कुण्डलिया-/ दिनेश श्रीवास्तव
"हिंदी"
हिंदी हिंदुस्तान की,बनी रहे पहचान।
भाषा भारत भारती, यही हमारी शान।।
यही हमारी शान, मातृ भाषा है हिंदी।
यही बढ़ाती मान, यही माथे की बिंदी।।
होता द्रवित दिनेश, देख हिंदी की चिंदी।
बने विश्व की शान,हमारी भाषा हिंदी।।
(२)
भाषा हिंदी को यहाँ, नहीं मिला सम्मान।
हिंदी अपने देश में, बनी हुई अनजान।।
बनी हुई अनजान, तिरस्कृत होती हिंदी।
नहीं सजाया माथ, लगाकर इसको बिंदी।
कहता यही दिनेश, यही सबकी अभिलाषा।
अपनाए संसार, पावनी हिंदी भाषा।।
(३)
हिंदी भारत भारती, की अपनी पहचान।
नहीं मिली है आज तक,खोई इसकी शान।।
खोई इसकी शान,दिवस हिंदी का मनता।
एक दिवस की बात,प्रेम भरपूर उफनता।।
कहता सत्य दिनेश,लगाकर कुमकुम बिंदी।
जाते फिर से भूल,मनाकर उत्सव हिंदी।।
(४)
माथे की बिंदी बने, हिंदी बने सुहाग।
जन-मानस के उर बसे, हिंदी का अनुराग।।
हिंदी का अनुराग, राष्ट्र-भाषा बन जाए।
एक सूत्र में देश, बँधे एकत्व दिखाए।।
कहता सत्य दिनेश, हमारी भाषा हिंदी।
अपनाएँ सब लोग, बने माथे की बिंदी।।
(५)
भाषा हो यह राष्ट्र की, हिंदी सरस सुबोध।
इसमें वैज्ञानिक करें, अपना-अपना शोध।।
अपना-अपना शोध, नहीं अवरोध जताएँ।
अंग्रेजी के साथ, इसे भी तो अपनाएँ।।
बढ़े सतत सम्मान, देश की है अभिलाषा।
बढ़ता रहे वितान, सर्वथा सक्षम भाषा।।
🙏🙏 दिनेश श्रीवास्तव 🙏🙏