेट की स्थिति बन गई और उनके पास कोई चारा नहीं बचा था.
चालीस बाज़ियों के बाद ऐसे रैपिड टूर्नामेंट में खिलाड़ियों को 10 सेकेंड का इंक्रीमेंट टाइम मिलता है और उसी टाइम में प्रज्ञानानंद ने ये मुक़ाबला जीत लिया.
यही वजह है कि वे अपनी जीत को लेकर बेहद ख़ुश नहीं दिखाई दिए.
ज़ाहिर है कि उन्हें महज जीत भर से संतोष नहीं रहा होगा, वे दुनिया के वर्ल्ड नंबर एक खिलाड़ी को थोड़ी तबियत से हराना चाहते होंगे.
शतरंज की दुनिया की सनसनी
काबिलियत और उसके बलबूते आया आत्मविश्वास, इन दोनों को आप प्रज्ञानानंद में देख सकते हैं, जिन्हें आप दूर से देखें तो उनका आउटलुक किसी चैंपियन जैसा नहीं दिखता, तेल में चुपड़े साधारण तरीके से संवारे बाल, साधारण कद काठी और सामान्य रंग रूप.
लेकिन मौजूदा समय में वे चेस की दुनिया की सबसे बड़ी सनसनी बन चुके हैं.
इससे पहले उन्होंने फरवरी, 2022 में एयरथिंग्स मास्टर्स चेस के आठवें राउंड में मैग्नस कार्लसन को 39वीं बाज़ी में हराया था.
उनके खेल को शुरुआत से ही देख रहे वरिष्ठ पत्रकार और द हिंदू अख़बार के डिप्टी एडिटर राकेश राव कहते हैं, "प्रज्ञानानंद निश्चित तौर पर भारत के लिए असीम संभावनाओं से भरे चैंपियन हैं और ये बात उन्होंने पिछले कुछ सालों में लगातार साबित भी किया है. उनके सबसे बड़ी ख़ासियत यही है कि कैलकुलेटिंग माइंड के तौर पर वे बहुत आगे हैं, सामने वाली खिलाड़ी का बोर्ड देखकर वे गेम को कैलकुलेट करना बखूबी जानते हैं."
जब दिखी थी पहली झलक
शतरंज की दुनिया को इसकी पहली झलक पांच साल पहले तब मिली जब उन्होंने 12 साल 10 महीने की उम्र में वो करिश्मा कर दिखाया था, जो इससे पहले कोई भारतीय नहीं कर सका था.
वे इतनी कम उम्र में ग्रैंड मास्टर बनने वाले पहले भारतीय बने थे. दुनिया भर में ये कारनामा उन्होंने दूसरी बार किया था.
उनसे कम उम्र में ये करिश्मा 2002 में यूक्रेन सर्जेइ कारजाकिन ने दिखाया था, यही दो खिलाड़ी हैं जिन्होंने टीन्स आयु में प्रवेश से पहले ही ग्रैंडमास्टर बनने का करिश्मा दिखाया है.
सर्जेई 12 साल 7 महीने की उम्र में ग्रैंडमास्टर की उपलब्धि तक पहुंचे थे और प्रज्ञानानंद 12 साल 10 महीने.
लेकिन प्रज्ञानानंद जब ग्रैंडमास्टर बने तो खेल की मशहूर वेबसाइट ईएसपीएन पर सुसन नैनन ने आर्टिकल लिखा था, "ए ब्वॉय हू कुड बी किंग."
भारतीय ग्रैंडमास्टर
लेख की शुरुआत में कहा गया है कि इस खिलाड़ी के नाम की स्पेलिंग ऐसी है कि पूरी चेस की दुनिया परेशान हो रही है. ज़ाहिर है लेखक का संकेत नाम पुकारे जाने के साथ साथ खेल से चौंकाने वाले गुण की ओर भी रहा होगा.
प्रज्ञानानंद की उपलब्धि को आप दोनों तरह से देख सकते हैं, एक तरफ़ एक मिडिल क्लास परिवार का लड़का है जो तेज़ी से अपना मुकाम बनाता जा रहा है.
उनके पिता रमेश बाबू पोलियो से ग्रस्त रहे हैं और तमिलनाडु कॉपरेटिव बैंक में नौकरी करते हैं. फिलहाल वे चेन्नई के कोरातुर ब्रांच के ब्रांच मैनेजर हैं. ये तो एक पहलू है.
प्रज्ञानानंद के करियर का दूसरा पहलू ये है कि उनसे चार साल बड़ी बहन वैशाली रमेश बाबू भी शतरंज की दुनिया की जानी मानी खिलाड़ी हैं और भारतीय ग्रैंडमास्टर हैं.
आगे बढ़ने की सुविधाएं...
यानी प्रज्ञानानंद के लिए शतरंज के खेल में आगे बढ़ने की सुविधाएं, उनकी बहन ने घर में बना दी थी. ये बात और है कि रमेश बाबू का खुद शतरंज से कोई लेना देना नहीं था.
उन्होंने बीबीसी तमिल से एक इंटरव्यू में बताया था, "मैंने अपनी बेटी का नाम चेस क्लास के लिए लिखाया था. वह बहुत अच्छा खेलती थी."
"लेकिन टूर्नामेंट में खेलने के लिए काफ़ी यात्राएं करनी होती थी और उसका ख़र्चा भी उठाना होता था. हमारी वित्तीय स्थिति ऐसी नहीं थी, इसलिए मैं बेटे को चेस से दूर रखना चाहता था."
"लेकिन चार साल की उम्र से ही वह अपनी बहन के साथ चेस खेलने लगा. चेस के अलावा किसी और खेल में उसकी दिलचस्पी नहीं हुई थी. वह शतरंज के सामने घंटों बैठा रहता था. इसने मेरी सोच को बदल दिया."
अपनी माँ के साथ रमेशबाबू प्रज्ञानानंद
बहन भी हैं शतरंज की महारथी
भाई और बहन में चार साल का ही अंतर था, लेकिन बहन ने भाई को शतरंज के बेसिक्स की जानकारी दी और जल्द ही ये घर में आपसी प्रतियोगिता का खेल बन गया.
दोनों का खेल ऐसा सधा हुआ था कि घर में ट्रॉफियों का अंबार लगता गया और इसमें कुछ 2015 में चेन्नई में आयी बाढ़ की भेंट भी चढ़ गए.
दोनों का खेल कुछ ऐसा था कि स्पांसरों की कमी नहीं रही. लेकिन पोलियोग्रस्त पिता को बच्चों के साथ मां को भेजने के लिए लोन लेना पड़ गया.
पिता ने भी सोच लिया था कि पैसों की कमी, बच्चों के रास्ते में बाधा नहीं बन पाए.
प्रज्ञानानंद ने पहले 2013 में अंडर-8 में वर्ल्ड चैंपियनशिप पर कब्ज़ा जमाया और इसके बाद दो साल के अंदर अंडर -15 का वर्ल्ड ख़िताब जीत लिया.
ग्रैंडमास्टरों की फौज
और अगले दो साल के भीतर ग्रैंड मास्टर का ख़िताब. शतरंज में ग्रैंड मास्टर बनना कितना चुनौतीपूर्ण है, इसका अंदाज़ा आप इससे लगा सकते हैं कि यह काफ़ी हद तक पीएचडी की उपलब्धि हासिल करने जैसा है.
भारतीय शतरंज में दिसंबर, 1987 से पहले कोई ग्रैंडमास्टर नहीं था. विश्वनाथन आनंद दिसंबर, 1987 में इस मुकाम तक पहुंचने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने थे.
उनका इस खेल पर ऐसा असर रहा है कि बीते 35 साल में भारत में ग्रैंडमास्टर शतरंज खिलाड़ियों की संख्या 73 तक पहुंच गई.
राकेश राव कहते हैं, "देश भर में शतरंज के खेल में विश्वनाथन आनंद के योगदान की बहुत चर्चा नहीं होती है, उनको महान खिलाड़ी ज़रूर माना जाता है."
"लेकिन हक़ीक़त यह है कि ये आनंद ही हैं जिनके चलते भारत में ग्रैंडमास्टरों की फौज उभर आयी. किसी एक मुल्क में, किसी एक खेल में किसी एक खिलाड़ी के इतना असर का कोई दूसरा उदाहरण नहीं दिखता."
विश्वानाथन आनंद
यही वजह है कि मौजूदा समय में भारत में कमाल की शतरंज प्रतिभाएं दिख रही हैं.
प्रज्ञानानंद का नाम कार्लसन को हराने के लिए कुछ ज़्यादा भले हो रहा हो लेकिन उनके हम उम्र अर्जुन इगिरगासी, डोमाराजू गुकेश और निहाल सरीन को भी दुनिया कौतुक से देख रही है.
शतरंज की दुनिया में भी तेजी से बदलाव आया है.
पहले सोच समझकर खेलने वाले को प्रतिभाशाली माना जाता था और आज के दौर में शुरुआत से ही तकनीकी तौर पर तेज खेल की मिसालें दी जाती हैं और जो लोग आक्रामकता से खेलते हैं उनमें संभावनाएं भी ज़्यादा देखी जाती हैं क्योंकि माना जाता है कि समय के साथ उनके खेल में परिपक्वता आ ही जाएगी.
इस अंतर को बेहतर ढंग से मुंबई में एक खेल पत्रिका के सालाना अवॉर्ड्स जलसे में खुद विश्वानाथन आनंद ने बताया.
90 मिनट के फुल मुक़ाबले में...
युवा शतरंज चैंपियन निहाल सरीन को अवार्ड देते हुए उन्होंने कहा, "मैं अपने दौर में बहुत तेज़ खेलता था. बहुत तेज़. लेकिन मैं जो खेल पांच मिनट में खेलता था वो निहाल एक मिनट में खेल रहे हैं."
यही वो पहलू है जो इन युवा खिलाड़ियों की ताक़त और सीमाएं, दोनों को दर्शाता है.
प्रज्ञानानंद ने जिन मुक़ाबलों में कार्लसन को हराया है वो 15-15 मिनट वाले मुक़ाबले हैं और ये ऑनलाइन मुक़ाबले हैं.
यही वजह है कि भारत के युवा खिलाड़ियों को माउस और कंप्यूटर वाले बचपन का लाभ भी मिल रहा है.
लेकिन अब प्रज्ञानानंद जैसे चैंपियन ने साबित कर दिया है कि 90 मिनट के फुल मुक़ाबले में भी वे किसी से कम नहीं हैं.
प्रज्ञानानंद के खेल पर उनके कोच आरबी रमेश ने बीबीसी तमिल से मई, 2022 में कहा था, "शतरंज के खेल में प्रज्ञानानंद अगर शुरुआत के समय में नहीं गड़बड़ाया तो मिडिल और अंतिम पार्ट में वह काफ़ी मज़बूती से खेलता है."
"कार्लसन के ख़िलाफ़ दोनों जीत में उन्होंने यह साबित किया है लेकिन जहां तक वर्ल्ड चैंपियन जीतने की बात है तो वह लक्ष्य काफ़ी बड़ा है."
अब इसी बड़े लक्ष्य को हासिल करने के क़रीब हैं प्रज्ञानानंद.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)